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मंदिरोंकी सुव्यवस्थाके लिए प्रयास करें !

ज्येष्ठ कृष्ण ६, कलियुग वर्ष ५११५

 

वक्ता : श्री. रजनीश गोयंका, अध्यक्ष, सनातन धर्म मंदिर, देहली.

१  अ. हिंदुओंके मंदिरोंकी धन-संपत्तिपर शासन एवं राजनेताओंकी दृष्टि होना

हिंदू अपने अर्थार्जनसे मंदिरोंकी सेवाके रूपमें धन अर्पण करते हैं । मुसलमान अथवा ईसाई धर्ममें उनके प्रार्थनास्थलोंमें अर्पण नहीं किया जाता । देहली शासनने ‘श्राईन बोर्ड’ बनानेका प्रयास किया । ‘विश्व हिंदू परिषद’, हमारी ‘सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा’ एवं अन्य कुछ संस्थाओंके एकजुट होकर आंदोलन करनेपर उनके प्रयास विफल हुए । देहली शासनने नई देहलीके ६ प्रमुख धनी मंदिरोंपर ध्यान केंद्रित किया था । इस प्रकारके प्रयास पूरे भारतके विविध स्थानोंमें हो रहे हैं । ऐसा होनेके पीछे सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि हमारे मंदिरोंकी धन-संपत्तिपर शासन एवं नेताओंकी दृष्टि है ।


१ आ. हिंदुओंके मंदिरोंको बचानेके लिए कार्य करनेवाले सर्व संगठनोंका राष्ट्रीय संगठन बनना आवश्यक !

भाजपाप्रणीत ‘राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन’ एवं कांग्रेसप्रणीत ‘संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन’में २५-२५ राजनीतिक दल एकत्रित होकर कार्य कर रहे हैं, उसी प्रकार राष्ट्र एवं धर्मका कार्य करनेवाली संस्थाओं एवं संगठनोंको एक व्यासपीठपर लानेके लिए हमें प्रयास करने होंगे । सबके एकत्रीकरणसे राष्ट्रीय स्तरपर संगठन निर्माण होना चाहिए । ऐसा प्रयास हमने किया है । इसके लिए ‘विश्व हिंदू मंदिर संस्थान महासंघ’की स्थापना की है । इस प्रकारका कार्य देशमें अन्य स्थानोंपर हो रहा होगा । सभीको वर्षमें २-४ बार एक व्यासपीठपर आकर सामयिक समस्याओंपर चर्चा कर रणनीति सिद्ध करनी चाहिए । भारतमें ८२ प्रतिशत हिंदू होकर भी हम हिंदुओंको धमकियां दी जाएं, मंदिरोंका बलपूर्वक अधिग्रहण किया जाए एवं स्वयंकी असफलता छिपानेके लिए हमारे धन-संपत्तिपर शासन सत्ता चलाए, यह उचित नहीं है !

१  इ. कहां मठ-मंदिरोंका निर्माण करनेवाले पूर्वके राजा और कहां मतोंपर दृष्टि रखकर अपने ही धर्मको भुलानेवाले आजकलके नेता !

राजा-महाराजा अथवा धनिक-संस्थानिकने मठ एवं मंदिरोंका निर्माणकार्य अथवा उनका जीर्णोद्धार किया । आजके समयमें राजा ही नहीं है । नेताओंको केवल थोक मत दिखाई देते हैं । उन्हें हिंदू अथवा मुसलमान नहीं दिखते । एक हिंदू नेताने मुसलमानोंके मतपर दृष्टि रख उनकी टोपी पहन ली । जिस दिन हिंदू मतपेटी बन जाएंगे, उस दिन ये नेता टोपी हटाकर शिखा रख लेंगे !

१  ई. मंदिर एवं धर्म बचानेके लिए नेताओंपर अंकुश रखना आवश्यक !

हमारे मंदिर सुरक्षित रखने हों एवं धर्म बचाना हो, तो हमें संघशक्ति निर्माण करनी होगी तथा नेताओंपर अंकुश रखना होगा । हिंदुओंकी मतपेटी सिद्ध करनी होगी । मतपेटी बनना अर्थात ७ प्रतिशत हिंदू प्रत्येक क्षेत्रमें संगठित रूपसे कार्य करने लगेंगे एवं संगठित रूपसे मतदान करेंगे, उस दिन हम देखेंगे कि वहांके राजकीय नेताओंने टोपी उतारकर शिखा रख ली है । तब किसी भी मंदिरका अधिग्रहण नहीं होगा अथवा किसी भी हिंदू कार्यक्रमपर किसी भी प्रकारका आक्षेप नहीं उठाया जाएगा ।

आज मार्गमें नमाज पठन करनेमें कोई अडचन नहीं; परंतु हिंदुओंके मंदिरोंमें कोई कार्यक्रम आयोजित करना हो तो उसके लिए अनेक प्रकारकी अनुमति लेनी पडती है ।

१ उ. शासनको जगानेके लिए दृढतासे एवं प्रकट रूपसे मंदिरोंमें उपक्रम आयोजित करना आवश्यक !

देहलीमें हम एक उपक्रम करनेवाले हैं । प्रत्येक मंगलवार मंदिरमें रामायणके सुंदरकांडका पाठ किया जाएगा एवं ‘अधिकाधिक हिंदू उसमें सम्मिलित हों’, इसके लिए आवाहन किया जाएगा । मंदिरोंमें स्थान न हो, तो हम भी सडकपर बैठकर सुंदरकांडका पाठ करेंगे । ऐसा करनेपर ही शासन जागेगा । ‘सनातन संस्था’द्वारा दिए संदेशके अनुसार आप भी दृढतासे एवं सार्वजनिक रूपसे हिंदुत्व एवं अपने मंदिरोंके लिए इस प्रकारके कार्यक्रम सर्वत्र करें, इसके लिए मैं सबका आवाहन करता हूं ।

१ ऊ. मंदिर सुव्यवस्थित एवं उसका व्यवस्थापन पारदर्शक होनेपर ही उनकी ओर जनशक्तिका प्रवाह उमडेगा !

मंदिरोंमें सुव्यवस्था एवं उनके अर्थव्यवहारमें पारदर्शकता होनी चाहिए । परिसर भी स्वच्छ होना चाहिए । अक्षरधाम मंदिर, ‘इस्कॉन’के मंदिर हिंदुओंके ही हैं । गोवाके श्री रामनाथ देवस्थानको देखकर मेरा मन भर आया । ये मंदिर अच्छी पद्धतिसे रखे जा सकते हैं, तो क्या हमारे सर्व मंदिर ऐसी पद्धतिसे नहीं रखे जा सकते ? जिस दिन हमारे सर्व मंदिर सुव्यवस्थित एवं स्वच्छ रखेंगे, उस दिन हिंदू श्रद्धालुओंकी भीड उमडने लगेगी एवं शक्तिका प्रवाह बहने लगेगा ।


७. मंदिरोंका व्यवस्थापन सिखानेवाले पाठ्यक्रम लागू करनेकी आवश्यकता !

७ अ. मंदिरोंको समाजकी चेतनाका एवं
समाजसेवाका केंद्र बनानेके लिए मंदिर व्यवस्थापकोंकी आवश्यकता !

मंदिरोंकी व्यवस्थाकी दृष्टिसे मैंने एक प्रस्ताव सभीके समक्ष रखा है । उसपर मैं गत २ वर्षोंसे कार्य कर रहा हूं । मैं जन्मसे कारखानेदार एवं व्यावसायिक हूं, तब भी अपना व्यवसाय उत्तम प्रकारसे चलानेके लिए एवं वृद्धिंगत करनेके लिए मैं ‘मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन’ विशेषज्ञोंकी सहायता लेता हूं । मैं एक मंदिरका अध्यक्ष होकर स्वयं धार्मिक हूं । धर्मके प्रति मेरा प्रेम है; परंतु मंदिर कैसे चलाना चाहिए, उसके विषयमें मुझे कुछ भी पता नहीं ।

पहले मंदिरोंमें मात्र पूजा-अर्चा होती थी, तब पुजारी एवं श्रद्धालु मंदिर चलाते थे; परंतु अब हमें इन मंदिरोंको समाजकी चेतनाका एवं समाजसेवाका केंद्र बनाना है, इसके लिए मंदिर व्यवस्थापकोंकी आवश्यकता है । मेरेद्वारा चलाए जा रहे मंदिरमें १६ उपक्रम आयोजित किए जाते हैं । इन उपक्रमोंका आयोजन, उनका व्यवस्थापन देखना, उसके लिए आवश्यक धन-सामग्री एकत्र करना, उपक्रमोंका प्रचार करना, लोगोंको एकत्रित करना, उनकी व्यवस्था करना, यह सब व्यवस्थापन है । इसके लिए ‘इन्स्टिट्यूट ऑफ टेंपल मैनेजमेंट’की स्थापना कर ‘मंदिर व्यवस्थापन’ पाठ्यक्रम लागू करें । व्यावसायिक व्यवस्थापन सिखानेवाले पाठ्यक्रम के अनुसार मंदिरोंका व्यवस्थापन देखनेवाले व्यवस्थापक भी सिद्ध हो सकते हैं ।

७ आ. चीनमें मंदिरोंका व्यवस्थापन सिखानेवाले पाठ्यक्रम चलाया जाना

जब यह संकल्पना मुझे सूझी, तब मैंने उसपर अध्ययन आरंभ किया । शंघाईके ‘एंटाय यूनिवर्सिटी’में इस प्रकारका पाठ्यक्रम चलाया जा रहा है । इसमें मंदिर व्यवस्थापनके उच्च महाविद्यालयीन पाठ्यक्रम हैं और इसमें ४८ बौद्ध भिक्षु भी प्रशिक्षण ले रहे हैं ।

७ इ. भारतमें भी मंदिर व्यवस्थापनका पाठ्यक्रम रखनेवाले केंद्र आरंभ होने चाहिए !

हमने भी इस प्रकारके प्रयास आरंभ किए हैं । मंदिरोंका व्यवस्थापन अच्छा हो, इस हेतु ‘सनातन संस्था’के सहयोगसे इस प्रकारका प्रथम पाठ्यक्रम लागू हो । मेरी सभीसे आग्रहपूर्वक विनती है कि आप सभी मंदिरोंसे संबंध रखें । लोगोंको भी मंदिरोंसे जोडें । ऐसा करनेसे ये राक्षस अपनेआप भाग जाएंगे ।

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