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‘राष्ट्रचिंतन’ इस विषयपर ‘वैश्विक हिंदु राष्ट्र महोत्सव’मैं मान्यवरोंने किया उद्बोधन

संतसम्मान

वैश्‍विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव के चौथे दिन अर्थात १९ जून को चेन्नई के शिवाचारयार ट्रस्ट के न्यासी श्री. टी. एस्. साम्बमूर्ती कलिदोस का सत्कार करते हुए चेन्नई के सनातन के साधक श्री. बाळाजी कोल्ला

कठुआ बलात्कार प्रकरण के पीछे हिन्दुओं का धर्मांतरण करने का षड्यंत्र ! – प्रा. मधु किश्वर, संपादक, ‘मानुषी’, देहली

प्रा. मधु किश्वर, संपादक, ‘मानुषी’, देहली

रामनाथ देवस्थान – वर्ष २०१८ में संपूर्ण विश्व में चर्चित कठुआ बलात्कार प्रकरण के पीछे हिन्दुओं का मुसलमान पंथ में धर्मांतरण करने का षड्यंत्र था, ऐसा देहली स्थित ‘मानुषी’ की संपादक प्रा. मधु किश्वर ने प्रतिपादित किया । पीडिता के हत्या से हिन्दुओं का बिल्कुल भी संबंध नहीं था, यह बात भी उन्होंने उदाहरणसहित स्पष्ट की । वर्ष २०१८ में कठुआ में एक ८ वर्षीय मुसलमान लडकी के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या की गई थी । इस प्रकरण में हिन्दू युवक के ‘बलात्कारी’ होने का सूत्र सामने लाया गया । यह प्रकरण संपूर्ण विश्व में कठुआ बलात्कार प्रकरण के रूप में चर्चित हुआ । वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव के चौथे दिन प्रा. किश्वर ऐसा बोल रही थीं । इस घटना की अनेक सूक्ष्मताओं का अध्ययन कर प्रा. किश्वर ने ‘द गर्ल फ्रॉम कठुआ : अ सैक्रिफीशियल विक्टीम गजवा ए हिन्द‘ (कठुआ की लडकी : ‘गजवा ए हिन्द की बलि चढी लडकी) पुस्तक लिखकर उस माध्यम से कठुआ बलात्कार प्रकरण की भीषण वास्तविकता विश्व के सामने रखी ।

इस प्रकरण के विषय में प्रा. किश्वर ने कहा,

१. ‘कठुआ प्रकरण में आरंभ से ही हिन्दुत्वनिष्ठों ने पीडिता के साथ सामूहिक बलात्कार कर उसकी हत्या की’, यह कथानक (नैरेटिव) रचा गया तथा उसे संपूर्ण विश्व में प्रचारित किया गया । इस षड्यंत्र में जम्मू-कश्मीर की तत्कालिन मुख्यमंत्री मेहबुबा मुफ्ती तथा उसके साथ ‘सेक्यूलर गिरोह’, साथ ही संपूर्ण विश्व के एवं विश्वस्तर के माध्यमों से सहयोग दिया ।

२. इस प्रकरण में सैकडों हिन्दू युवकों का उत्पीडन किया गया । कुछ लोगों से बलपूर्वक साक्ष्य पंजीकृत करवाए गए तथा उसके माध्यम से ८ निर्दाेष हिन्दुओं को आरोपी के पिंजरे में खडा किया गया ।

३. उसके विरुद्ध जम्मू में ‘जम्मू बार एसोशिएशन’ने सहस्रो हिन्दुओंसहित जनआंदोलन कर उस प्रकरण की ‘सीबीआई’ जांच करने की मांग की; परंतु भारतीय प्रसारमाध्यमों ने इसकी जानबूझकर उपेक्षा की ।

४. एक स्तर पर सर्वोच्च न्यायालय ने बार एसोशिएन के पदाधिकारियों को उनकी वकालत की अनुज्ञप्तियां रद्द करने की चेतावनी देकर इस न्यायिक मांग का विरोध किया ।

५. किसी भी अल्पायु बलात्कार के प्रकरण में पीडिता की पहचान गुप्त रखी जाती है; परंतु इस प्रकरण में आरंभ से ही पीडिता का छायाचित्र एवं नाम माध्यमों से उछाला गया । जिस मंदिर में बलात्कार पीडिता को रखा गया था, वह मंदिर २४ घंटे खुला होता है । उस मंदिर में प्रसाद रखने की चौपाई के नीचे लडकी को छिपाए रखने की बात बताई गई । उस अवधि में उस मंदिर में अनेक कार्यक्रम संपन्न हुए; परंतु यह बात कैसे किसी की समझ में नहीं आई ?

६. लडकी घर से लापता होने के उपरांत उसका शव मिलने पर ही उसके अभिभावक सामने आते हैं; परंतु तबतक वे कहां होते हैं ?; इसलिए यह एक झूठी कहानी रची गई थी, ऐसा लगता है ।

2024 के लोकसभा चुनावों में ‘हिन्दू राष्ट्र’सहित हिन्दू हित की मांग पूर्ण करनेवालों को हिन्दुओं का समर्थन ! – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे, हिन्दू जनजागृति समिति

सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे, हिन्दू जनजागृति समिति

गोवा के अधिवेशन से प्रारंभ हुई हिन्दू राष्ट्र की मांग अब जनता की मांग बनने लगी है, साधु-संत, राजकीय नेता हिन्दू राष्ट्र के संदर्भ में बोलने लगे हैं । इसलिए अब ‘बिजली फ्री, यात्रा फ्री’ ऐसी भुलावेवाली गप्पें नहीं, अपितु भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की ठोस घोषणा चाहिए । संपूर्ण भारत में गोहत्या प्रतिबंधक एवं धर्मांतरण प्रतिबंधक कानून बनाने, हिन्दुओं के देवताओं का अपमान करनेवालों पर कठोर कार्यवाही करनेवाला कानून बनाने, वक्फ एवं ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप’ जैसे अन्यायी कानून निरस्त किए जाएं, आदि हिन्दू हित की मांगे घोषणापत्र में लेकर उन्हें पूर्ण करनेवाले जनप्रतिनिधियों को वर्ष 2024 में होनेवाले आगामी लोकसभा चुनावों में हिन्दुओं का सार्वजनिक समर्थन प्राप्त होगा, ऐसा प्रतिपादन हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे ने ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ में किया ।

सद्गुरु (डॉ.) पिंगळे ने आगे कहा,

‘‘हिन्दुओं ने राजकीय दृष्टि से जागृत न होना यह हिन्दुओं के पराभव का कारण है । जागृत, सक्रिय एवं संगठित नागरिक ही लोकतंत्र की शक्ति हैं । इसलिए स्वदेश, स्वतंत्रता, समाजव्यवस्था आदि के संबंध में हिन्दुओं के अज्ञान, स्वार्थ एवं असंगठन पर कार्य करने की आवश्यकता है । राजनीतिक दल उनका घोषणापत्र सार्वजनिक करते हैं, अब हिन्दुओं को संगठित होकर हिन्दू हित की मांगों का घोषणापत्र बनाना चाहिए तथा मत मांगने के लिए घर आनेवाले जनप्रतिनिधियों से वे मांगे करनी चाहिए ।’’

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए हिन्दुओं को संघर्ष करना पडेगा ! – जुगल किशोर तिवारी, संरक्षक, अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद, उत्तर प्रदेश

विद्याधिराज सभागृह – उत्तर प्रदेश के अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद के संरक्षक जुगल किशोर तिवारी ने अपने वक्तव्य में कहा, ‘जाति व्यवस्था देश के सामने समस्या है । जाति हमने निर्माण नहीं की । हमारे व्यवसाय से जाति निर्माण हुई है । कई राजनैतिक दल भी जाति के आधार पर ही बने हैं । अनेक राजनैतिक दलों में पद भी जाति के आधार पर दिए जाते हैं । चुनाव में जीतने के लिए राजनैतिक दलों को जाति का आधार लेना पडता है । हिन्दू जाति में विभाजित है । तथा इसमें देवताओं तथा महापुरुषों को भी जाति के अनुसार विभाजित किया गया है, तथा अन्य जाति के महापुरुषों पर टिप्पणी करने का किसी का अधिकार नहीं है । संघर्ष तथा चुनौतियां कभी हमारे मार्ग में बाधा नहीं बनतीं, अपितु वह नवीन अवसर निर्माण करती हैं । भगवान श्रीकृष्ण, प्रभु श्रीराम को भी संघर्ष करना पडा था । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए संघर्ष करना पडेगा ।’

न्यायव्यवस्था में कर्मफलन्याय सिद्धांत का समावेश अत्यावश्यक ! – अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद

अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद

रामनाथी – भारतीय कानून आयोग के (‘लॉ कमिशन’ के) एक विवरण के अनुसार वर्ष २००० से २०१५ की समयावधि में देश के सत्र न्यायालयों ने कुल १ सहस्र ७९० लोगों को फांसी का दंड सुनाया । उनमें से १ सहस्र ५१२ प्रकरण उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गए थे । उनमें से केवल ४.३ प्रतिशत लोगों को फांसी दी गई । अन्यों की निर्दोष मुक्ति की गई । तो फिर सत्र न्यायालयों के न्यायमूर्तियों ने चुक की, ऐसा कहे ? एकाध सरकारी अधिकारी द्वारा चुक हो गई, तो जांच की जाती है, तो फिर न्यायाधिशों के अयोग्य निर्णयों का क्या ? इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष १९७६ में ४ लोगों को फांसी का दंड सुनाया था । उनमें से एक की पुलिस की मुठभेड में मृत्यु हो गई, एक को फांसी हो गई, तो अन्य दोनों को दया के परिवाद से आजन्म कारावास का दंड दिया गया । एक ही पद्धति का अपराध होते हुए भी अपराधियों को भिन्न दंड क्यों दिया जाता है ? उसके पीछे क्या कर्मफलसिद्धांत है ? जब एकाध द्वारा बलात्कार के समान अपराध होता है, तब उसके पीछे ‘काम’ एवं ‘क्रोध’ ये षड्रिपुओं के दोष समाहित होते हैं । क्या उसका अध्ययन नहीं होना चाहिए ? विविध अपराधों के अभियोग चलाने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की जाती है, नए-नए कानून पारित होते हैं; परंतु ये अपराध जिन षड्रिपुओं के कारण होते हैं, उनका अध्ययन कब करोगे ? आंखो पर पट्टी बांधे हुए न्यायदेवता की मूर्ति कर्मफलन्याय सिद्धांत न माननेवाले पश्चिमी संकल्पना पर आधारित है । एकाध अभियोग की सुनवाई के समय न्यायालय अमेरिका, इंग्लैंड जैसे देशों के निर्णय का अध्ययन करता है, परंतु हमारे देश के कर्मफलसिद्धांत का अध्ययन क्यों नहीं होता ? न्यायव्यवस्था में कर्मफलन्याय सिद्धांत समाविष्ट करना अत्यावश्यक है, ऐसा हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अध्यक्ष वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने कहा । वे यहां चल रहे वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव के चतुर्थ दिवस (१९.६.२०२३) पर उपस्थितों को संबोधित कर रहे थे ।

 

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