Menu Close

‘हिन्दू संगठनों के लिए दृष्टिकोन’ इस विषयपर ‘वैश्‍विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’ में मान्यवरों ने किया उद्बोधन

बाएं से पं. नीलकंठ त्रिपाठी महाराज, पू. (डॉ.) शिवनारायण सेनजी, योगी देवराह जंगले महाराज, सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी और सूत्रसंचालन मैं साै. क्षिप्रा जुवेकर

छत्तीसगढ की कांग्रेस की सरकार हिन्दूविरोधी ! – पं. नीलकंठ त्रिपाठी महाराज, संस्थापक, श्री नीलकंठ सेवा संस्थान, रायपुर, छत्तीसगढ

पं. नीलकंठ त्रिपाठी महाराज, संस्थापक, श्री नीलकंठ सेवा संस्थान, रायपुर, छत्तीसगढ

रामनाथ देवस्थान – २५ एवं २६ दिसंबर २०२१ को रायपुर में धर्मसंसद का आयोजन किया गया था । उस धर्मसंसद में गांधीजी के विषय में कथिरूप से विवादित वक्तव्य देने के प्रकरण में छत्तीसगढ पुलिस ने कालीचरण महाराज को बंदी बनाकर उनके विरुद्ध राष्ट्रद्रोह का अपराध पंजीकृत किया । इसके विरोध में साधु-संतों एवं हिन्दुत्वनिष्ठों ने सरकार के विरुद्ध तीव्र आंदोलन चलाया । प्रभु श्रीराम के विषय में विवादित वक्तव्य देनेवाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता नंदकुमार बघेल पर कोई कार्यवाही नहीं की गई थी; परंतु कथितरूप से गांधीजी की आलोचना करने के प्रकरण में कालीचरण महाराज पर कार्यवाही की गई । इससे छत्तीसगढ सरकार को प्रभु श्रीराम की अपेक्षा गांधी अधिक महत्त्वपूर्ण लगते हैं । राज्य में हिन्दू देवताओं का अनादर होने पर उसके लिए दोषियों पर कार्यवाही न कर प्रशासन की ओर से सर्वप्रथम उसके प्रति क्षोभ व्यक्त करनेवाले धार्मिक संतों तथा हिन्दुत्वनिष्ठ नेताओं पर कार्यवाही की जाती है । नंदकुमार बघेल ने ब्राह्मणों के विरोध में विवादित वक्तव्य दिया था, उस समय हिन्दुत्वनिष्ठों ने राज्यस्तरीय तीव्र आंदोलन चलाया था । उस समय दबाव के कारकण नंदकुमार बघेल को ३ दिन के लिए बंदी बनाया गया था, इन शब्दों में रायपुर (छत्तीसगढ) के ‘श्री नीलकंठ सेवा संस्थान’ के संस्थापक पं. नीलकंठ त्रिपाठी महाराज ने क्षोभ व्यक्त किया । वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव के चौथे दिन (१९.६.२०२३ को) उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों को संबोधित करते हुए वे ऐसा बोल रहे थे ।

‘समलैंगिकता’ एवं ‘लिव -इन-रिलेशनशीप’ के द्वारा हिन्दू धर्म को दुर्बल बनाने का षड्यंत्र ! – पू. (डॉ.) शिवनारायण सेनजी, उपसचिव, शास्त्र-धर्म प्रचार सभा, बंगाल

पू. (डॉ.) शिवनारायण सेनजी, उपसचिव, शास्त्र-धर्म प्रचार सभा, बंगाल

जहां ‘राम’ हैं, वहां ‘काम’ नहीं चलता तथा जहां ‘काम’ है, वहां ‘राम’ नहीं होते । पाश्चात्त्य लोगों में कहीं पर भी मोक्ष की संकल्पना नहीं है । काम माया है तथा माया जीव को बहुत दुख देती है । ‘समलैंगिकता’ एवं ‘लिव-इन-रिलेशनशीप’ पाश्चात्त्य संस्कृति है, जिससे भारत की कुटुंबव्यवस्था नष्ट हो रही है । ऐसी घटनाएं कलियुग के प्रभाव के कारण घटित हो रही हैं । कलि के प्रभाव के कारण ‘ईष्ट’ ‘अनिष्ट’ लगता है तथा जो ‘अनिष्ट’ होतेा है, वह ‘ईष्ट’ लगता है । ‘समलैंगिकता’ एवं ‘लिव-इन-रिलेशनशीप’ के विषय में भी यही चल रहा है । अग्नि में घी डालने पर जैसे अग्नि अधिक भडक उठता है, उस प्रकार से भोगों की तृप्ति न होकर वे अधिक बढते हैं । हमारी संस्कृति भोगवादी नहीं, अपितु निवृत्तिपोषक है । भारतीय वर्णव्यवस्था भी निवृत्तिपोषक है । अल्लाउद्दीन खिलजी के हाथ में न लग जाएं; इसके लिए रानी पद्मिनीसहित १६ सहस्र महिलाओं ने अग्निप्रवेश किया । यह भारत की महान संस्कृति है । ‘समलैंगिकता’ एवं ‘लिव- इन-रिलेशनशीप’ हिन्दू धर्म को दुर्बल बनाने का षड्यंत्र है, ऐसा प्रतिपादन बंगाल की ‘शास्त्र-धर्म प्रचार सभा’ के उपसचिव पू. (डॉ.) शिवनारायण सेनजी ने किया । वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव के चौथे दिन (१९.६.२०२३ को) उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों को संबोधित करते हुए वे ऐसा बोल रहे थे ।

ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज की उपासना से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना संभव ! – सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी, धर्मप्रचारक संत, सनातन संस्था

सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी, धर्मप्रचारक संत, सनातन संस्था

रामनाथ देवस्थान – धर्माचरण एवं आध्यात्मिक साधना करने से हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता समझ में आती है तथा तब हम में सच्चा धर्माभिमान निर्माण होता है । उसके उपरांत समाज, राष्ट्र एवं धर्म का सच्चा हित साधने का प्रयास किया जाता है । धर्माचरण एवं आध्यात्मिक साधना करने से व्यक्ति पवित्र बन जाता है । धर्माभिमानी व्यक्ति धर्म का अनादर नहीं करता तथा अन्यों को भी वैसा करने नहीं देता, साथ ही होनेवाली धर्महानि रुकती है । केवल ऐसा ही व्यक्ति धर्मरक्षा का कार्य कर सकता है । इससे यह समझ में आता है कि हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य केवल धर्म का पालन करनेवाले तथा आध्यात्मिक साधना करनेवाले हिन्दू ही कर सकते हैं तथा रामराज्य ला सकते हैं, ऐसा मार्गदर्शन सनातन संस्था के धर्मप्रचारक सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने किया । वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव के चौथे दिन (१९.६.२०२३ को) उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों को संबोधित करते हुए वे ऐसा बोल रहे थे ।

सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने आगे कहा,

‘‘केवल इतना ही नहीं, अपितु आध्यात्मिक साधना करने से आत्मविश्वास जागृत होता है तथा व्यक्ति तनावमुक्त जीवन जी सकता है । वह साधना कर अपने कृत्य के फल के कार्य की अपेक्षा किए बिना कार्य कर सकता है तथा प्रत्येक कृत्य से आनंद प्राप्त करता है । फल की अपेक्षा रखे बिना काम करने से वह निःस्वार्थ कर्मयोग होता है, जिससे आध्यात्मिक प्रगति भी होती है । केवल ऐसा व्यक्ति ही धर्मरक्षा का कार्य सकता है । इससे यह समझ में आता है कि हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य केवल धार्मिक तथा साधना करनेवाले हिन्दू ही कर सकते हैं ।’’

Related News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *