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सम्मेद शिखरजी (गिरीडीह, झारखंड) जैनियों की आस्था का केंद्र है, पर्यटनस्थल नहीं !

झारखंड सरकार ने जैनियों के आस्था केंद्र सम्मेद शिखरजी को पर्यटनक्षेत्र के रूप में घोषित किया है । इस स्थान का धार्मिक महत्त्व एवं जैन समाज की भावना, इस लेख द्वारा प्रस्तुत कर रहे हैं ।

श्री. भरत जैन

जैनियों के लिए पवित्र स्थान

जिसप्रकार हिन्दू धर्म में ४ पवित्र धाम हैं, सिक्खों का सुवर्ण मंदिर, गुरुद्वार पवित्र स्थल माना जाता है, उसीप्रकार झारखंड राज्य में स्थित सम्मेद शिखरजी जैनियों का पवित्र धार्मिक स्थान माना जाता है । यहां १ सहस्र ३५० ऊंचा मीटर (४ सहस्र ४३० फुट) पर्वत है जो झारखंड राज्य में सबसे ऊंचा स्थान है । जैन धर्मानुसार व्यक्ति अपने जीवन में एक बार यदि शुद्ध अंत:करण से सम्मेद शिखरजी तीर्थ की भावपूर्ण यात्रा कर ले, तो मृत्यु के उपरांत उसे पशुयोनि एवं नरक नहीं मिलता । यहां आकर साधना करने से इस संसार के सभी कर्मबंधनों से वह मुक्त हो जाता है और अगले ४९ जन्मों तक कर्मबंधनों से मुक्त रहता है । इस तीर्थक्षेत्र का स्थानमाहात्म्य इतना है कि यहां के जंगलों में विचरण करनेवाले शेर-चीते जैसे प्राणियों में हिंसक वृत्ति देखने नहीं मिलती । इसीलिए तीर्थयात्री भी यहां निर्भयता से यात्रा करते हैं । जैन धर्मानुसार सम्मेद शिखरजी को शाश्वत तीर्थ माना जाता है ।

२० तीर्थंकरों को साधना द्वारा निर्वाण अर्थात मोक्षप्राप्ति !

जैन धर्म में कुल २४ तीर्थंकर हैं । उनमें से २० तीर्थंकरों ने यहां साधना कर निर्वाण की अर्थात मोक्षप्राप्ति हुई है । यहां पर्वत के आसपास सहस्रों जैन मंदिर होने से सैकडों धर्मशालाएं एवं समाजसेवा के केंद्र हैं । जैन परंपरा के अनुसार यह अहिंसक तीर्थ होने से यहां मांस, मद्यपान इत्यादि अभक्ष पदार्थ वर्जित हैं । जैन धर्मीय लोग इस पवित्र पर्वत को वंदन करते हैं । वे इस पर्वत की स्वच्छता एवं पवित्रता टिकाए रखने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हैं ।

पर्यटनस्थल का दर्जा देने से पवित्र क्षेत्र की पवित्रता नष्ट होगी !

वर्तमान की झारखंड सरकार ने पर्यटन विकास की दृष्टि से व्यावसायिक उद्देश्य रखकर इस पवित्र पर्वत की गणना पर्यटनक्षेत्र के रूप में विकसित करने का अध्यादेश निकाला है । वास्तव में संपूर्ण पर्वत का भाग ही पवित्र क्षेत्र माना जाता है । सरकार के अध्यादेश के परिच्छेद ३ में सम्मेद शिखरजी क्षेत्र को पर्यटन अथवा संवेदनशील पर्यटनस्थल के रूप में विकसित करने की योजना का विस्तार से वर्णन किया गया है । इसमें परिच्छेद ‘ब’ अनुसार झारखंड पर्यटन खाते को ‘इको टुरिजम प्लान’ करने की अनुमति दी गई है, इसके साथ ही ‘इको सेन्सिटिव पार्ट’के बाहर १ किलोमीटर के अंतर पर उपाहारगृह एवं ‘रिसॉर्ट’ आरंभ करने की अनुमति दी गई है । इसके साथ ही परिच्छेद ३ के उपपरिच्छेद १६ अनुसार प्रदूषण न करनेवाले उद्योगों को अनुमति दी गई है । इसलिए कल कुक्कुट बिक्री की दुकानें खुलेंगी और इस पवित्र क्षेत्र की पवित्रता नष्ट होने का कारण बनेंगी ।

पर्यटनस्थल का अध्यादेश रहित होने तक जैन समाज अनुवर्ती प्रयास करेगा !

संपूर्ण जग के जैन धर्मीय लोगों को इस निर्णय के कारण भारी धक्का लगा है । इसके विरोध में अनेक जैन मुनियों ने आवाज उठाई है और अनेक स्थानों पर अहिंसक एवं शांतिपूर्वक निदर्शन किए जा रहे हैं । २१ दिसंबर २०२२ को जैन लोगों ने ‘भारत बंद’ पाला था । केवल आर्थिक उत्पन्न के स्रोत के लिए इस पवित्र क्षेत्र का परिवर्तन पर्यटन क्षेत्र में होने से अल्पसंख्यक जैन समाज की धार्मिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं को भारी क्षति पहुंचेगी । सम्मेद शिखरजी, जैनियों की काशी है और इसका संरक्षण करना, यह सामाजिक दायित्व जैसे जैन समाज का है, वैसे ही सरकार का भी है । जब तक सम्मेद शिखरजी का पर्यटनस्थल बनाना रहित नहीं होता, तब तक जैन समाज सरकार से इसके अनुवर्ती प्रयास करती रहेगी, इसमें कोई शंका नहीं ।

– श्री. भरत जैन, ईश्वरपूर (जिल्हा सांगली)

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