उज्जैन की सलोनी भंडारी को 25 साल की उम्र में नई पहचान मिल गई है। श्री मल्लि दर्शना श्रीजी मसा के नाम से जानी जाएगी। उसने सभी सुखों को त्यागकर संयम की राह चुनी है। 25 साल की सलोनी एमबीए पास है और इंदौर स्थित एक कंपनी में जॉब करती थी। पिता उज्जैन में जूलरी के कारोबारी हैं। सलोनी ने परिवार को जब अपना फैसला सुनाया तो लोगों ने सहस्त्र इसे स्वीकार कर लिया। सलोनी भंडारी की दीक्षा पूरी हो गई है। उज्जैन इसके लिए पांच दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। अब सलोनी भंडारी जैन साध्वी है।
परिवार से नहीं रहेगा कोई नाता रिश्ता
दरअसल, उज्जैन के रहने वाले जूलर विमल भंडारी की बेटी सलोनी ने जैन साध्वी की दीक्षा ली है। शहर के अरविंद नगर स्थित मनोरमा-महाकाल परिसर में विरती मंडप बना था। यहां पांच दिनों तक कार्यकर्म चला है। इसमें जैन समाज के हजारों लोग पहुंचे थे। जैन साध्वी बनने के लिए सलोनी सांसारिक मोह-माया का परित्याग कर दिया है। उसने हाथी पर बैठकर सांसारिक वस्तुओं को लुटाई है। अब सलोनी का परिवार से कोई नाता रिश्ता नहीं रहेगा।
रीति-रिवाज से दूर हो गई सलोनी
सलोनी भंडारी अभी 25 साल की है। मुमुक्षु सलोनी भंडारी बुधवार को सभी रीति-रिवाज से दूर हो गई हैं। संगीत की प्रस्तुति दी है। इस दौरान परिवार के लोगों ने सलोनी को विदा किया है। ये पल बेहद भावुक करने वाला होता है क्योंकि इसके बाद परिवार के लोगों का कोई संबंध सलोनी से नहीं रहेगा। समाज के हजारों लोगों की मौजूदगी में सलोनी ने दीक्षा ग्रहण की है।
एमबीए की पढ़ाई की है सलोनी
जैन साध्वी बनीं सलोनी ने उज्जैन के एक कॉलेज से एमबीए की पढ़ाई की है। इसके बाद सलोनी ने इंदौर में नौकरी की है। साथ ही पिता का कारोबार भी संभाला है। इसके बाद सलोनी ने सब कुछ छोड़कर जैन साध्वी बनने का फैसला किया। जैन मुनि की दीक्षा ली जो कि बहुत कठिन होता है। दीक्षा लेने के बाद संयमित जीवन जीना होता है। इसमें भोग-विलास की जिंदगी नहीं होती है। साथ ही आजीवन पैदल ही चलना होता है।
सलोनी करोड़पति पिता की बेटी है। घर में ऐशो-आराम की सारी सुविधाएं हैं। छोटी उम्र में सलोनी का सांसारिक जिंदगी से मोहभंग हो गया। परिवार ने भी सलोनी का साथ दिया है।
स्रोत : नवभारत टाइम्स