भारतीयो, केवल ‘हिंदू राष्ट्र’ नहीं, अपितु ‘हिंदू विश्व’ होने हेतु प्रयत्नरत रहें !

वैशाख कृष्ण नवमी , कलियुग वर्ष ५११५

वक्ता : श्री. सुबेशसिंग यादव, मारो परिवार, गुजरात.


सारणी


 

१. क्यों न संपूर्ण विश्वको ही हिंदू राष्ट्र बनाएं ?

        ‘भारत हिंदू राष्ट्र बने, इसलिए हम प्रयत्न कर रहे हैं । मनमें प्रश्न आता है कि हिंदू ‘राष्ट्र’ ही क्यों ? पूरा ‘विश्व’ क्यों नहीं ?

 

२. सनातन हिंदू धर्मकी व्याप्ति (व्यापकता)

        क्या आपको यह पता है कि संपूर्ण विश्वमें ही सनातनी थे ? मैं इसके १-२ उदाहरण देता हूं ।

२ अ. ४००० वर्ष पूर्व विश्वमें अन्य धर्मीय नहीं,केवल सनातनी; अर्थात हिंदुओंका अस्तित्व होना

        १३७ वर्ष पूर्व बहाई नामक धर्मका उदय हुआ । ३०० से ५०० वर्ष पूर्व सिख धर्म आया । सिख धर्म हिंदुओंकी रक्षा करनेके लिए बनाया था; परंतु अल्पसंख्यकोंको लाभ दिलानेके लिए आज पंजाबमें कुछ लोगोंने सिखोंको हिंदू धर्मसे अलग किया । वे आज अपनेआपको हिंदू नहीं मानते । १४०० वर्ष पूर्व इस विश्वमें एक भी मुसलमान नहीं था । २१०० वर्ष पूर्व एक भी ईसाई नहीं था । २६०० वर्ष पूर्व ना कोई बौद्ध था, ना जैन । ३५०० वर्ष पूर्व पारसी अर्थात अग्निपूजक भी कोई नहीं था । ४००० वर्ष पूर्व एक भी यहूदी नहीं था । अब्राहमसे यहूदी आरंभ हुआ । तो फिर ४००० वर्ष पूर्व कौन थे ? संपूर्ण विश्वमें केवल सनातनी थे, मात्र सनातनी । मैं इसका एक प्रमाण देता हूं ।

२ आ. अमेरिका महाद्वीपकी इंका तथा माया संस्कृति

        हमें व्यक्तिके वंशज अथवा पूर्वजको पहचानना हो, तो ‘डी.एन्.ए.’ जांच करनी पडती है; परंतु वस्तु पहचाननेके लिए ‘पॅटर्न’ देखना पडता है । अमरिकाकी ‘इंका’ और ‘माया’ संस्कृतिका जो ‘पॅटर्न’ है, वह सनातन धर्मका ‘पॅटर्न’ है । यह हुई अमेरिका महाद्वीपकी बात ।

२ इ. यूरोप महाद्वीप और हिटलर

        मैं आपको यूरोप महाद्वीपमें ले जाता हूं । आप जानते हैं कि कुछ समयके लिए हिटलरने तानाशाही राज्य किया । हिटलरके ध्वजपर स्वस्तिकका चिह्न था । स्वस्तिक यूरोपमें किसलिए गया ? ‘स्वस्तिक’ एक स्पष्ट सबूत है । उससे यह स्पष्ट होता है कि यूरोपमें सनातनी थे ।

२ ई. पश्चिम

        मैं अब अरब राष्ट्रोंके विषयमें बताता हूं । मक्काका काबागृह महादेवका मंदिर है ।

२ उ. पूर्व

        इंडोनेशियामें आज भी हनुमानजीकी प्रतिमा मार्गपर दिखती है । इसके कई सबूत हैं । थाइलैंड एक छोटासा राष्ट्र है । इस राष्ट्रका राजा जिस स्थानपर बैठता है, उस स्थानको ‘अयोध्या’ कहते हैं । क्या यह इस बातका सबूत नहीं कि वहां सनातनी लोग थे ?

 

३. पूरे विश्वको ही हिंदू राष्ट्र बनाना आवश्यक !

        मैं आपको यह बतानेका प्रयास कर रहा हूं कि संपूर्ण विश्वमें सनातनी लोग होनेके कारण हम केवल भारतको हिंदू राष्ट्र बनानेका विचार क्यों कर रहे हैं ? पूरे विश्वको क्यों नहीं ? कई विद्वानोंने बताया कि अल्ताई पर्वत और हिंदूकुश पर्वतमालापर २०० वर्ष प्रथम भगवा लहराता था तथा लाहौर और कराचीमें विभाजनसे पूर्व शंखनाद होता था । कश्मीरमें २५ वर्ष पूर्वतक तो वहांके लोग वैदिक पद्धतिसे जीवनयापन करते थे ।

 

४. विश्वको चलानेवाले तीन तंत्र – राजतंत्र, विज्ञानतंत्र एवं धर्मतंत्र तथा उनका कार्य

        आर्यावर्तमें बिहार, बंगाल, असम, केरल, अरुणाचलमें हिंदू अल्पसंख्य हो रहे हैं अथवा हुए हैं; परंतु हम अपने ही राष्ट्रमें अल्पसंख्य क्यों हुए ? इसके अनेक कारण हमें पता होंगे; परंतु एक प्रमुख कारण जो हमें पता नहीं, वह मैं बताता हूं । इस विश्वको तीन तंत्र चलाते हैं, ‘राजतंत्र, विज्ञानतंत्र तथा धर्मतंत्र’ । चौथा तंत्र ढूंढनेका मैं पिछले ५७ वर्षोंसे प्रयत्न कर रहा हूं । आपको मिल जाए, तो मुझे बताना । राजाका अपना कुछ काम है । उसके अनुसार विज्ञान और धर्मका भी स्वतंत्र काम है ।

४ अ. राजतंत्र

        राजतंत्रका काम है, प्राकृतिक संसाधनोंका उचित विभाजन करना, लोगोंके जीवनकी रक्षा करना और धर्म एवं विज्ञानका उचित समन्वय रखकर लोगोंको मोक्षके मार्गपर, अर्थात उत्तरोत्तर प्रगतिपथपर मार्गक्रमण करने हेतु योग्य दिशादर्शन करना ।

४ आ. विज्ञानतंत्र

        विज्ञानका काम है, जीवनमें आनेवाली बाधाएं दूर करना और उसके लिए शोध करते रहना । इससे अधिक विज्ञानका कोई काम नहीं । लोग विज्ञानका दुरुपयोग कर रहे हैं, यह अलग बात है ।

४ इ. धर्मतंत्र

        धर्मका काम है, जीवके मनमें निर्माण होनेवाले प्रश्नोंके उत्तर देना और उसे मोक्ष दिलाना ।

४ इ १. धर्मके बाह्य नहीं, आंतरिक, मनमें उठनेवाले प्रश्नोंके उत्तर देना

        मैंने सनातन धर्मकी कुछ ही शब्दोंमें संक्षिप्त व्याख्या की है । धर्म एक सिक्केके समान है । उसकी एक बाजू घिसी हुई हो और उस सिक्केकी सहायतासे हम हाटमें (बाजारमें) कुछ क्रय करने जाएं, तो हमें कुछ भी नहीं मिलेगा । दोनों बाजू अच्छी होनी चाहिए ।

        धर्मके भी दो अंग हैं । एक बाह्य और दूसरा आंतरिक । बाह्य अंग हमें पता है । मंदिर अथवा तीर्थक्षेत्र होने चाहिए । यह बाह्य अंग है । आंतरिक अंग अर्थात मनमें उठनेवाले प्रश्नोंके उत्तर देना । मैं कौन हूं ? कहांसे आया हूं ? मेरा जन्म इस पृथ्वीपर क्यों हुआ ? जिस कार्यके लिए मैं आया हूं, उसे मैं कैसे समझ सकता हूं ? समझ जानेपर उसकी पूर्ति कैसे करूं ? कार्यपूर्ति हो, न हो, तो परिणाम क्या होंगे ? यह जीवन क्या है ? इसे किसने, कब और किसलिए बनाया है ?’ ये प्रश्न सभीके हैं । हिंदू, धर्मांध, ईसाई, बौद्ध, जैन, इतना ही नहीं, अपितु साम्यवादियोंके भी यही प्रश्न हैं । इन प्रश्नोंके उत्तर देना, धर्मका काम है । आज धर्मांध, ईसाई, बौद्ध, इन्हें धर्मके विषयमें पूछा जाए, तो वे दो मिनटमें बताएंगे; परंतु एक हिंदूसे धर्मके विषयमें पूछा जाए, तो वह चुप बैठेगा ।

 

५. सनातन हिंदू धर्मके अंग

        हिंदू धर्म, जीवित धर्म है । एक मनुष्यसमान वह भी जीवित है । उसे एक सिर, दो कान, दो नेत्र, एक नाक, दो हाथ, दो पांव, छाती तथा कमर सबकुछ है ।

५ अ. सिर

        आप पूछेंगे कि हिंदू धर्मका सिर कौनसा है ? ४ वेद, ६ शास्त्र, १८ पुराण, गीता, रामायण, भागवत, ये सब हिंदू धर्मका मस्तिष्क है । 

५ आ. नेत्र

        हिंदू धर्मके दो नेत्र हैं – गाय और गंगा । आप एक क्षण विचार कीजिए । हिंदू धर्मसे गाय और गंगाको दूर करनेपर क्या बचेगा ? हिंदू धर्म ही अंधा हो जाएगा । कुछ भी शेष नहीं बचेगा ।

५ इ. कान

        हिंदू धर्मके दो कान हैं । ये कान द्रौपदीकी प्रार्थना और गजका कहा भी सुनते हैं । इसका अर्थ एक ही है, विश्वमें सनातन हिंदू धर्म ही एक ऐसा धर्म है, जो मनुष्य, असुर, प्राणी तथा वनस्पति सभीकी सुनता है । अन्य किसी भी धर्ममें ऐसा नहीं होता ।

५ ई. नाक

        हिंदू धर्मकी एक नाक भी है, वह है हमारे गुरु ! सनातन हिंदू धर्मके समान अन्य किसी भी धर्ममें गुरुपरंपरा नहीं है । यह परंपरा हमारे धर्मकी शोभा है ।

५ उ. मुख

        हमारा मुख ही धर्मका मुख है । इसके द्वारा हम नामस्मरण करते हैं और लोगोंको परोपकार करनेके लिए कहते हैं ।

५ ऊ. हाथ

        धर्मके दो हाथ हैं । वे हैं, संत-महात्मा ।

५ ए. पांव

        आपके जैसे भक्तगण धर्मके दो पांव हैं । वे इस धर्मको लेकर चलते हैं ।     

५ ऐ. छाती

        उदारता ही धर्मकी छाती है । सनातन हिंदू धर्म अत्यंत उदार है । एक बार एक व्यक्तिसे एक पादरीने कहा, ‘‘ईसाई बनो ।’’ व्यक्तिने पूछा, ‘‘ठीक है । मुझे क्या करना होगा ?’’ पादरीने उत्तर दिया, ‘‘केवल जीजसकी पूजा करनी होगी । और कुछ नहीं करना ।’’ व्यक्तिने बताया, ‘‘ठीक है । विचार करूंगा ।’’

         तत्पश्चात एक मौलवीने उस व्यक्तिसे कहा, ‘‘भैया, तू मुसलमान बन ।’’ व्यक्तिने पूछा, ‘क्या करना होगा’ । मौलवीने कहा, ‘‘केवल अल्लाहको याद करना होगा । और कुछ नहीं कर सकोगे ।’’

        एक दिन उस व्यक्तिने सभीको इकट्ठा कर बताया, ‘‘मैं हिंदू ही ठीक हूं । हिंदू धर्ममें मैं अल्लाहको याद कर सकता हूं, जीजसकी पूजा कर सकता हूं, राम और कृष्णकी उपासना भी कर सकता हूं ।’’ संक्षेपमें, हिंदू धर्ममें उदारताकी छाती है । सभीको साथ लेकर चलनेवाला एकमात्र धर्म, सनातन हिंदू धर्म है !

५ ओ. रीढ

        धर्मकी रीढ अर्थात एक सैनिक । हम उन पूर्वजोंके वंशज हैं, जिनपर औरंगजेबने अनन्वित अत्याचार किए तब भी उन्होंने अपना धर्म नहीं छोडा । इस कारण कहा है कि अपने धर्मकी रीढ एक सैनिक जैसी है ।

 

६. सनातन हिंदू धर्मकी सीख पूरे विश्वमें हिंदू राष्ट्र ला सकेगी !

        एक सैनिक कमर कसकर खडा हो जाए, तो शत्रु कितना भी बलवान हो, उसका विनाश अटल है । उसी प्रकार एक सनातनीने कमर कस ली, तो वह विश्वकी सभी बुराइयोंका नाश कर सकता है । कई लोग पूछते हैं कि यह कैसे संभव है ? एक बार जर्मनीमें एक भीत बनाई और उसके दोनों ओर भारी वजन लगाया । सभीको लग रहा था कि जर्मनीकी यह भीत कभी नष्ट नहीं होगी; परंतु क्या आज वह भीत है ? नहीं । वह नष्ट हो गई । हम भी केवल भारतमें ही नहीं, संपूर्ण विश्वमें हिंदू राष्ट्र ला सकते हैं; क्योंकि सनातन हिंदू धर्म पहले सर्वत्र था । इसी कारण भारत जगद्गुरु था । आज भी वह जगद्गुरु बन सकता है; किंतु उसके लिए एक ही मार्ग है, और वह है, सनातन हिंदू धर्म तथा संस्कृतिका मल्हम सभीको देना होगा ।

     लोगोंको सनातन हिंदू धर्मकी सीख देनी होगी । उनके अंतर्मनके ‘मैं कौन हूं ?, किस लिए आया हूं ?’, जैसे सभी प्रश्नोंके उत्तर देने होंगे । ऋषि-मुनियोंने संपूर्ण विश्वको आनंदमय किया । हममें एक ही न्यूनता है । अन्य धर्मप्रसारक धर्मका प्रसार कर रहे हैं । हम भी प्रसारक थे । ७०० वर्ष पूर्व जगद्गुरु शंकराचार्य प्रसारकके रूपमें धर्मप्रसारके लिए बाहर निकले । उन्होंने सारे विश्वको आनंदमय बनाया; इसीलिए वे जगद्गुरु बने । हमें दूरदृष्टि रखनी होगी । संपूर्ण विश्वमें सनातन धर्म था और हम पुनः उसे प्रस्थापित कर सकते हैं । यह ध्येय रखें, तो हम निश्चय ही विश्वगुरु बनेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं ।’

        (‘मानवजातिके कल्याण हेतु विश्वभर हिंदू धर्मका प्रसार हो, इसलिए ‘सनातन संस्था’ कार्यरत है ।’ – संकलनकर्ता)

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