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पुजारियों को ‘अर्धनग्न’ कहने वाले भुजबल को क्या पादरी, मौलवी एवं मुसलमान महिलाओं की बुरखा पर टिप्पणी करने का साहस है ?- हिन्दू जनजागृति समिति

महाराष्ट्र के विविध मंदिरों में वस्त्रसंहिता लागू होने से आधुनिकतावादियों को हो रही है अपार पीडा !

राष्ट्रवादी काँग्रेस के भूतपूर्व मंत्री छगन भुजबल ने महाराष्ट्र के विविध मंदिरों में लागू की गई वस्त्रसंहिता पर टिप्पणी करते हुए ‘मंदिरों के पुजारी को अर्धनग्न होते हैं । उन्हें पूरे कपडे पहनने के लिए कहें’, ऐसी हिन्दू धर्म के प्रति द्वेष दर्शानेवाली टिप्पणी की । हिन्दू जनजागृति समिति इसका तीव्र निषेध करती है । धर्मशास्त्रानुसार पूजा के लिए विशेष वस्त्र (धोती)-उपरण डालकर पूजा-अर्चा की जाती है, यह साधी बात भुजबल नहीं जानते और दूसरों को (हिन्दुओं को) ‘मूर्ख’ कहने की उनकी हिम्मत होती है । पुजारियों को ‘अर्धनग्न’ कहते हुए उन्हें नीचा दिखाने का दुस्साहस होता है । मक्का में ‘काबा’के दर्शन लेने के लिए जानेवाले सभी मुसलमान पुरुष ‘पुजारियों समान ही’ कमर से ऊपर वस्त्र नहीं डालते । क्या उन्हें ‘अर्धनग्न’ कहने का साहस भुजबल में है ? मुसलमान महिलाओं की इच्छा हो अथवा नहीं, उन्हें बुरखा पहनने की सख्ती की जाती है, इसे ‘मूर्खता’ कहने का साहस छगन भुजबल, आधुनिकतावादी अथवा ब्रिगेडी टोली दिखाएगी ? ऐसा स्पष्ट प्रश्न हिन्दू जनजागृति समिति ने किया है ।

यही लोग ‘हिजाब’का समर्थन करते हैं एवं मंदिरों की वस्त्रसंहिता पर टिप्पणी करते हैं, यह तथाकथित आधुनिकतावादियों की दुहरी नीति है । पुसिल की वर्दी खाकी है, डॉक्टरों का कोट सफेद है, वकीलों का कोट काला, ये धर्मनिरपेक्ष शासन द्वारा बताए ‘ड्रेसकोड’ चलते हैं । फिर स्वयं भुजबल जब मा. श्री. उद्धव ठाकरे के मंत्रिमंडल में मंत्री पद पर नियुक्त थे, तब राज्य के सभी शासकीय कार्यालयों में ‘वस्त्रसंहिता’ लागू की थी । उस अनुसार अधिकारी एवं कर्मचारियों को जीन्स पैंट, टी-शर्ट, गहरे रंग के अर्थात भडकीले रंग के बेलबूटेदरी नक्काशी किए हुए वस्त्र, स्लीपरों का उपयोग नहीं करेंगे । केवल शोभनीय वस्त्र परिधान करने का नियम बनाया था; परंतु अब मंदिरों में केवल संस्कृतिप्रधान वस्त्र पहनने का आवाहन भी उन्हें मान्य नहीं । यह भारतीय संस्कृतिद्वेष ही है । ऐसी भारतीय संस्कृति विरोधी भूमिका लेनेवालों को आनेवाले काल में जनता सबक सिखाएगी, ऐसा भी समिति ने प्रकाशन हेतु दिए पत्रक में कहा है ।

भुजबल का यह प्रश्न कि ‘छोटे बच्चों को क्या ‘हाफ पैन्ट’ डालकर मंदिर में जाना ही नहीं है ?’, यह बचपना है । छोटे बच्चों की दृष्टि से ‘हाफ पैन्ट’ न पहनें, ऐसा कहीं भी उल्लेख न होते हुए भी वे जानबूझकर समाज की दिशाभूल कर रहे हैं । शोभनीय एवं सात्त्विक वस्त्र परिधान की इस मुहिम को समाज से भी अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है । समिति का कहना है कि मंदिर, यह धार्मिक विषय है । इसलिए इसमें राजनेता हस्तक्षेप न करें ।’

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