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रूस के एंटोन एंड्रीव ने काशी में अपनाया सनातन धर्म, दीक्षा लेकर बने अनंतानंद

इस मठ में 80 देशों के 15 हजार शिष्य ले चुके हैं दीक्षा

रूस के एंटोन एंड्रिव अब अनंतानंद नाथ हो चुके हैं। वाराणसी के वाग्योग चेतना पीठम् में अनुष्ठान करके मां तारा की तांत्रिक दीक्षा ली। चेतना पीठम् के अध्यक्ष पंडित आशापति शास्त्री ने उन्हें दीक्षा मंत्र दिया। हिंदू रीति-रिवाज से नामकरण के साथ ही उनका गोत्र भी कश्यप कर दिया गया है।

पंडित आशापति शास्त्री ने कहा कि मुस्लिम और क्रिश्चियन देशों के भी लोग गुरुदीक्षा ले चुके हैं। पूरी दुनिया में यूक्रेन और रूस से दीक्षा लेने वालों की संख्या काफी ज्यादा है। गुरु वागीश शास्त्री और मेरे द्वारा अब तक 80 देशों के 15 हजार विदेशी शिष्यों को दीक्षा दी गई है। उनमें से एक एंटोन एंड्रिव की गुरु दीक्षा आज पूरी हुई है।

एंटोन ने शक्तियों को महसूस किया

पंडित आशापति ने बताया कि सेंटपीट्सबर्ग के एंटोन ने बहुत सी अदृश्य शक्तियों को महसूस किया था। इसके बाद वो वाराणसी आए। कहा कि मुझे मंत्र दीक्षा लेनी है। उन्होंने कहा कि दीक्षा लेने की परंपरा 1980 में शुरू की गई थी। तब से लगातार यह काम चल रहा है। जो व्यक्ति पात्र है, उसी को दीक्षा दी जाती है।

आइए, में जानते हैं एंटोन से अनंतानंद नाथ बने रूसी नागरिक के बारे में…

मनोवैज्ञानिक हैं एंटोन

एंटोन एंड्रिव रूस में एक मनोवैज्ञानिक हैं। उन्होंने कहा कि मैं प्राइवेट में क्लीनिक चलाता हूं। उन्हें रूस में बनारस के वागीश शास्त्री के बारे में पता चला और कुंडलिनी जागृत करने की इच्छा हुई। जनवरी, 2015 में पंडित वागीश शास्त्री के संपर्क करने भारत आए। इन्होंने कुछ कक्षाएं भी ली, लेकिन पूरा नहीं कर पाए। साल 2016 में आए, लेकिन कक्षाएं पूरी नहीं हुईं।

कुंडलिनी जागृत की कक्षा ली

कई व्यवधानों के बाद 2022 में गुरु वागीश शास्त्री का निधन हो गया था। अब इस साल 25 अप्रैल को एंटोन एंड्रिव पंडित आशापति शास्त्री के पास पहुंचे। उन्होंने कुंडलिनी जागृत की इच्छा जाहिर की। 10 दिन की कुंडलिनी जागृत की कक्षा ली। इसके बाद 5 दिन स्वतंत्र ध्यान के लिए छोड़ दिया गया। इन्होंने मां तारा शक्ति का पाठ किया। मां तारा काली का ही दूसरा रूप हैं। ध्यान के दौरान इन्हें मां के यंत्र दिखे।

पहली बार में एंटोव को नहीं मिला भगवान का दर्शन

पंडित आशापति ने बताया कि एंटोन इस अनुभूति के बाद उनके पास आए और बोले कि इन्हें इसके आगे जाना है। हमने कहा कि इसकी एक प्रक्रिया होती है। जिसे जिसकी आपकी अंतरात्मा कहे, उसका ध्यान करो। बनारस में तारापीठ और शिवाकाली स्थान पर पहुंचे, मगर ध्यान के दौरान कोई अनुभूति नहीं हुई। निराश होकर मठ में लौटे। फिर यहां पर ध्यान लगवाया। वे दोबारा तारापीठ गए। रात को डेढ़ बजे कुंडलिनी साधना में थे। अचानक से इन्हें छाया की अनुभति हुई। ध्यान में थे, तो अगल-बगल कुछ आभास हुआ।

पंडित आशापति ने कहा कि इसके आगे की बातें गोपनीय हैं, जिन्हें हम नहीं बता सकते। एंटोव मेरे पास आए और अपनी अनुभति जाहिर की, तब जाकर हम लोग गुरु दीक्षा की ओर आगे बढ़े और आज इन्हें विधि-विधान से पूजा कराकर गुरु दीक्षा प्रदान की है। अब से इनका नाम एंटोन एंड्रिव से बदलकर अनंतानंद नाथ कर दिया गया है। गोत्र कश्यप दिया गया है।

10 दिन में भी जागृत हो सकती है कुंडलिनी

पंडित आशापति बताते हैं कि ईश्वर 6 महीने में या 2 साल बाद भी दर्शन दे सकते हैं। जब यह होता है तो ही गुरुदीक्षा दी जाती है। इसके लिए कुंडलिनी जागृत करना सबसे जरूरी है। कोई साल भर में कर पाता है, कोई 10 दिन में तो कोई कभी भी नहीं। कुंडलिनी जागृत कर लेने वाले को ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि वह दुनिया की कोई भी वस्तु प्राप्त कर सकता है। ऐसा नहीं है। यह केवल आध्यात्मिक शक्ति की अनुभूति के लिए है।

स्रोत: दैनिक भास्कर

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