राष्ट्रकी अपेक्षा पडोसी धर्मको अधिक महत्त्व देनेवाले नामर्द शासनकर्ता !

ज्येष्ठ कृष्ण १२ , कलियुग वर्ष ५११५

सारणी

१. राष्ट्रहितको तिलांजली देकर शत्रुको ऊधम मचानेके लिए जंगल खुला एवं स्वतंत्र छोडनेवाले शासनकर्ता !
२. शांति एवं निशस्त्र रहनेकी बातको पुष्टि देते रहनेके कारण शत्रुका मनोबल बढता गया और जनता, सेना, सुरक्षा दलका मनोबल क्षीण होनेकी आशंका उत्पन्न होना
३. शासकीय कार्यपद्धतिके चिथडे दुनियाकी वेसपर लटकाकर अपना दायित्व दूसरोंके ऊपर ढकेलकर स्वयं स्वतंत्र होनेवाली निर्लज्ज राजनैतिक मंडली !
४. अनधिकृत रूपमें प्रविष्ट करनेवाले बांगलादेशवासियोंका पश्चिम बंगाल, आसाम तथा बिहारमें सक्रिय सहभाग !
५. विशेष दलका उपयोग हर निश्चित विभागमें न कर उन्हें साधारण पुलिसका कार्य करनेके लिए विवश करनेवाले शासनकर्ता !
६. राष्ट्रीय पहचानपत्रिका न होनेके कारण नागरिकताका अवमूल्यन !
७. मध्यवर्ती विभागको नकली चलनकी सूचना भेजनेकी कोई भी पद्धति उपलब्ध न होनेके कारण कितना नकली भारतीय चलन राजहृत किया गया, यह बात स्पष्ट नहीं है, यह बतानेवाले रिजर्वर्ह बैंकके डेप्युटी गवर्नर !
८. पडोसीधर्म ही राष्ट्रके मूलपर आकर हानिकारक निश्चित होगा

 



श्री. दुर्गेश परूळकर, हिंदू महासभा, डोंबिवली, महाराष्ट्र.

        भारतके पडोसी पाकिस्तान और बांगलादेश नामक राष्ट्र सज्जन, सुविद्य एवं सात्त्विक वृत्तिके नहीं हैं । वह चालाक, धूर्त, षडयंत्रकारी एवं धोखेबाज हैं । उनकी ओर पडोसीधर्मकी दृष्टिसे देखना राष्ट्रके लिए हानिकारक है । ऐसा होते हुए भी भारतीय शासनकर्ता इन धोखेबाज राष्ट्रोंकी ओर पडोसीधर्मकी दृष्टिसे देख रहे हैं । राष्ट्रके लिए हानिकारक शासनकर्ताओंकी इस वृत्तिपर डाली गई एक रोशनी …

१. राष्ट्रहितको तिलांजली देकर शत्रुको

ऊधम मचानेके लिए जंगल खुला एवं स्वतंत्र छोडनेवाले शासनकर्ता !

        ‘अपने पडोसी देश सज्जन, सुविद्य, सुसंस्कृत एवं सात्त्विक वृत्तिके नहीं हैं । वे चतुर, धूर्त, षडयंत्रकारी, धोखेबाज एवं विश्वासघाती हैं । उनसे लडकर उनकी दुष्ट प्रवृत्तिको नष्ट कर ही हम चैनकी सांस ले सकते हैं । यह ही पडोसीधर्म है । हमने निरंतर मानवताका और सुसंस्कृत वृत्तिका विचार किया, उसके अनुसार व्यवहार किया । शत्रुको छोटा भाई, सौतेला भाई समझकर गले लगाया । जितना नहीं करना चाहिए, उतना उससे प्यार किया । उसके कुकृत्योंकी ओर अनदेखा कर मित्रता करनेका निरंतर प्रयास किया । यह करते समय राष्ट्रहितको तिलांजली दी । हमने अपने शौर्यकी, वीरताकी एवं क्षात्रतेजकी परंपरा भूलकर शत्रुके साथ दुर्बल, विवश एवं अवरुद्ध होकर व्यवहार किया; अतएव पहलेसे ही उन्मत्त शत्रुको अपने देशमें ऊधम मचानेके लिए खुला जंगल प्राप्त हुआ ।

 

२. शांति एवं निशस्त्र रहनेकी बातको

पुष्टि देते रहनेके कारण शत्रुका मनोबल बढता गया

और जनता, सेना, सुरक्षा दलका मनोबल क्षीण होनेकी आशंका उत्पन्न होना

        हम निरंतर शांति एवं निशस्त्र रहनेकी बातको पुष्टि देते रहे । परिणामस्वरूप शत्रुको अपने विरोधमें कार्यवाई करनेके लिए प्रलोभन दिखाने जैसे हुआ । धीरे धीरे शत्रु अपने देशकी भूमि निगल रहा था । उस समय शत्रुके ऊपर फौजी कार्रवाई कर उसपर अपना रोब जमानेके अतिरिक्त उसका विश्लेषण करते रहे । उसके लिए समितिकी स्थापना करते रहे । समाजसेवक, विचारवंतोंको बुलाकर चर्चा करते रहें । यह मार्ग राष्ट्रकी सुरक्षाका नहीं है । यह मार्ग जानलेवा एवं हानिकारक है । इस मार्गसे कोई प्रश्न छूटनेवाला नहीं है । उलट शत्रु अधिकांश मात्रामें हमारी भूमि निगल कर हमारे देशकी सीमा खींचेगा । उसका मनोबल बढता जाएगा और जनता, सेना, सुरक्षा दलका मनोबल क्षीण होता जाएगा । यही  सबसे बडा धोखा है ।

 

३. शासकीय कार्यपद्धतिके चिथडे दुनियाकी वेसपर लटकाकर अपना

दायित्व दूसरोंके ऊपर ढकेलकर स्वयं स्वतंत्र होनेवाली निर्लज्ज राजनैतिक मंडली !

        देशके शासकीय कार्यपद्धतिके चिथडे दुनियाकी वेसपर लटकाई हुई देखकर देशाभिमानी जनताकी गर्दन लज्जासे नीचे झुकती है । उस समय मंत्रियोंसे संतरियोंतक हरएक व्यक्ति इसमें अपनी कोई भी चूक नहीं है, ऐसी प्रस्तावना कर अपना दायित्व दूसरेके ऊपर ढकेलनेमें व्यस्त रहता है ।

 

४. अनधिकृत रूपमें प्रविष्ट करनेवाले

बांगलादेशवासियोंका पश्चिम बंगाल, आसाम तथा बिहारमें सक्रिय सहभाग !

अ. पश्चिम बंगालके विधानसभा मतदाता संगमें १८ प्रतिशत अनधिकृत रूपमें प्रविष्ट करनेवाले बांगला देशवासियोंको मतदानका अधिकार प्राप्त हुआ है ।
आ. आसामके विधानसभा मतदाता संगकी मतदाता सूचीमें २८ प्रतिशत मतदाता बांगला देशके हैं,  एक सर्वेक्षणद्वारा यह स्पष्ट हुआ है ।
इ. बिहारके किशनगंज जनपदमें ९६ प्रतिशत विस्थापित बांगला देशवासियोंने चुनावकी राजनीतिमें सक्रिय सहभाग लिया ।

 

५. विशेष दलका उपयोग हर निश्चित विभागमें न कर

उन्हें साधारण पुलिसका कार्य करनेके लिए विवश करनेवाले शासनकर्ता !

अ. ‘इंडो-तिबेट’ सीमापर पुलिस दलकी स्थापना की गई । इस दलको उत्तम शिक्षण एवं अस्त्रशस्त्र दिए गए, यह दल सभी प्रकारके साधनोंसे युक्त  है । पहाडीके युद्धतंत्रके लिए अनुरूप रहना इस दलकी विशेषता है । इस दलका उपयोग वर्तमानमें अधिकोषके बाहरी सुरक्षा हेतु एवं उसके समान कार्यके लिए किया जाता है ।
आ. ‘दि नेशनल सिक्युरिटी गार्ड’, अर्थात ‘राष्ट्रीय सुरक्षा रक्षक’ नामका एक विशेष कमांडो दल है । इसका उपयोग अत्यंत महत्त्वपूर्ण व्यक्तिकी (वीआइपी) सुरक्षाके लिए किया जाता है ।
इ. केंद्रीय आरक्षित दलका कार्य विद्रोहके विरुद्ध लडनेका है । उन्हें पुलिसका कार्य करने हेतु आजकल ऊधम मचाए जानेवाले विभागमें भेजा जाता है ।

 

६. राष्ट्रीय पहचानपत्रिका न होनेके कारण नागरिकताका अवमूल्यन !

        राष्ट्रीय पहचानपत्रिकाके विषयमें कृतिदल कहते हैं, ‘हमारे देशमें राष्ट्रीय पहचानपत्रिकाके लिए कोई भी संयोजन नहीं है; परंतु राष्ट्रीय नागरिक पंजीकृतबहीका संयोजन भी कार्यान्वित नहीं किया गया है । कुछ राज्योंमें चुनाव पहचानपत्रिका देनेके कार्यमें करोडों रुपए व्यर्थ गए हैं । पारपत्र, चुनाव, पहचानपत्रिका, शिधापत्रिका इत्यादिको नागरिकताके प्रमाण स्वरूप लेने योग्य माना गया है । ये सभी पत्रिकाएं शासकीय विभागमें  सैकडों रुपए व्यय कर संबंधित व्यक्तियोंको संतुष्ट करनेके लिए सहजतासे प्राप्त कर सकते हैं । देशकी नागरिकताका हम और कितना अवमूल्यन करेंगे ?’

 

७. मध्यवर्ती विभागको नकली चलनकी सूचना भेजनेकी

कोई भी पद्धति उपलब्ध न होनेके कारण कितना नकली भारतीय चलन

राजहृत किया गया, यह बात स्पष्ट नहीं है, यह बतानेवाले रिजर्वर्ह बैंकके डेप्युटी गवर्नर !

        राजहृत (जप्त) किए गए नकली चलनकी सूचना नियुक्त हुए मध्यवर्ती विभागकी ओर भेजनेकी कोई भी पद्धति अपने पास अस्तित्वमें नहीं है,  रिझर्व बैंकके डेप्युटी गवर्नरने ऐसा बताया था; अतएव आजतक अपने देशमें कितना नकली भारतीय चलन राजहृत किया गया, यह बताना  हमारे लिए असंभव है ।

 

८. पडोसीधर्म ही राष्ट्रके मूलपर आकर हानिकारक निश्चित होगा

        पाकिस्तानके विषयमें दया करनेवाले नेता इस देशपर सत्ता कर रहे हैं । उन्हें राष्ट्रहितकी अपेक्षा पडोसीधर्म अधिक महत्त्वपूर्ण प्रतीत होता है । एक दिन ‘यह पडोसीधर्म ही राष्ट्रके मूलपर आएगा और राष्ट्रका नाश करेगा’, ऐसा भय साधारण नागरिकको प्रतीत हो रहा है ।’
– श्री. दुर्गेश परुलकर (‘धर्मभास्कर’, जुलाई २०११)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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