आदि अनादि काल से काल गणना का केंद्र रहे कर्क राज मंदिर का अस्तित्व खतरे में है। वजह मंदिर के पृष्ठ भाग में कान्ह डायवर्शन के लिए पाइप लाइन डाली जानी है। इसके लिए मिट्टी डालकर शिप्रा का प्रवाह रोका जा रहा है। मजूदर अन्यंत्र स्थान से मिट्टी लाने के बजाय कर्कराज मंदिर के आसपास बेतहाशा खोदाई कर रहे हैं। इससे मंदिर के स्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचने की आशंका बढ़ती जा रही है। मंदिर के सामने स्थित प्राचीन कुंड भी जमींदोज हो रहा है। कर्क रेखा के कारण उज्जैन को काल गणना का प्रमुख केंद्र माना गया है।
ज्योतिष विद्या के प्राचीनतम सूर्य सिद्धांत में भी काल गणना के लिए उज्जैन के महत्व को प्रतिपादित किया गया है। कर्क राज मंदिर काल गणना का प्रमुख केंद्र रहा है। सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक गणितज्ञ आचार्य वराहमिहिर ने भी इस स्थान को काल गणना के प्रमुख केंद्र के रूप में चुना था और यहां अपनी वेधशाला स्थापित की थी। लेकिन आज काल गणना का यह केंद्र अपने अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे से जूझ रहा है। शहर में धर्म,संस्कृति व काल गणना के नए-नए केंद्र स्थापित करने वाले जिम्मेदार प्राचीन धरोहर की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
लक्ष्मण श्रीधर वाकणकर ने स्थापित कराया था स्मृति स्तंभ
कर्कराज मंदिर में स्थानीय विद्वानों ने सन 1990 में स्मृति स्तंभ की स्थापना की थी। इस पर कर्क रेखा का उदभव और विकास दर्शाते हुए उज्जैन को काल गणना के प्रमुख केंद्र के रूप में चिह्नित किया गया है। यह शिलालेख महाराष्ट्र में इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली के प्रमुख रामसिंह व पद्मश्री डा.विष्णु वाकणकर के अग्रज लक्ष्मण श्रीधर वाकणकर द्वारा तैयार कराया गया था। खोदाई से इस शिला लेख के जमींदोज होने का भी खतरा बढ़ गया है।
स्रोत : नई दुनिया