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जळगांव में राज्य स्तरीय ‘महाराष्ट्र मंदिर-न्यास परिषद’ प्रारंभ !

भारत में मंदिर प्रबंधन का पाठ्यक्रम सिखाने की आवश्यकता ! – अशोक जैन, न्यासी, पद्मालय देवस्थान जळगांव एवं अध्यक्ष, जैन उद्योग समूह

जळगांव – मंदिरों से धर्म को अलग नहीं किया जा सकता । कोई भी संस्था सुदृढ हो, यह उसके प्रबंधन पर निर्भर करता है; परंतु मंदिर के प्रबंधन के विषय में कोई भी पाठ्यक्रम भारत में नहीं सिखाया जाता। मंदिर परिषद के माध्यम से यह कार्य हो रहा है । तीर्थ क्षेत्र एवं मंदिरों की प्राचीन परंपराएं है । वे पर्यटन स्थल नहीं हैं, यह ध्यान में रखना होगा । मंदिर के न्यासियों को मंदिरों की ओर पालकत्व की भावना से देखना आवश्यक है । न्यासियों को मिलकर मंदिरों की समस्याएं दूर करने के लिए प्रयास करनी चाहिए । इस दृष्टि से मंदिर परिषद के माध्यम से मंदिरों संबंधी समान कार्यक्रम निश्चित होगा, ऐसा विश्वास जळगांव स्थित श्री पदमालय गणेश देवस्थान के न्यासी तथा जैन उद्योग समूह के अध्यक्ष श्री. अशोक जैन ने व्यक्त किया ।

हिन्दू जनजागृति समिति एवं श्री गणपति मंदिर देवस्थान विश्वस्त मंडळ, पद्मालय के संयुक्त तत्वावधान में मंदिर एवं धर्म परंपराओं की रक्षा हेतु दो दिवसीय राज्य स्तरीय ‘महाराष्ट्र मंदिर-न्यास परिषद’ का आयोजन किया गया है । इस परिषद के उद्घाटन सत्र में बोल रहे थे । दीप प्रज्वलन कर इस ऐतिहासिक मंदिर परिषद का प्रारंभ किया गया । इस समय व्यासपीठ पर काशी स्थित ज्ञानवापी के लिए संघर्ष करनेवाले सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, श्री काळाराम मंदिर के आचार्य महामंडलेश्वर महंत श्री सुधीरदासजी महाराज, देउएगांवराजा स्थित श्री बालाजी देवस्थान के श्री. विजयसिंह राजे जाधव सनातन संस्था के सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी एवं हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे उपस्थित थे ।

 

राज्य के विविध मंदिरों के 250 से भी अधिक प्रतिनिधि इस मंदिर परिषद में सम्मिलित हुए हैं । ‘मंदिर प्रतिनिधियों के एकत्र होने की आवश्यकता’, ‘पुजारियों की समस्याएं एवं उपाय’, ‘मंदिरों के माध्यम से हिन्दुओं का संगठन’ मंदिरों का सुप्रबंधन’, ‘प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार, स्वच्छता, आर्थिक समस्याएं’, जैसे विविध विषयों पर इस परिषद में विचार किया जा रहा है । इस समय सनातन संस्था के धर्मप्रचारक सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने प्रस्तावना करते हुए मंदिर परिषद का आयोजन हिन्दुओं के लिए शुभ कल्याणकारी घटना है, ऐसा प्रतिपादित किया । इस परिषद में भाजपा के स्थानीय विधायक श्री. सुरेश भोळे भी उपस्थित थे । इस समय मत व्यक्त करते हुए विधायक श्री. भोळे ने कहा, ‘‘न्यायालय में भगवद्गीता पर हाथ रखकर शपथ लेने के लिए कहा जाता है; परंतु पाठशाला, महाविद्यालय में भगवद्गीता पढाई नहीं जाती । यह स्थिति परिवर्तित करना आवश्यक है ।’’

मंदिरों की धार्मिक परंपराओं की रक्षा हेतु मंदिर के न्यासियों का संगठन आवश्यक है ! – महंत श्री सुधीरदासजी महाराज, श्री काळाराम मंदिर, नाशिक

मंदिरों की पवित्रता बनाए रखने हेतु प्रयास करना चाहिए । आज केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, पूरे भारत में देवस्थान की समस्याएं गंभीर हैं । मंदिरों का अधिग्रहण कर उसमें अहिन्दुओं की नियुक्ति की जा रही है । इस कारण मंदिरों की परंपराएं नष्ट हो रही हैं । मंदिर की परंपरागत पूजा विधियां पुनः आरंभ करना आवश्यक है । मंदिर के पैसे धर्मकार्य के अतिरिक्त अन्यत्र उपयोग किए जा रहे हैं । इस परिषद के माध्यम से मंदिरों की धार्मिक परंपराओं की रक्षा हेतु मंदिर के न्यासियों का संगठन होगा, ऐसा प्रतिपादन नाशिक स्थित श्रीकाळाराम मंदिर के आचार्य महामंडलेश्वर महंत श्री सुधीरदासजी महाराज ने किया ।

काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए किया संघर्ष हिन्दू संस्कृति की रक्षा हेतु किया संघर्ष है ! – विष्णु शंकर जैन, अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय

हिन्दुओं पर आक्रमण करने हेतु सर्वप्रथम मंदिरों को लक्ष्य किया गया । अयोध्या, मथुरा, काशी सहित असंख्य स्थानों पर देवताओं के मंदिरों की एवं मूर्तियों की तोडफोड कर उस स्थान पर मस्जिदों की निर्मिती की गई । काशी विश्वेश्वर का मंदिर 3 बार तोडा गया । काशी विश्वेश्वर मंदिर मुक्त किया जाए, यह छत्रपति शिवाजी महाराज की अंतिम इच्छा थी । उसे पूर्ण करने का समय अब दूर नहीं । हिन्दुओं को अब इन सब मंदिरों को मुक्त कराना होगा । काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए किया जा रहा यह संघर्ष हिन्दू संस्कृति की रक्षा हेतु किया जा रहा संघर्ष है, ऐसा प्रतिपादन अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने इस समय किया ।

सरकारी उद्योगों का निजीकरण तो फिर हिन्दुओं के मंदिरों का सरकारीकरण क्यों ? – रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति

सनातन धर्म के विरोध में पूर्व से चले आ रहे आघातों का सत्र आज भी जारी है । मंदिर केवल देवालय ही नहीं, विद्यालय भी हैं, न्यायालय भी हैं, और आरोग्यालय भी हैं । पूर्व के काल में मंदिरों के माध्यम से विश्वविद्यालय चलाए जाते थे । इससे हिन्दुओं को विद्या प्रदान की जाती थी । मुगल आक्रमणकारियों ने मंदिरों का विध्वंस कर वहां का धन लूटा और मंदिर अगर धनवान रहे तो वहां ज्ञान संपदा जारी रहेगी और मिशनरियों की कान्वेंट पाठशालाएं नहीं चलेंगी । हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन नहीं किया जा सकेगा, इस उद्देश्य से ब्रिटिशों ने मंदिरों के धन पर नियंत्रण पाने के लिए मंदिरों का सरकारीकरण करना प्रारंभ किया । 1947 में भारत स्वतंत्र हो गया; परंतु मंदिर कभी स्वतंत्र नहीं हुए । सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के विरोध में जाकर आज ‘सेक्यूलर’ सरकार ने 4 लाख मंदिर अपने नियंत्रण में लिए हैं । एक ओर सरकारी उद्योगों का निजीकरण किया जा रहा है, तो फिर हिन्दू मंदिरों का सरकारीकरण क्यों ? ऐसा प्रश्न हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री रमेश शिंदे ने उपस्थित किया । आज सरकारीकरण हो चुके शिरडी देवस्थान, श्री तुळजा भवानी देवस्थान, श्री महालक्ष्मी देवस्थान और ऐसे विभिन्न मंदिरों में अत्यधिक भ्रष्टाचार हो रहा है । इस कारण मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण न हो, इसके लिए प्रत्येक मंदिर के प्रतिनिधि को प्रयास करने चाहिए, ऐसा भी श्री. शिंदे ने कहा ।

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