कानून द्वारा ईसाई मिशनरियों को निशाना बनाया जा रहा है – DMK सरकार
सर्वोच्च न्यायालय में धर्मांतरण विरोधी कानून को लेकर जारी बहस के बीच तमिलनाडु सरकार ने सोमवार (1 मई 2023) को अपना पक्ष रखा। तमिलनाडु की स्टालिन सरकार का कहना है कि ईसाई धर्म का प्रसार करने वाली मिशनरियों के बारे में कुछ भी अवैध नहीं है, जब तक कि वे ऐसा करने के लिए गैरकानूनी साधनों का उपयोग नहीं करते हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत का संविधान लोगों को ‘अपने धर्म को शांति से फैलाने’ और ‘अपनी मान्यताओं को बदलने’ का अधिकार देता है।
Missionaries spreading Christianity not illegal unless it is against public order, health or morality: Tamil Nadu to Supreme Court
report by @DebayonRoy #SupremeCourtofIndia #SupremeCourt @AshwiniUpadhyay https://t.co/wbNenTuCND
— Bar & Bench (@barandbench) May 1, 2023
डीएमके (DMK) के नेतृत्व वाली सरकार ने शीर्ष न्यायालय में कहा कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ धर्मांतरण विरोधी कानूनों का दुरुपयोग होने का ज्यादा खतरा है। देश के नागरिकों को स्वतंत्र रूप से अपना धर्म चुनने की अनुमति दी जानी चाहिए। नागरिकों की व्यक्तिगत आस्था और निजता पर सवाल उठाना उचित नहीं।
सर्वोच्च न्यायालय में भाजपा नेता व एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने एक जनहित याचिका दायर की थी। इसमें जबरन धर्मांतरण के खिलाफ सीबीआई जाँच और धर्मांतरण विरोधी कानून का मसौदा तैयार करने की मांग की गई थी। इस पर तमिलनाडु सरकार की ओर से कहा गया है कि राज्य में पिछले कई सालों से जबरन धर्मांतरण कराने का कोई भी मामला सामने नहीं आया है।
स्टालिन सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में यह भी कहा गया है कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार देता है। इसलिए, ईसाई धर्म का प्रसार करने वाले मिशनरियों के कार्यों को कानून के खिलाफ नहीं देखा जा सकता है। अगर यह नैतिकता, स्वास्थ्य जैसी चीजों के खिलाफ है, तो इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
इसके साथ ही राज्य सरकार ने स्पष्ट किया कि राज्यों के विभिन्न धर्मांतरण विरोधी कानूनों के तहत सजा पर कोई डेटा नहीं है। नागरिक उस धर्म को चुनने के लिए स्वतंत्र हैं, जिसका वे पालन करना चाहते हैं। याचिकाकर्ता की आलोचना करते हुए सरकार ने आगे कहा कि ईसाई मिशनरियों को निशाना बनाने की कोशिश की जा रही है।
स्रोत : ऑप इंडिया