ज्येष्ठ कृष्ण ८ , कलियुग वर्ष ५११५
१. असमियोंकी ओर ध्यान न देकर
अधिनियम पारित करनेवाले देशद्रोही कांग्रेसी शासनकर्ता
१९८३ में संसदमें ‘अवैध प्रवासी अधिनियम १९८३’ , (`इलिगल माइग्रेंटस डिटरमिनेशन बाई ट्रिब्यूनल ऐक्ट १९८३’, (आइ.एम.डी.टी.) पारित करते समय संसदमें असमका प्रतिनिधित्त्व करनेवाला एक भी व्यक्ति नहीं था । इस अधिनियम द्वारा असममें बांगलादेशी घुसपैठीयोंके रहनेकी पूरी व्यवस्था की गई । असमके विधायक अधिवक्ता अब्दुल मुहिब मजमुदारने इस अधिनियमका प्रारूप बनाया था । ( बांगलादेशी घुसपैठियोंकी सहायता करनेवाले देशद्रोही धर्मांध ! ऐसे धर्माधोंका कांग्रेसी शासनकर्ताओं द्वारा समर्थन करनेसे वे देशद्रोह करनेका साहस करते हैं । – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) १९८३ में संसदमें ‘अवैध प्रवासी अधिनियम १९८३ ’ (इलिगल माइग्रेंटस डिटरमिनेशन बाई ट्रिब्यूनल ऐक्ट १९८३ (आइ.एम.डी.टी.) पारित किया गया था । उसके विरोधमें सर्वोच्च न्यायालयमें चले अभियोगके पश्चात, २००५ में उसे निरस्त किया गया । इस अधिनियमके संदर्भमें असमकी राजधानी गुवाहाटी स्थित, लोग जागरण मंच द्वारा बनाई गई ध्वनिचित्र-चक्रिकामें आगे दी हुई जानकारी दे रहे हैं ।
२. बांगलादेशियोंकी सहायता करनेवाले इस अधिनियमके राष्ट्रघाती निर्धारक !
१. इस अधिनियमके अनुसार २५ मार्च १९७१ के बाद घुसपैठियोंको विदेशीकी श्रेणीमें रखा जाएगा ( इस अधिनियमके अनुसार २५ मार्च १९७१के पूर्व घुसपैठ करनेवाले सभी बांगलादेशीयोंको एक तरहसे भारतीय होनेकी अनुमति मिल गई – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
२. घुसपैठकी शिकायत उसी पुलिस थानेके कार्यक्षेत्रमें रहनेवाला कर सकेगा ।
३. शिकायतके साथ १० रुपए जमा करने होंगे ।
४. शिकायत प्रविष्ट करते समय दो गवाहोंके हस्ताक्षर आवश्यक ।
५. कोई भी व्यक्ति केवल १० नागरिकोंके विरोधमें आरोप कर सकता है । घुसपैठीका प्रमाण देनेका दायित्व आरोप करनेवालेका ही होगा । ( आरोप कर्ताद्वारा ही दोषीको दोषी सिद्ध करनेका दायित्व देनेवाला पुरी दुनियामें एक ही अधिनियम ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
६. पुलिसको जानकारी देनेपर घुसपैठ बाध्य नहीं । ( चोरको ही सीनाजोरी करनेकी उपलब्धि देनेवाला अधिनियम ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
७. विदेशी होनेकी बात सिद्ध होनेपर उन्हें देश छोडकर जाने हेतु ३० दिनोंकी अवधि दी जाएगी; क्योंकि वे स्वयं होकर देश छोडकर जाएंगे ।
३. राष्ट्रघाती अधिनियमके दुष्परिणाम
घुसपैठियोंके संगठित होकर रहनेके कारण उनके विरोधमें आरोप करके कोई भी शत्रुता लेनेके लिए सिद्ध नहीं होता । इस अधिनियमके परिणामस्वरूप १९८३ से १९९९ तक कुल मिलाकर ३ लाख ५ सहस्र ३७ घटनाएं सामने आई । उनमेंसे ९ सहस्र ८३४ को विदेशी घोषित किया गया; किंतु केवल १ सहस्र ४७० को ही निकाल बाहर किया गया । असमके भूतपूर्व पुलिस महासंचालक श्री. प्रकाश सिंहने कहा, `असमसे निकाल बाहर किए गए १ सहस्र ५०० घुसपैठिए वापस भारतमें आए । इससे बडा परिहास क्या हो सकता है ?
४. बांगलादेशियोंकी सहायता करने हेतु ही
सर्वोच्च न्यायालयद्वारा अधिनियमकी स्थापना होनेका प्रतिपादन !
१२ जुलाई २००५ को सर्वोच्च न्यायालयने यह अधिनियम निरस्त किया । उस समय न्यायालयने कहा,`अधिनियमका प्रारूप जानबूझकर ऐसा बनाया गया है, कि २५ मार्च १९७१ के बाद असममें आए बांगलादेशी घुसपैठियोंको सुरक्षा मिलेगी । यह अधिनियम हर दृष्टिसे असंवैधानिक, विभेदकारी तथा अन्य अधिनियमोंके विरोधमें है । बुनियादी अधिकारोंका हनन करनेवाला है, इसलिए इसे निरस्त कर रहे हैं । इस घुसपैठके कारण असमकी जनसंख्याका स्वरूप बिगडना चिंताका विषय है । असमियोंको उनके ही राज्यमें अल्पसंख्य होनेका संकट उत्पन्न हो गया है । यह अधिनियम निरस्त करते हुए न्यायालयने पाक एवं बांगलादेशसे भागकर आए हिंदुओंको ‘इमिग्रेशन (एक्सपल्शन फ्रॉम आसाम) ऐक्ट १९५०’ के अंतर्गत सुरक्षा दी ।
५. बांगलादेशी घुसपैठीयोंकी अपेक्षित घुसपैठ पूरी होनेसे
अधिनियम निरस्त कर सकते हैं, ऐसा कहनेवाले देशद्रोही अधिवक्ता मजमुदार !
अधिवक्ता मजमूदारकी १३.७.२००५ के टाइम्स ऑफ इंडियामें प्रसिद्ध हुई प्रतिक्रियामें उन्होंने कहा, ‘ आइ.एम.डी.टी. ऐक्ट उसका उद्देश पूरा कर चुका है । अब उसे समाप्त किया जा सकता है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात