ज्येष्ठ कृष्ण १०, कलियुग वर्ष ५११५
पूर्वके कालमें हमारे यहां न्यायव्यवस्थाके अंतर्गत हर गांवमें वेदांतशास्त्र जाननेवाले विद्वान होते थे । उनके सामने हर एकके अपराधोंका न्याय होकर तत्परतासे उसे प्रायश्चित्त अथवा दंड दिया जाता था । उस समय केवल एक सुपारी तथा एक यज्ञोपवीत दक्षिणा देकर जो न्याय १५ मिनिटोंमें मिलता, वह आज १५ वर्षोंके उपरांत भी मिलना कठिन है । इससे यह संकेत मिलता है कि हिंदू धर्ममें सब कुछ आदर्श है; किंतु वर्तमानमें यह अडचन है कि देशके कार्य संस्कृतिके अनुसार नहीं होते । यह अभाव दूर करने हेतु कटिबद्ध होकर एवं सद्भावपूर्ण परस्पर चर्चा द्वारा सैद्धांतिक सामंजस्य प्रस्थापित करनेकी आवश्यकता है । इस प्रकारका संवाद मानवाधिकारकी सीमारेषामें हिंदुओंका अस्तित्व, उनके आदर्शों समेत अखिल विश्वके आदर्शोंकी रक्षा हेतु वरदान सिद्ध होगा । इस उद्देश्यसे हिंदू जनजागृति समिति द्वारा हिंदू राष्ट्र स्थापनाके उद्देश्यसे द्वितीय अखिल भारतीय हिंदू अधिवेशनका आयोजन किया गया है । ईश्वरकी कृपासे यह हिंदू अधिवेशन उत्तम स्वरूपमें अधिकाधिक लोगोंतक पहुंचे तथा इस अधिवेशनका उद्देश्य सफल एवं यशस्वी हो, यही प्रार्थना ! – जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती, श्री गोवर्धनपीठ, पुरी, ओडिशा.
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात