NIA जांच की मांग पर सुरक्षित रखा फैसला
रामनवमी शोभायात्रा के दौरान पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा को लेकर कोलकाता उच्चन्यायालय ने माना है कि 10-15 मिनट में पत्थरों को छत पर नहीं ले जाया जा सकता। इसलिए, हिंसा के लिए पहले से तैयारी की गई थी। इसके अलावा न्यायालय ने इस हिंसा की जांच एनआईए से कराने को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
दरअसल, भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने कोलकाता उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। इस याचिका में उन्होंने रामनवमी के दौरान बंगाल में हुई हिंसा की जांच NIA से कराने की मांग की थी। इस मामले में, सोमवार (10 अप्रैल, 2023) को सुनवाई करते हुए उच्चन्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगनानम और न्यायाधीश हिरणमय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए कहा है कि हिंसा के लिए पहले से प्लानिंग की गई थी। लेकिन इसे रोका नहीं जा सका। जाहिर है कि यह खुफिया तंत्र की विफलता के कारण हुआ।
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने इस बात के संकेत दिए हैं कि बंगाल हिंसा की जांच एनआईए को सौंपी जा सकती है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि न्यायालय ने कहा है कि यह मामला गंभीर लग रहा है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि हिंसा के लिए पहले से तैयारियाँ की गई थीं। इसलिए केंद्रीय जांच एजेंसी इस मामले की बेहतर तरीके से जांच कर सकती है।
न्यायालय ने यह भी कहा है कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को पेलेट गन और आँसू गैस का इस्तेमाल करना पड़ा। इसको देखकर ऐसा लगता है कि मामला गंभीर था। हिंसा में तलवारें, बोतलें, टूटे शीशे और तेजाब का इस्तेमाल किया गया और इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इससे पता चलता है कि हिंसा और बड़े पैमाने पर हुई।
न्यायालय ने यह भी कहा है, “रिपोर्टों से पता चलता है कि हिंसा के लिए पहले से तैयारी की गई थी। आरोप है कि छतों से पत्थर फेंके थे। जाहिर है कि पत्थर 10-15 मिनट में छत पर नहीं ले जाया जा सकता। यह खुफिया तंत्र की विफलता है। यहाँ समस्या दो समस्याएँ हैं। पहली यह है कि हिंसा दो समूहों के बीच हुई है। दूसरी समस्या यह है कि एक तीसरा समूह इस हिंसा का लाभ उठा सकता है। ऐसी स्थिति में इसकी जांच केंद्रीय जांच एजेंसी द्वारा की जानी चाहिए। यदि राज्य पुलिस इस मामले की जांच करती है तो उसके लिए यह पता लगाना मुश्किल होगा कि इस हिंसा से किसको लाभ हो रहा।”
जज ने यह भी कहा है, “बीते 4-5 महीनों ने उच्चन्यायालय ने राज्य सरकार को 8 आदेश भेजे हैं। ये सभी मामले धार्मिक आयोजनों के दौरान हुई हिंसा से संबंधित हैं। क्या यह कुछ और नहीं दर्शाता है? मैं बीते 14 सालों से न्यायाधीश हूँ। लेकिन अपने पूरे करियर में ऐसा कभी नहीं देखा।”
स्रोत: ऑप इंडिया