भारत के सभी मस्जिदों के लाउडस्पीकरों पर केवल प्रतिबंध नहीं, अपितु हमेशा के लिए बंदी लगाएं ! – मेजर सरस त्रिपाठी
सऊदी अरब में रमजान के महीने में मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकरों पर प्रतिबंध लगाया है । लाउडस्पीकरों द्वारा ऊंची आवाज के कारण होनेवाला कष्ट कट्टर मुसलमान देशों को भी अब ध्यान में आ रहा है । पर्यावरण के साथ-साथ वे शास्त्रीय दृष्टि से भी विचार कर रहे हैं । भारत में जब भी मस्जिदों पर लाउडस्पीकरों पर बंदी लगाई जाने की मांग होती है, तब मुल्ला-मौलवी और मुसलमान नेता किसी की एक नहीं सुनते ! वे यह दिखाने का प्रयत्न करते हैं कि 20 प्रतिशत होते हुए भी भारत की 80 प्रतिशत लोकसंख्या पर उनका प्रभुत्व है । अजान अन्यों को लाउडस्पीकरों द्वारा सुनवाई जाए, ऐसा इस्लाम के कौन से ग्रंथ में लिखा है ? किसी भी लाउडस्पीकर की आवाज 90 डेसिबल के ऊपर नहीं होनी चाहिए; परंतु अनेक मस्जिदों पर लाउडस्पीकारों की आवाज 120 से 130 डेसीबल से भी अधिक होती है । जो लोगों में बहारपन ला सकती है । अत: भारत की सभी मस्जिदों के लाउडस्पीकरों पर केवल प्रतिबंध नहीं, अपितु उन पर हमेशा के लिए बंदी लगाई जाए, ऐसी मांग दिल्ली के मेजर (निवृत्त) तथा लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता श्री. सरस त्रिपाठी ने की । हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ‘सऊदी अरब में रमजान के महीने में मस्जिदों के लाउडस्पीकरों पर प्रतिबंध, सेक्युलर भारत में कब ?’ इस विषय पर ‘ऑनलाईन’ विशेष संवाद में वे बोल रहे थे ।
इस अवसर पर चर्चा में सम्मिलित ‘सर्वोच्च न्यायालय’के अधिवक्ता उमेश शर्मा कहा की, जो इस्लाम का केंद्र माना जाता है, वहां मस्जिद पर लगे लाउडस्पीकरों पर प्रतिबंध लगाया है और अन्य नियम भी लागू किए हैं । फिर भारत में यह क्यों लागू नहीं ? दिन में 5 बार ऊंची आवाज में लाउडस्पीकरों द्वारा अजान सुनते समय अनेक लोगों को उसका कष्ट होता है । लोगों की नींद टूटती है, उस समय पूजापाठ अथवा अन्य काम करते समय हिन्दुओं को उसमें व्यत्यय आता है, अन्य धर्मियों को भी इस का कष्ट होता ही है ! संविधान के अनुसार सभी धर्म-पंथ समान हैं । अजान मुसलमानों के लिए है, फिर अन्यों को सुनाने के लिए जो प्रयत्न किया जा रहा है, वह उस-उस स्थान की सरकार को रोकना चाहिए । हमारी मांग है कि भारत सरकार मस्जिदों के लाउडस्पीकरों पर योग्य कार्रवाई करे । सभी हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को इस विषय में आगे बढना चाहिए ।