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संरक्षण विभागकी भूमि विक्रय करनेवाले ईसाई धर्मगुरुको बनाया बंदी !

चैत्र शु. ५ , कलियुग वर्ष ५११३

हिंदुओ, यह ध्यान रखें कि यह समाचार किसी मंदिरके पुजारीसे संबंधित होता, तो ईसाइयोंका समर्थन करनेवाले प्रसारमाध्यमोंने दिनभर इसकी ‘ब्रेकिंग न्यूज’ दी होती !

मुंबई (महाराष्ट्र) – संरक्षण विभागद्वारा एक ईसाई संस्थाको भूमि किराएपर दी गई थी । उत्तर भारतके एक चर्चके निवृत्त धर्मगुरु इस भूमिका विक्रय करने (बेचने) जा रहे थे । इस प्रकरणमें उनके साथ अन्य तीन लोगोंको बंदी बनाया है । वर्ष १९५३ में भारतके संरक्षण विभागने यह भूमि ‘बॉम्बे डायसिसन् ट्रस्ट असोसिएशन’ ईसाई संस्थाको वर्ष ९९ में किराएपर दी  थी । संरक्षण विभागको अंधेरेमें रखकर इस भूमिकी बिक्री करनेके संदर्भमें आर्थिक अपराध शाखाके पथकद्वारा धर्मगुरु बाज्जू गावीत, अधिवक्ता रजनीकंद सालवी एवं उनके भाई शशीकांत सालवी, इन तीनोंको बंदी बनानेका समाचार १८ मार्चको ‘टाईम्स ऑफ इंडिया’में  प्रसारित हुआ है ।

पुलिसद्वारा अपराधियोंके अधिकोषमें स्थित दो खातोंपर रोक (प्रâीज करना) लगा दी  है । पुलिसका कहना है कि भारत शासनने विविध संस्थाओंको शैक्षिक एवं सांस्कृतिक कार्यके लिए यह भूमि दी है । इस प्रकरणकी जांच करनेवाले अधिकारी सी.बी. तटकरेने कहा कि ऐसी भूमिका क्रय-बिक्रय (खरीद-बिक्री) कोई नहीं कर सकता ।

छत्रपति शिवाजी महाराज स्थानकके समीप स्थित ‘हजारीमल सोमानी मार्ग’ की ४ सहस्र २६६ स्क्वेअर यार्ड भूमि ईसाई धर्मगुरु एवं उनके अन्य दो साथीदारोंको ५५ लक्ष रुपयोंमें देनेके विषयमें ‘शापूरर्जी पालनजी’ उद्योग समूहके कानूनfिवषयक परामर्शदाता मंडलने पुलिसमें परिवाद प्रविष्ट किया था । इस परिवादपर ध्यान देकर पुलिसद्वारा यह कार्यवाही की गई । संरक्षण विभागद्वारा इस भूमिके पुर्नविकासका काम एक निर्माण कार्य व्यावसायीको दिया गया था । इस व्यावसायीसे संपर्क साधकर ईसाई धर्मगुरु एवं अन्य दो साथियोंने उसे भूमि विक्रयके लिए संरक्षण विभाग एवं धर्मादाय आयुक्तकी ओरसे आवश्यक अनुमतिकी पूर्तता करनेका आश्वासन दिया था । धर्मगुरुसे भूमि नियंत्रणमें लेनेके पश्चात वहांपर ३३ तल्लेका भवन (कॉम्प्लेक्स) का निर्माण कार्य करने का आयोजन था । परंतु धर्मगुरुसे आवश्यक दस्तावेजोंकी पूर्ति नहीं हुई, इसलिए उस व्यावसायीने पुfिलसको सूचित किया । अपराधीका कहना है कि उसने इस व्यवहारके लिए आवश्यक दस्तावेजोंकी पूर्ति की थी; परंतु छानबीनसे ज्ञात हुआ है कि ऐसे कोई दस्तावेज व्यवसायीको नहीं दिए । ‘महाराष्ट्र काउन्सिल ऑफ चर्च’ के सचिव रेवरंड विक्टर गोल्लापल्लीने इस घटनाको दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि चर्च संबंधित संस्थाओंकी बिक्री नहीं, अपितु उनका उपयोग सामाजिक, शैक्षिक कारणोंके लिए होना चाहिए । विशेष बात यह है कि इसी चर्चके कुछ अन्य लोगोंने भी यह भूमि विक्रय करने हेतु दूसरे निर्माण कार्य व्यावसायीसे संपर्क किया था । (धूर्त ईसाई ! – संपादक)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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