वैशाख कृष्ण नवमी , कलियुग वर्ष ५११५
वक्ता : श्री. बी.आर्. हरन, ज्येष्ठ पत्रकार, चेन्नई, तमिलनाडु.
सारणी
- १. आजकलके बिकाऊ प्रसारमाध्यम !
- २. प्रसारमाध्यमोंमें साम्यवादी, वामपंथी, अल्पसंख्यक तथा तथाकथित निरीश्वरवादियोंका वर्चस्व होना
- ३. मूलभूत कारणोंकी नहीं, केवल परिणामोंकी चर्चा करनेवाले प्रसारमाध्यम !
- ४. हिंदुओंका धर्मांतरण करनेवाले ग्राहम स्टेन्सकी हत्याकी चर्चा करनेवाले; परंतु धर्मांतरण रोकनेके लिए कार्यरत पू. स्वामी लक्ष्मणानंदजी की हत्याके विषयमें मौन रहनेवाले प्रसारमाध्यम !
- ५. पाकिस्तानी आतंकवादियोंको उनके विरोधमें कार्यरत भारतीय सुरक्षा दलके सैनिकोंकी प्रत्येक गतिविधि दिखानेवाले प्रसारमाध्यम !
- ६. ईसाई स्वयंसेवी संगठनोंको भारतविरोधी गतिविधियोंके लिए मिलनेवाले विदेशी धनके संदर्भमें कोई जानकारी प्रसिद्ध न करनेवाले प्रसारमाध्यम !
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७. भारतमें हिंदुत्व समाप्त करनेका एक ही समान उद्देश्य रख कार्य करनेवाले विषैले प्रसारमाध्यम !
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८. प्रसारमाध्यमोंद्वारा राष्ट्रीयत्वसे संबंधित बातोंपर आघात !
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१ ०. हिंदू संप्रदायोंद्वारा संचालित शैक्षिक संस्थाओंमें ‘पत्रकारिता पाठ्यक्रम आरंभ किया जाए ।’
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१. आजकलके बिकाऊ प्रसारमाध्यम !
‘स्तंभ तथा संपादकीय’ बाजारव्यवस्थाके दांवपेंचोंके साधन बन गए हैं तथा आजके ‘इलेक्ट्रॉनिक’ माध्यमोंद्वारा आयोजित चर्चा और ‘रियलिटी शो’ का भी ऐसा ही है । ‘लाभ कमानेका उद्देश्य रखना चूक नहीं; परंतु वह नीतिसे प्राप्त करना चाहिए । यदि उद्देश्य धार्मिक हो, तो मार्ग भी धार्मिक होता है । एक अज्ञातका वचन है, ‘यदि आप समाचार-पत्र नहीं पढते, तो आपको जानकारी नहीं मिलती और यदि पढते हैं, तो आपको अनुचित जानकारी मिलती है ।’
२. प्रसारमाध्यमोंमें साम्यवादी, वामपंथी,
अल्पसंख्यक तथा तथाकथित निरीश्वरवादियोंका वर्चस्व होना
आजकल क्या हो रहा है ? भारतमें एक-दोका अपवाद छोड दें, तो अन्य सभी प्रसारमाध्यम राक्षस बन गए हैं । अधिकांशतः सभी पत्रिकाएं तथा दूरदर्शन प्रणाल (चैनल) राष्ट्रप्रेमी नहीं हैं । उनके उद्दिष्टमें भी स्वार्थ भरा है । नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षताके चलते स्वतंत्रताके ६३ वर्षोंमें प्रसारमाध्यमोंमें साम्यवादी, वामपंथी, अल्पसंख्यक, तथाकथित निरीश्वरवादियोंका बोलबाला है ।
३. मूलभूत कारणोंकी नहीं, केवल परिणामोंकी चर्चा करनेवाले प्रसारमाध्यम !
गोधरा अग्निकांड कारण था, जबकि (गुजरात) दंगे उसका परिणाम । आज १० वर्षोंके उपरांत भी प्रसारमाध्यम जानबूझकर कारणोंके विषयमें नहीं, परिणामोंके संदर्भमें बता रहे हैं ।
४. हिंदुओंका धर्मांतरण करनेवाले ग्राहम
स्टेन्सकी हत्याकी चर्चा करनेवाले; परंतु धर्मांतरण रोकनेके लिए
कार्यरत पू. स्वामी लक्ष्मणानंदजी की हत्याके विषयमें मौन रहनेवाले प्रसारमाध्यम !
पू. स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वतीजीकी माओवादियोंने ईसाई स्वयंसेवी संस्थाओंकी सहायतासे हत्या की । ग्राहम स्टेन्स (ऑस्ट्रेलियाके ईसाई मिशनरी) की भी हत्या की गई थी । स्टेन्स धर्मांतरण करते थे, इसलिए उनकी हत्या हुई । पू. स्वामी लक्ष्मणानंद धर्मांतरण रोकते थे । वे ४०-५० वर्षसे यही कार्य करते थे । धर्मांतरण रोकनेके कारण उनकी हत्या की गई । धर्मनिरपेक्षतावादी प्रसारमाध्यमोंकी मानसिकता देखिए ! आज भी ये प्रसारमाध्यम ग्राहम स्टेन्सकी हत्याके विषयमें बताते हैं; परंतु पू. स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वतीजीकी हत्याके विषयमें एक शब्द भी नहीं बोलते ।
५. पाकिस्तानी आतंकवादियोंको उनके विरोधमें कार्यरत
भारतीय सुरक्षा दलके सैनिकोंकी प्रत्येक गतिविधि दिखानेवाले प्रसारमाध्यम !
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मुंबईपर हुए आतंकवादियोंके आक्रमणके समय निरंतर ४८ घंटे ‘इलेक्ट्रॉनिक’ प्रसारमाध्यमोंने पाकिस्तानी आतंकवादियोंको भारतीय सुरक्षा दलके सैनिकोंकी प्रत्येक गतिविधि दिखाई । पाकिस्तानमें बैठे-बैठे वहांके आतंकवादी यहांके ‘होटल’में आतंकवादियोंको दूरभाषपर उनके विरोधमें कार्यवाही करनेवाले सुरक्षा दलकी गतिविधियां बता रहे थे । हमारे ‘यूपीए’ शासनको इन प्रसारमाध्यमोंपर लगाम लगानेमें कोई रस नहीं था । ऐसी घटनाएं केवल भारतमें ही हो सकती हैं ।
६. ईसाई स्वयंसेवी संगठनोंको भारतविरोधी गतिविधियोंके लिए
मिलनेवाले विदेशी धनके संदर्भमें कोई जानकारी प्रसिद्ध न करनेवाले प्रसारमाध्यम !
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‘कुडमकोलम’ समस्याने भारतमें भारतविरोधी गतिविधियोंके लिए आनेवाले विदेशी धनका विषय सामने लाया । स्वयंसेवी संस्थाओंके लिए बडी मात्रामें विदेशी पूंजी भारतमें आ रही है । इन संस्थाओंमेंसे ९५ प्रतिशत स्वयंसेवी संस्थाएं ईसाई हैं तथा उन्हें अमेरिका और यूरोपके देशोंसे धन प्राप्त होता है । वर्ष २००६ में ‘एनजीओज, एक्टिविस्ट एंड फॉरेन फंड्स : एंटी नैशनल इंडस्ट्री’ (लेखक : कृष्ण काक और राधा रंजन)’ नामक अतिशय सुंदर पुस्तक प्रकाशित हुई । यह पुस्तक सर्व प्रसारमाध्यमोंके पास है । एक-दोका अपवाद छोड दें, तो किसीने भी उस पुस्तकका परिचय प्रसिद्ध नहीं किया । क्योंकि, उसमें आंकडोंके साथ संपूर्ण वास्तविकता दी गई है । यह पुस्तक संसदके पुस्तकालयमें भी है; परंतु केंद्र अथवा किसी भी राज्य शासनने इसका कोई उपयोग नहीं किया । इस पुस्तकमें लेखकोंने सर्व प्रकारकी जानकारीके साथ कौनसे स्वयंसेवी संगठन भारतविरोधी षड्यंत्र कर रहे हैं, इसकी सूची दी है ।
७. भारतमें हिंदुत्व समाप्त करनेका
एक ही समान उद्देश्य रख कार्य करनेवाले विषैले प्रसारमाध्यम !
ये विषैले प्रसारमाध्यम पहले बताए अनुसार विविध उद्देश्य सामने रखकर कार्य करते हैं; परंतु उनका प्रमुख उद्देश्य एकसा ही होता है । वह है, भारतसे हिंदुत्व समाप्त करना । उसके लिए इनकी व्यूहरचना इस प्रकार है ।
७ अ. धार्मिक परंपराओंपर आघात करना
धार्मिक परंपराओंपर आघात करना, उनके दांवपेंचोंका भाग है । धार्मिक परंपराओंपर किए जानेवाले आघातोंमें हिंदुओंके धर्माचार्यांको हीन दर्शाना, उनकी संस्थाओंका मानभंग करना, हिंदुओंके त्यौहार, उत्सव तथा आचार इत्यादिको हास्यास्पद सिद्ध करना, जैसी बातोंका समावेश है । इसमें गुरुवायुर, अमरनाथ, कांची मठपर हुए आघात, जैसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं ।
७ आ. हिंदुओंके त्यौहार, आचार, संकल्पना, परंपरा
तथा संस्कृतिकी अच्छाईके संदर्भमें प्रश्न निर्माण करनेवाली चर्चाओंका आयोजन करना
७ इ. हिंदू संगठनोंके विषयमें सुनी-सुनाई कथाओंके आधारपर भय उत्पन्न करना
हिंदू संगठनोंके संबंधमें सुनी-सुनाई बातें बताकर उन्हें नष्ट करनेका प्रयत्न किया जाता है । उन्हें हिंदू संगठनोंकी वृद्धि नहीं चाहिए । इसलिए सुनी-सुनाई बातोंके आधारपर वे समाजमें इन संगठनोंके संबंधमें भय उत्पन्न करते हैं ।
७ ई. म.फि. हुसैन जैसे व्यावसायिक हिंदूद्रोहियोंका समर्थन करना
८. प्रसारमाध्यमोंद्वारा राष्ट्रीयत्वसे संबंधित बातोंपर आघात !
८ अ. ‘वन्दे मातरम्’ गीतकी महानतासे संबंधित प्रश्न उपस्थित करना
राष्ट्रीयत्वसे संबंधित बातोंपर आघात करनेका एक उदाहरण है, ‘वन्दे मातरम्’ गीतकी महानतासे संबंधित प्रश्न उपस्थित करना । ‘वन्दे मातरम्’का स्थान तय करनेवाले प्रसारमाध्यम कौन होते हैं ? इस गीतने हमें स्वतंत्रता प्रदान की है और करोंडों भारतीयोंके हृदयमें राष्ट्रभक्तिकी ज्योति प्रज्वलित की है । हम प्रसारमाध्यमोंको इस गीतके संदर्भमें चाहे जैसी चर्चा करनेकी छूट क्यों देते हैं ?
८ आ. तिरंगेका मनचाहा उपयोग करनेके लिए प्रोत्साहन देना
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दूसरा उदाहरण है, तिरंगेका मनचाहा उपयोग करनेके लिए प्रोत्साहन देना । खेलके नामपर आजकल मुखपर अथवा शरीरपर कहीं भी तिरंगेका चित्रण किया जाता है । प्रसारमाध्यम उन्हें प्रोत्साहन देते हैं । तिरंगेका सम्मान करनेकी यह कोई पद्धति नहीं है ।
९. प्रसारमाध्यमोंकी आचारसंहिता कैसी हो ?
१. प्रसारमाध्यमोंमें राजनीतिक दल तथा नेताओंको प्रवेश न दिया जाए ।
२. ‘सचका सामना’ जैसे ‘रियालिटी शो’ प्रतिबंधित किए जाएं ।
३. शोध समाचार बिना सबूतोंके प्रकाशित न किए जाएं ।
४. विज्ञापनोंको जांचनेके लिए परिनिरीक्षण मंडल हो ।
५. जातीयता फैलानेवाले संवेदनशील विषयोंपर समाचार प्रकाशित करनेपर प्रतिबंध लगाया जाए ।
६. अश्लीलता फैलानेवाली वार्ता प्रसारमाध्यम प्रकाशित न करें ।