पाकिस्तान में सिखों पर फिर से अत्याचार की घटना सामने आई है। दरअसल, लाहौर में मुस्लिम कट्टरपंथियों ने गुरुद्वारा शहीद गंज भाई तारु सिंह को मस्जिद बताकर ताला जड़ दिया है। पाकिस्तान की इवेक्यू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ETPB) ने लाहौर के मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ मिलकर गुरुद्वारा को सिख समुदाय के लिए बंद कर दिया है। इससे स्थानीय सिखों में जबरदस्त गुस्सा है। आई जानते हैं कि भाई तारु सिंह कौन थे, जिनके नाम पर ये गुरुद्वारा साहिब बनाया गया।
पाकिस्तान के लाहौर में स्थित गुरुद्वारा शहीद गंज भाई तारु सिंह पर मुस्लिम कट्टरपंथियों ने ताला जड़ दिया
(@satenderchauhan )https://t.co/Sa2DWhkB9Y— AajTak (@aajtak) December 6, 2022
भारतीय इतिहास में हजारों वीर योद्धाओं के नाम दर्ज हैं। इन योद्धाओं ने धर्म को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति तक दे दी। उन्होंने किसी भी हाल में इस्लामी लुटेरों के सामने झुकना मंजूर नहीं किया। ऐसे ही वीर योद्धाओं में एक भाई तारु सिंह भी थे। पाकिस्तान के लाहौर में उन्हीं के नाम आपर गुरुद्वारा शहीद गंज भाई तारु सिंह बनाया गया है, जो उनका शहीदी स्थान है। पाकिस्तान सरकार और वहां के कट्टरपंथी काफी समय से गुरुद्वारा साहिब को मस्जिद में तब्दील करने के लिए षड्यंत्र रच रहे थे। जुलाई 2020 में भारत सरकार ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए षड्यंत्र रच रहे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग भी की थी।
इस्लाम कबूल ना करने पर उखाड़ दिया था सिर
इस्लाम कबूल नहीं करने पर भाई तारु सिंह का सिर उखाड़ दिया गया था। उन्होंने इस्लामी आक्रांताओं के सामने अपने केश कटवाने से साफ इनकार कर दिया था। इससे गुस्साए पंजाब के मुगल सरदार जकरिया खान ने उन्हें बहुत यातनाएं दीं। भाई तारु सिंह ने देश, सिख धर्म और खालसा पंथ के लिए अपने प्राण तक बलिदान कर दिए। गुरुद्वारा शहीद गंज भाई तारु सिंह लाहौर के नौलखा बाजार में है। वहीं, पाकिस्तान के लोगों का माना है कि सिखों ने यहां मौजूद मस्जिद पर जबरन कब्जा कर लिया था।
कौन थे शहीद भाई तारु सिंह
पटियाला के पंजाब विश्वविद्यालय के ‘सिख एनसाइक्लोपीडिया’ के मुताबिक, अमृतसर के फुला गांव में भाई तारु सिंह का जन्म एक संधु जाट परिवार में हुआ था। किसान तारु सिंह खेती से होने वाली अपनी कमाई का इस्तेमाल सिख समुदाय के हित में करते थे। उस समय सिख मुगलों के खिलाफ युद्ध लड़ रहे थे। भाई तारु सिंह को 1 जुलाई 1745 को 25 वर्ष की उम्र में ही मार दिया गया था। वहीं, सिख समुदाय के इतिहास के मुताबिक, जकरिया खान की मौत भाई तारु सिंह से पहले हो गई थी। उसने उनसे माफी मांगी और उनके जूते से खुद को मारा था।
नौलखा बाजार में हुई हजारों सिखों की हत्या
गुरुद्वारा शहीद गंज भाई तारु सिंह जिस जगह पर स्थित है, उसे जगह पर मुगल शहजादा दाराशिकोह अकसर आता था। लाहौर के दूसरे मुगल सरदार मीर मन्नू ने भी इसी जगह पर सिखों का कत्लेआम किया था। कहा जाता है कि उसने 25,000 सिखों की हत्या की थी। हरमंदिर साहिब के मणि सिंह की हत्या भी इसी जगह पर हुई थी।
स्रोत: news 18 हिंदी