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मनमोहन सिंग की जापान यात्रा से चीनी मीडिया खफा

ज्येष्ठ कृष्ण ७ , कलियुग वर्ष ५११५


बीजिंग : प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जापान यात्रा से चीन की सरकारी मीडिया खफा है । कम्युनिस्ट सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने गुरुवार को लिखा कि जापान सरकार हमारे पड़ोसियों से सहयोग बढ़ाकर चीन को घेरना चाहती है । वहीं, बीजिंग सरकार ने संतुलित जवाब देकर स्थिति को संभालने की कोशिश की । विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग लेई ने कहा कि भारत-जापान के अच्छे संबंधों से क्षेत्र में स्थिरता और शांति आएगी ।

ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय में कहा गया है कि टोक्यो और नई दिल्ली के बीच समुद्री सुरक्षा सहयोग बढ़ाकर चीन को घेरने की कोशिश की जा रही है । कुछ दिनों पहले जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबी म्यांमार जाकर भी कुछ ऐसा ही हासिल करना चाहते थे । टोक्यो सरकार चीन के खिलाफ नया खेल रच रही है । जापान चीन के सभी पड़ोसियों से रणनीतिक समझौते करना चाह रहा है । इससे साफ होता है कि जापान पर 21वीं सदी में सबसे ज्यादा प्रभाव चीन का है । हालांकि, हम साफ कर देना चाहते हैं कि टोक्यो भ्रम में है । वह हमसे कितनी भी प्रतिस्पर्धा कर लें, एशिया पर चीन के प्रभाव से जापान आगे नहीं निकल सकता ।

पिछले कुछ महीनों से चीन और जापान के बीच पूर्वी चीन सागर में स्थित एक द्वीपसमूह पर अधिकार को लेकर तीखा विवाद चल रहा है। वहीं, भारत के लद्दाख में हाल ही में चीनी सेना की घुसपैठ से दोनों देशों के बीच तनाव पैदा हो गया था । वहीं, लेई ने इन कठोर शब्दों पर सफाई देते हुए कहा कि हमें पूरी उम्मीद है कि चीन के पड़ोसी आपसी संबंधों को बेहतर कर एक सद्भावनापूर्ण माहौल बनाएंगे । यदि जापान और भारत के संबंधों में प्रगाढ़ता आई तो एशिया में स्थिरता, शांति और विकास का माहौल मजबूत होगा । चीन उम्मीद करता है कि दोनों देश शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए आपसी संबंधों को लगातार मजबूती देते रहेंगे । पीपुल्स डेली भारत से संबंधों को मजबूती देने के जापान के प्रयासों को सेंधमारी बताया था । ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि कभी एशिया की सबसे बड़ी ताकत रहे जापान को अब इस सच्चाई को स्वीकार लेना चाहिए कि उसके इस स्थान को चीन छीन चुका है। उसे आज नहीं तो कल यह मानना ही होगा।

एक अन्य अखबार चाइना डेली ने लिखा कि टोक्यो-नई दिल्ली के संबंध न तो कभी गहरे थे न ही मजबूत। अब संबंध मजबूत करने के ये प्रयास किसी खास उद्देश्य को पूरा करने के लिए हैं। इनका संबंध चीन विरोध से हो सकता है।श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे इन दिनों बीजिंग में हैं। चीन का सभी पड़ोसियों से किसी न किसी बात पर विवाद चल रहा है। इसलिए, श्रीलंका को अपने पक्ष में लाने के लिए चीन अरबों डॉलर की मदद दे रहा है।

स्त्रोत : दैनिक जागरण

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