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इतिहासका विकृतिकरण समस्याका अंतरंग !

वैशाख कृष्ण नवमी , कलियुग वर्ष ५११५

 

सारणी

   १. एक क्षेत्रका विजेता दूसरे क्षेत्रका विजेता न होनेके कारण इतिहासका विकृतिकरण होना

   २. ईसामसीह – एक काल्पनिक व्यक्ति !

   ३. यूरोपमें ईसाई धर्मसे पूर्व प्रचलित ‘पैगन’ पंथ हिंदू धर्मका ही एक भाग होना
   ४. प्राचीन इतिहासके समान ही आधुनिक इतिहासका भी विकृतिकरण होनेका उदाहरण है गांधीका इतिहास !
   ५. पाठ्यक्रमकी पुस्तकोंके इतिहासमें परिवर्तन होना चाहिए !
   ६. मुसलमान शासकोंका झूठ भी इतिहासका विकृतिकरण ही है !
 


 

 


वक्ता : पू. युश महाराज, गाजीपुर, उत्तरप्रदेश.

१. एक क्षेत्रका विजेता दूसरे क्षेत्रका विजेता न होनेके कारण इतिहासका विकृतिकरण होना

        ‘कार’ नामक इतिहासकारने कहा है, ‘विजेता स्वयंकी सुविधानुसार इतिहास लिखता है ।’ यहां स्मरण रखने योग्य बात यह है कि विजेता चाहे वह राजनीति, आर्थिक तथा दार्शनिक किसी भी क्षेत्रका हो, इतिहास उन्हींका लिखा जाता है; परंतु किसी एक क्षेत्रका विजेता दूसरे क्षेत्रमें भी वैसा ही हो, ऐसा आवश्यक नहीं । राजनीतिका विजेता सांस्कृतिक क्षेत्रमें भी विजेता हो, ऐसा नहीं । इसलिए वह उस क्षेत्रमें विकृति निर्माण करता है । हमने अभीतक यही होते देखा है ।

२. ईसामसीह – एक काल्पनिक व्यक्ति !

        इतिहासकार कहते हैं कि ‘ईसामसीह नामक कोई व्यक्ति हुआ ही नहीं । इतिहासमें ऐसा व्यक्तित्व नहीं है । वह एक काल्पनिक व्यक्ति है ।’

२ अ. ईसा शब्दका मूल संस्कृतमें होना

        ‘जीजस’ शब्द संस्कृत शब्द ‘इशस्’से बना है । इतिहासके प्रवाहमें भाषा परिवर्तित करना सर्वाधिक कठिन है । इसलिए बांग्लादेशकी भाषा बंगाली, जबकि पाकिस्तानकी भाषा उर्दू है । वास्तवमें दोनों स्थानोंपर मुसलमान ही हैं । संक्षेपमें, भाषामें सहज परिवर्तन नहीं किया जा सकता । सर्व भाषाओंके मूल स्रोतकी ओर जानेका प्रयास करनेपर स्पष्ट होता है कि वह संस्कृतमें है; क्योंकि ‘ऋग्वेद’ सर्वाधिक प्राचीन है तथा वह संस्कृतमें है । भाषाविशेषज्ञोंके अनुसार, ‘रोम’ यह शब्द ‘राम’से आया है । ‘क्राइस्ट’ शब्द ‘कृष्ण’ शब्दका विकृत रूप है । कोई कहता है कि ‘ईसामसीहका जन्म नजारथमें हुआ था, कोई कहता है जेरुसलेममें हुआ था ।’ नजारथ यह ‘नंदराज’ शब्दका भ्रष्ट रूप है । जेरुसलेम ‘वत्सलधाम’ शब्दका विकृत रूप है । अंग्रेजी भाषाका बारीकीसे अध्ययन करनेपर ज्ञात होगा कि इस भाषाका उद्गम संस्कृतसे हुआ है ।

२ आ. ईसामसीहकी जन्मकथा तथा उनका गुणवर्णन करनेवाले मूल इतिहासकार जोसेफसका प्रतिपादन घटनाओंके आधारपर नहीं है !

        ईसामसीहके जन्मकी कथा ‘एंटिक्विटिज’ नामक पुस्तकमें है । उस पुस्तकके रचयिता जोसेफस हैं । यह इतिहासकार ईसामसीहके पश्चात (९३ वर्षोंके पश्चात) हमें बताते हैं, ‘ईसामसीह ऐसे थे, वैसे थे, इतने गुणवान थे इत्यादि ।’ इतिहास घटनाओंपर आधारित होता है; परंतु जोसेफस यह नहीं बताते कि उनका प्रतिपादन किन घटनाओंपर आधारित है ?

२ इ. ईसामसीहका वर्तमान चित्र काल्पनिक !

        ईसामसीहका न कोई चित्र था, न कहीं वर्णन था । अचानक ९३ वर्षों पश्चात वे किस आधारपर यह सब बताते हैं ? एलिजाबेथ सिमोर एवं अर्नेस्ट किट्जेनबर्गने ईसामसीहके चित्रके संबंधमें ‘पोर्टेट ऑफ क्राईस्ट’ नामक पुस्तक लिखी है । उसमें उन्होंने स्वीकार किया है कि, वर्तमानमें प्रचलित ईसामसीहका चित्र काल्पनिक है ।

२ ई. ईसामसीहकी वर्तमानमें प्रचलित जन्मतिथि भी काल्पनिक ही !

        विल्यम ड्युरांट अपने ग्रंथ ‘हिस्ट्री ऑफ सिविलाइजेशन’में कहते हैं, ‘‘ईसामसीहका जन्मदिवस हम मानते हैं उससे ४३० वर्ष पूर्व हुआ था । अब वास्तवमें ईसामसीहका जन्मदिवस २५ दिसंबरको मनाया जाता है तथा उनके जन्मसे ही कालगणना प्रारंभ हुई है, यह कहकर वह १ जनवरीसे प्रारंभ होती है । ऐसा कैसे हो सकता है ? संक्षेपमें ईसामसीहकी निर्धारित की गई जन्मतिथि काल्पनिक है । इ.स. ३५४ में बिशप लिबेरियसने यह जन्मतिथि निर्धारित की थी । यह जन्मतिथि मनचाहे ढंगसे निश्चित की गई है । यह विकृतिकरण सुधारना होगा ।

३. यूरोपमें ईसाई धर्मसे पूर्व प्रचलित ‘पैगन’ पंथ हिंदू धर्मका ही एक भाग होना

        पूर्वकालमें यूरोपमें ‘पैगन’ पंथ था । इस पंथकी जानकारी उनके देवालयोंकी जानकारी तथा उनके अन्य अवशेष कहां है, इसकी जानकारी नहीं बताई जाती । ड्युमाकी एक पुस्तक ‘द ओरियंटल रिलीजन्स इन रोमन पैगानिज’में वे लिखते हैं, ‘रोमके इतिहासमें जो ‘पैगन’ पंथ बताया जाता है, उस पंथके देवताके रूपमें देवी उमाका वर्णन है तथा वह हिंदुओंकी देवी है । रोमके सैनिक युद्धसे पूर्व स्वयंका रक्त इस देवीको चढाते थे ।’ इस प्रकारके वर्णनोंसे स्पष्ट होता है कि वहांके इतिहासका विकृतिकरण किया गया है तथा उसे पुनः लिखनेकी आवश्यकता है ।

४. प्राचीन इतिहासके समान ही आधुनिक इतिहासका भी विकृतिकरण होनेका उदाहरण है गांधीका इतिहास !

        प्राचीन इतिहासके समान ही आधुनिक इतिहासका भी विकृतिकरण किया गया है । इस विषयमें भी हमें सतर्क रहना चाहिए । ‘अहिंसाके पुजारी’ कहलानेवाले गांधीने ‘सत्य एवं अहिंसा’के सिद्धांतोंको कहां तथा किस प्रकार तोडा है, यह नहीं सिखाया जाता ।

४ अ. अहिंसाके सिद्धांतको अनेक बार तोडनेवाले गांधी बने ‘अहिंसाके पुजारी’

        गांधी अहिंसाकी बातें करते थे; परंतु जब मुसलमानोंने हिंदुओंपर आक्रमण किया, तब उन्होंने कभी नहीं कहा कि मुसलमानोंने अनुचित किया है । ‘हिंसाका प्रतिकार न करना भी एक प्रकारसे हिंसा ही है’, यह बात गांधीके ध्यानमें नहीं आई । हमें इतिहास पढानेवालोंके ध्यानमें भी यह बात नहीं आई । इस प्रकार गांधीrने असत्य एवं प्रताडनाका समर्थन किया है ।

४ आ. सत्य छुपानेवाले झूठे गांधी !

        फिरोज खानको ‘फिरोज गांधी’ बनाकर तथा फिरोजका विवाह इंदिरा गांधीसे करवाकर भी उन्होंने अपने चरित्रमें ऐसा कहीं नहीं लिखा कि ‘यह मैंने करवाया है’ ।

५. पाठ्यक्रमकी पुस्तकोंके इतिहासमें परिवर्तन होना चाहिए !

५ अ. पाठ्यक्रमकी पुस्तकोंद्वारा पढाए जानेवाले इतिहासमें परिवर्तन होनेके लिए सरकारपर दबाव बनाएं !

        सरकार जिस प्रकार इतिहासकी विविध पाठ्यक्रमकी पुस्तकें पढा रही है, इसपर यदि हम यह कहें कि ‘हम अलगसे अपनी बात रखेंगे’, तो इससे अधिक कुछ नहीं होगा । सरकारपर दबाव बनाना होगा ‘अमुक-अमुक परिवर्तन होने ही चाहिए ।’ जनता पाठ्यपुस्तकें ही पढेगी तथा इन पाठ्यपुस्तकोंमें परिवर्तन होना अनिवार्य है । इसके लिए इतिहासका पुनर्लेखन होना आवश्यक है ।

५ आ. सरकार पाठ्यक्रमकी पुस्तकोंमें दिया गया इतिहास परिवर्तित करने हेतु सिद्ध न हो, तो राजनेता परिवर्तित करें !

        यदि सरकार पाठ्यक्रमकी पुस्तकोंमें दिया गया इतिहास परिवर्तित करने हेतु सिद्ध न हो, तो हमें राजनेता परिवर्तित करने चाहिए । इस व्यवस्थामें परिवर्तन होने चाहिए । वर्तमान लोकतंत्रमें परिवर्तन होने चाहिए । हिंदुओंका हित हिंदू देखेंगे; परंतु हिंदू जनप्रतिनिधि देखेंगे, ऐसा नहीं है । जनप्रतिनिधि केवल हिंदू हैं; इसलिए वे हिंदुओंके हितमें कार्य करेंगे, ऐसा नहीं है; क्योंकि जनप्रतिनिधि भी थोकके भावमें क्रय किए (खरीदे) जा सकते हैं । करोडों तथा अरबों लोगोंको नहीं क्रय किया (खरीदा) जा सकता । हमें करोडों तथा अरबोंके माध्यमसे कानून परिवर्तन करनेकी दिशामें जाना चाहिए । हमें मुट्ठीभर दलालोंके माध्यमसे जानेका प्रयास नहीं करना चाहिए ।

६. मुसलमान शासकोंका झूठ भी इतिहासका विकृतिकरण ही है !

६ अ. ताजमहल शाहजहांने नहीं; अपितु राजा परमार्थी देवने बनवाया !

        भारतमें भाजपा शासित प्रदेशोंमें भी ‘ताजमहल शाहजहांने बनवाया’, यही पढाया जाता है । प्रत्यक्षमें ताजमहल राजा परमार्थी देवने ईस्वी सन ११५५ में बनवाया था । पटेश्वर शिलालेखसे यह स्पष्ट होता है ।

६ आ. कुतुबमीनार तोडनेवाला कुतुबुद्दीन ऐबक स्वयं यह नहीं कहता कि, कुतुबमीनार उसने बनवाई है; परंतु शेष सर्व यह बताते हैं !

        ‘कुतुबमीनार कुतुबुद्दीन ऐबकने बनवाई’, यह बताया जाता है । हमारे पौराणिक इतिहासके अनुसार कुतुबमीनारका निर्माण राजा विक्रमादित्यने किया है । आचार्य वराहमिहीरके मार्गदर्शनमें उसे बनवाया गया था । कुतुबमीनारके इतिहासका विकृतिकरण किया गया है । वहां २७ तल (मंजिल) थे । कुतुबुद्दीन ऐबक जैसे लुटेरोंने मंदिरोंके साथ उन्हें भी तोडा । वास्तवमें तोडनेवालेने यह दावा कभी नहीं किया कि हमने बनवाया है’; परंतु चाटुकार इतिहासकारोंने यह बताना प्रारंभ किया कि ‘उसने ही इसका निर्माण किया है ।’ कुतुबमीनार वास्तवमें ज्योतिषके अभ्यास हेतु बनाई गई थी । ‘ज्योतिषस्तंभ’का अरबी अनुवाद ‘कुतुबमीनार’ है । इसे कुतुबुद्दीन ऐबकसे जोड दिया गया । यह इतिहास हमें पुनः पुनर्लिखित करना है ।

६ इ. अनपढ, लुटेरे एवं निरंतर युद्ध करनेवाले अकबरके पास ‘फतेहपुर सीकरी’का भव्य भवन बनानेकी रचनात्मकता हो सकती है क्या ?

        हमें बताया जाता है कि ‘फतेहपुर सीकरी’ अकबरने बनवाई । वहांकी रचनासे यह स्पष्ट होता है कि अकबर वह बना ही नहीं सकता । जो अनपढ तथा लुटेरा है, जो निरंतर युद्धरत रहता है, उसके पास ऐसे भवन बनानेकी रचनात्मकता कहांसे होगी ? अभीतक जो मुसलमान शासक थे, उनके पास भवन निर्माणके लिए समय तथा बुद्धि भी नहीं थी । जो भूमि नापनेकी व्यवस्था नहीं खोज सके, वे ऐसी कलाकृतियां कैसे बना सकते हैं ? तंबूमें रहनेवाले इतने भव्य भवन कैसे बना सकते हैं ? ये बातें हमें समझनी चाहिए । जहां-जहां ऐसे विवादित भवन हों, वहां हमें संगठन बनाकर जाना चाहिए तथा जिस प्रकार सरकार प्रचार करती है, वैसा प्रचार हमें भी करना चाहिए । हमें भी ऐसे स्थानपर प्रबोधन केंद्र बनाने चाहिए तथा प्रत्येक पर्यटकसे कहना चाहिए कि ‘यह जो बताया जा रहा है, वैसा नहीं है ।’ ऐसा करनेसे यद्यपि वहांकी सरकार स्वीकार नहीं करेगी; परंतु विश्वके अन्य लोगोंतक यह सूत्र पहुंचेगा तथा वे स्वीकार करेंगे कि ताजमहल शाहजहांने नहीं, किसी औरने बनाया है ।’

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