वक्ता : श्री. प्रमोद मुतालिक, संस्थापक-अध्यक्ष, श्रीराम सेना, कर्नाटक
- १ . मुसलमान और ईसाइयोंका मस्जिदों और चर्चमें एकत्रित होना; परंतु एकत्रीकरणके लिए हिंदुओंका एक भी केंद्र नहीं !
- २. हिंदुओंके लिए ‘हिंदू-भवन’ होना आवश्यक !
- ३. शासनके राजकोषमें जमा हो रही मंदिरोंकी संपत्तिके विरुद्ध आवाज उठाएं !
१ . मुसलमान और ईसाइयोंका मस्जिदों और चर्चमें
एकत्रित होना; परंतु एकत्रीकरणके लिए हिंदुओंका एक भी केंद्र नहीं !
मस्जिद मुसलमानोंका (इस्लामका) केंद्र है । जो भी निर्णय लेना है, जो भी चर्चा करनी है, वह सब मस्जिदमें ही होती है । उसी प्रकार, ‘चर्च’ ईसाइयोंका केंद्र है । कोई निर्णय अथवा चर्चा करनी हो चर्चमें ही की जाती है । ‘किसको मतदान करना है’, इसका भी अंतिम निर्णय चर्चमें ही होता है । किंतु, हिंदुओंके लिए इस प्रकारका एक भी केंद्र नहीं है ।
२. हिंदुओंके लिए ‘हिंदू-भवन’ होना आवश्यक !
हिंदुओंको संगठित करनेके लिए सर्वत्र ‘हिंदू-भवन’ हों, इस भवनमें जाति, पंथ, दल, भाषा इत्यादि भेदभाव न हो । वह केवल ‘हिंदुओं’के लिए खुला हो । हिंदुओंके संदर्भमें कोई चर्चा करनी हो, निर्णय लेना हो अथवा कोई घोषणा करनी हो, यह सब जहांसे किया जाए, ऐसा ‘-हिंदूभवन’ ! ‘हिंदू-भवन’ यह विचार लेकर हमने कार्य प्रारंभ किया है । आप भी अपने-अपने राज्यमें अथवा अपने-अपने क्षेत्रमें इस हिंदू-भवनका प्रयोग कर सकते हैं ।
३. शासनके राजकोषमें जमा हो रही मंदिरोंकी संपत्तिके विरुद्ध आवाज उठाएं !
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आजकल हो रहा मंदिरोंका सरकारीकरण दुर्भाग्यपूर्ण है । मंदिरोंके पैसेका उपयोग सडक बनानेके लिए किया जाता है । आंध्रप्रदेश शासन तिरुपति मंदिरका ५० प्रतिशतसे अधिक धन लेकर राज्यका कामकाज चला रहा है । वहां नालियां बनाना, पेयजल व्यवस्था इत्यादि तिरुपति मंदिरके धनसे किया जाता है । हम जो पैसा श्रद्धा-भक्तिसे दानपेटीमें डालते हैं, वह सब शासनके राजकोषमें जमा होता है । इसका देशके सभी हिंदुओंको मिलकर एक स्वरमें विरोध करना चाहिए । शासनको हिंदुओंकी ओरसे कडा संदेश जाना चाहिए कि ‘यदि आपने हिंदुओंके मंदिरपर हाथ डाला, तो उसे जला दिया जाएगा, आपका शासन पलट दिया जाएगा !', ऐसा मुझे लगता है ।