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‘हिन्दूहित हेतु न्यायालयीन सुधार’ इस विषयपर ‘वैश्‍विक हिंदु राष्ट्र महोत्सव’ के तिसरे दिन मान्यवरों ने दिए भाषण

धर्मनिरपेक्षता के चाहे कितने भी ढोल पीटे जाएं; परंतु भारत की आत्मा, जो सनातन धर्म वह कभी भी परिवर्तित नहीं होगी ! – अधिवक्ता (डॉ.) एस्.सी. उपाध्याय, सर्वोच्च न्यायालय

अधिवक्ता (डॉ.) एस्.सी. उपाध्याय, सर्वोच्च न्यायालय

विद्याधिराज सभागार – संविधान की मूल प्रति के पृष्ठों पर कहीं पर भी मोहम्मद पैगंबर एवं यीशू के चित्र नहीं थे; अपितु केवल श्रीराम, श्रीकृष्ण एवं बुद्ध के चित्र थे । कुरुक्षेत्र पर गीतोपदेश देनेवाले श्रीकृष्ण का चित्र था । तत्कालीन संसद ने उस संविधान का सर्वसम्मति से स्वीकार किया था । इसका अर्थ यह है कि भारत के आत्मा सनातन धर्म को मान्यता ही मिली थी; इसलिए धर्मनिरपेक्षता के कितने भी ढोल पीटे जाए, किंतु तब भी सनातन धर्म, जो भारत की आत्मा है, वह परिवर्तित नहीं होगी, ऐसा प्रतिपादन सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता (डॉ.) एस्. सी. उपाध्याय ने किया।

भारत ‘हिन्दू राष्ट्र’ है । सर्वोच्च न्यायालय का घोषवाक्य ‘यथो धर्म: ततो जय: ।’ है । सर्वोच्च न्यायालय कहता है, ‘जहां धर्म है, वहां सत्य है तथा जहां सत्य है, वही विजय है।’

हिन्दू जनजागृति समिति बहुत अच्छा कार्य कर रही है । इसी प्रकार से हिन्दुओं को संगठित करना होगा । भारत की गली-गलियों में जागृत हिन्दू हैं । उन्हें संगठित करना होगा । धर्मांध सैकडों की संख्या में हिन्दुओं पर आक्रमण करते हों, तो उनका सामना करने के लिए हिन्दुओं के भी सहस्रों स्वयंसेवक तैयार रखने पडेंगे।

हिन्दुओं के सभी मंदिर वापस प्राप्त करना, यह हमारी प्रतिज्ञा है ! – अधिवक्ता (पू.) हरिशंकर जैन, सर्वोच्च न्यायालय तथा संरक्षक, हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस

अधिवक्ता (पू.) हरिशंकर जैन, सर्वोच्च न्यायालय तथा संरक्षक, हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस

रामनाथ देवस्थान (गोवा) – अब श्रीराम मंदिर का निर्माणकार्य हो रहा है; परंतु धर्मांध आक्रामकों द्वारा अतिक्रमण किए गए सभी मंदिर वापस प्राप्त करना, यह हमारी प्रतिज्ञा है । उनके नियंत्रण से मथुरा, काशी, धार (मध्य प्रदेश) एवं ताजमहल स्थित हिन्दुओं के धार्मिक स्थल मुक्त करने के लिए हमारा संघर्ष जारी है, ऐसा प्रतिपादन सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता तथा ‘हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस’ के संरक्षक अधिवक्ता (पू.) हरिशंकर जैन ने किया । यहां आरंभ हुए वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव के तृतीय दिन (१८.६.२०२३ को) वे ऐसा बोल रहे थे।

अधिवक्ता (पू.) हरिशंकर जैन ने आगे कहा,

‘‘किसी समय ‘सोने की चिडिया’ कहलानेवाला हिन्दुओं का भारत अब इतिहास बन गया है । साथ ही हिन्दुओं को अपने अस्तित्व के लिए न्यायालय एवं न्यायालय के बाहर लडना पड रहा है । हिन्दू राष्ट्र के लिए संघर्ष करते समय हम इतिहास में धर्म के लिए बलिदान देनेवाले धर्मयोद्धाओं को भूलते जा रहे हैं । ऐसे सहस्रों धर्मयोद्धाओं के नाम लिए बिना हम आगे जा ही नहीं सकते । महाराणा प्रताप, सिक्ख धर्मगुरु ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिए; परंतु पराजय स्वीकार नहीं किया । हमें उनसे अधिक संघर्ष कर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करनी होगी । तभी उन धर्मयोद्धाओं को शांति मिलेगी । भारत के संविधान द्वारा निर्मित वर्तमान व्यवस्था में यदि कोई भी सरकार आए, तब भी वह इस देश को हिन्दू राष्ट्र बना नहीं सकती । यदि ऐसा हुआ, तो उसको आवाहन दिया जाएगा । इसलिए हिन्दुओं को ही संगठित होकर हिन्दू राष्ट्र प्राप्त करना आवश्यक है ।’’

हिन्दू संस्कृति पर हो रहे आक्रमणों का विरोध करने के लिए अधिवक्ता हिन्दू धर्मग्रंथों का अध्ययन करें ! – अधिवक्ता श्रीधर पोतराजू, सर्वोच्च न्यायालय, देहली

अधिवक्ता श्रीधर पोतराजू, सर्वोच्च न्यायालय, देहली

वर्तमान में भारत में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून ही कार्यरत हैं, जो कि भौतिकता पर आधारित हैं । इसके विपरीत हिन्दू धर्मशास्त्र में वाद-विवाद से निष्कर्ष निकालकर, अंतिम सत्य तक पहुंचने का प्रयत्न किया जाता है । इसीलिए अपनी न्यायव्यवस्था का घोषवाक्य ‘सत्यमेव जयते’ है, ऐसा मैं मानता हूं । इस वाक्य से सत्य की खोज करने के लिए नैतिक लडाई की प्रेरणा मिलती है । रामजन्मभूमि की लडाई, यह केवल भूमि की लडाई नहीं थी अपितु वह श्रीरामजन्म के सत्य की खोज की लडाई थी ।

स्वतंत्रता से पूर्व भारत में न्यायालयीन कामकाज में वेद-शास्त्र का संदर्भ दिया जाता था; परंतु अब कानून के पाश्‍चात्त्यीकरण के कारण उनके संदर्भों का उपयोग नहीं किया जाता है । स्वतंत्रताप्राप्ति के उपरांत साम्यवादियों की बौद्धिक विकृति ने भारत में मजबूत जाल बनाया है । वर्तमान में एक नई विकृति अपने पैर जमाने के लिए प्रयत्नशील है और वह है समलैंगिक विवाह ! जो कि हिन्दुओं की कौटुंबिक, सामाजिक एवं विवाह संस्था पर आक्रमण है । ऐसे आक्रमणों का विरोध करने के लिए अधिवक्ता अपने धर्मग्रंथों का आधार लें और उनका अध्ययन करें, ऐसा वक्तव्य सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्रीधर पोतराजू ने किया ।

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