वैशाख कृष्ण सप्तमी , कलियुग वर्ष ५११५
वक्ता : कर्नल दर्शनकुमार कपूर, उपाध्यक्ष, ‘हिंदुस्थान नॅशनल पार्टी’, देहली.
सारणी
- १. हिंदुओंके मंदिरोंमें अन्य धर्मीय स्वच्छता कर्मचारी न हों !
- २. कोई भी क्रांति महिलाओंके सशक्तिकरणके बिना अधूरी होनेके कारण सर्व स्तरोंकी स्त्रियोंके लिए दुर्गा अथवा झांसीकी रानीका रूप धारण करना आवश्यक !
- ३. आतंकवादका उत्तर देना, कुछ रक्षात्मक कार्य करना, यह आतंकवाद नहीं, प्रत्येक हिंदूका धर्म है !
- ४. अण्णा हजारेजीके नारे लगानेपर जितने लोग इकट्ठा हुए, उससे भी अधिक लोगोंको हिंदू धर्मका जयघोष एकत्रित कर सकता है ।
- ५. हमें संपूर्ण कश्मीर चाहिए !
१. हिंदुओंके मंदिरोंमें अन्य धर्मीय स्वच्छता कर्मचारी न हों !
‘श्रीनगरमें हिंदुओंके मंदिरोंमें अन्य धर्मीयोंको स्वच्छता करनेकी अनुमति दी जाए’, ऐसा विचार अयोग्य है । किसी भी मस्जिदमें जानेकी हिंदुओंको अनुमति नहीं है तथा हिंदुओंको वहां कुछ काम करनेकी अनुमति भी नहीं है । इस कारण हिंदुओंके मंदिरोंमें अन्य धर्मीय स्वच्छता कर्मचारी न हों !
२. कोई भी क्रांति महिलाओंके सशक्तिकरणके बिना अधूरी होनेके
कारण सर्व स्तरोंकी स्त्रियोंके लिए दुर्गा अथवा झांसीकी रानीका रूप धारण करना आवश्यक !
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हम ‘भारतमाताकी जय’, ‘गंगा नदीकी जय’, ‘गोमाताकी जय’, ऐसा कहते हैं । हम ‘बैलकी जय हो’ ऐसी पुरुषवाचक जयजयकार कभी नहीं करते । इससे स्त्रीशक्तिका महत्त्व स्पष्ट होता है । कोई भी क्रांति महिलाओंके सशक्तिकरणके बिना अधूरी है । स्त्रियां बच्चोंको सर्वाधिक प्रभावित कर सकती हैं । आजकी पुरुषप्रधान संस्कृतिमें भी स्त्रियोंको आदरणीय और पूजनीय स्थान है । गृहिणी हो अथवा नौकरी, उद्योग करनेवाली मां हो, सत्य तो यह है कि बच्चोंमें धार्मिक शक्तिका पोषण जितना बच्चेकी मां कर सकती है, उतना अन्य कोई भी नहीं कर सकता । आज समाजकी नैतिकताके गिर जानेके कारण स्त्रियोंपर अत्याचार हो रहे हैं । हमें स्त्रियोंमें ऐसी जागृति निर्माण करनी चाहिए कि वे अबला नहीं हैं । हमारी बेटियां, माताएं, बहनें जबतक दुर्गा अथवा झांसीकी रानीका रूप नहीं धारण करतीं, तबतक हमें ऐसा नहीं मानना चाहिए कि क्रांति सफल हुई है ।
३. आतंकवादका उत्तर देना, कुछ रक्षात्मक
कार्य करना, यह आतंकवाद नहीं, प्रत्येक हिंदूका धर्म है !
‘भगवा आतंकवाद’ इस शब्दसे कुछ संगठन अपनेआपको बचानेका प्रयास करते हैं । मैं कहता हूं, ‘इस विषयमें लाज क्यों रखना ?’ प्रत्येक घटनाके दो पहलू होते हैं । वर्ष १८५७ के स्वतंत्रता संग्रामको ब्रिटिशोंने ‘विद्रोह’ कहा था । भारतियोंके लिए वह ‘स्वतंत्रता संग्राम’ था । ‘भगवा आतंकवाद’ यह शासकीय शब्दप्रयोग है । जिस नपुंसक शासनने धर्मांधोंके तुष्टिकरणकी सर्व सीमाएं लांघ दी हैं, उसी शासनके ये शब्द हैं । आतंकवादका उत्तर देना, स्वरक्षा हेतु कुछ रक्षात्मक कार्य करना, यह आतंकवाद नहीं, प्रत्येक हिंदूका धर्म है । प्रत्येक हिंदूका सशस्त्रीकरण होना ही चाहिए । प्रत्येक महिलाका सशक्तिकरण तथा प्रत्येक पुरुषका सशस्त्रीकरण होना ही चाहिए । किसी भी दुराचारीके साथ संघर्ष करनेके लिए बाहुबल आवश्यक है ।
४. अण्णा हजारेजीके नारे लगानेपर जितने लोग इकट्ठा हुए,
उससे भी अधिक लोगोंको हिंदू धर्मका जयघोष एकत्रित कर सकता है ।
५. हमें संपूर्ण कश्मीर चाहिए !
कश्मीरी हिंदुओंने जिस प्रकार संपूर्ण कश्मीरमें संघर्ष किया, वह भी एक पराक्रम ही है । कश्मीरी हिंदू अपना संघर्ष जारी रखें । हम उनके साथ हैं । शासन कहता है, ‘कश्मीर भारतका अविभाज्य अंग है ।’ महाराजा हरिसिंहजीने प्रस्ताव कर कश्मीरको भारतमें विलीन किया है । वर्ष १९६५ तथा १९७१ में कश्मीरका जीता हुआ भूभाग शासनद्वारा शत्रुको लौटा दिया गया । मैंने शासनसे यह प्रश्न पूछा था कि, ऐसे कैसे किया ? परंतु इसका उत्तर मुझे नहीं मिला । हमें पूरा कश्मीर चाहिए ।