चलचित्र भाग १
चलचित्र भाग २
चलचित्र भाग ३
सारणी
- १. हिंदुओं के पास सबसे बडी शक्ति से संगठित रूप से संघर्ष करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं !
- २. तृणमूल स्तर के हिंदुओं का स्वाभिमान जागृत करना आवश्यक !
- ३. ईसाई तथा मुसलमानों की धर्मांधता तथा उन्हें प्रतिबंधित करने के लिए धर्मजागृति का महत्त्व !
- ४. वनवासियों को कट्टर हिंदू बनाने के परिणाम !
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श्री. नवलकिशोर शर्मा, संयोजक, भोजशाला मुक्ति यज्ञ समिति, धार, मध्यप्रदेश
१.हिंदुओं के पास सबसे बडी शक्तिसे संगठित रूप से संघर्ष करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं !
स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत पिछले ६५ वर्षों से हम एक निराले संक्रमण काल से मार्गक्रमण कर रहे हैं । आज हिंदुत्व का गला घोंटा जा रहा है । १५ अगस्त १९४७ को हमें समझौते के आधारपर खंडित स्वतंत्रता प्राप्त हुई । तदुपरांत प्राप्त कार्यपद्धति के कारण धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल और नेता भी मिले । हम सबको लगता है कि यह एक बडी शक्ति है । इसका संगठित होकर विरोध करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है ।
२. तृणमूल स्तर के हिंदुओं का स्वाभिमान जागृत करना आवश्यक !
हम आज प्रदर्शनी, प्रवचन, एस्एम्एस्, सूचना जालस्थल, संगणकीय पत्र, विविध संगणकीय प्रणालियोंद्वारा हिंदुओं को संगठित कर रहे हैं । इस से केवल २ प्रतिशत ही लाभप्रद हो सकते हैं; परंतु यदि हमें ९८ प्रतिशत प्रयत्न करने हो, तो घर-घर जाना होगा । तृणमूल स्तर के हिंदुओं को ढूंढकर उन्हें संगठित करना होगा । वनवासी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर हिंदुओं का स्वाभिमान जगाने की आवश्यकता है ।
३. ईसाई तथा मुसलमानोंकी धर्मांधता तथा उन्हें प्रतिबंधित करनेके लिए धर्मजागृतिका महत्त्व !
३.अ. क वर्ष १९९१ में धार जनपद में धर्मांध ईसाई तथा मुसलमानोंद्वारा बडी मात्रा में हो रही हिंदूविरोधी गतिविधियां !
मेरा कार्यक्षेत्र मध्यप्रदेशका धार जनपद है । वर्ष १९९१ में मैंने उस क्षेत्र में कार्य आरंभ किया । पूरे जनपद में हमारे पास एक भी वनवासी कार्यकर्ता नहीं था । जनपद के एक भी गांव में हमारा संपर्क नहीं था । जनपद में धर्मांतरण करने का ईसाइयों का कार्य अत्यंत वेगसे चल रहा था । ‘धर्मांतरण प्रतिबंधित किया जाना चाहिए’, ऐसा संकल्प लेकर मैं उस कार्यक्षेत्र में गया । प्रत्यक्ष गांव में जानेपर मेरे ध्यान में आया कि ‘ईसाइयों के धर्मांतरण के अतिरिक्त इस धर्मांतरण से भी अधिक खतरनाक इस्लामिक गतिविधियां सब से अधिक चल रही हैं ।’ मुसलमान मात्र ७ प्रतिशत थे; परंतु सभी १०० प्रतिशत वनवासी उनसे प्रभावित थे । वहां का राजनीति, साहुकारी, व्यापार सबकुछ मुसलमानों के नियंत्रणमें था । फलस्वरूप एक ही जनपद में प्रतिवर्ष सहस्रों हिंदू युवतियों को मुसलमान घर ले जाते थे । सहस्रों गायों की हत्या होती थी । गांव-गांव में हिंदू अपमानित होते थे । ‘मुसलमान किस प्रकार हमें अपमानित करते हैं’, इसका अनुभव हम सबको है । ‘क्या करें ?’, यह बहुत बडी समस्या थी । हमसे पूर्व इस क्षेत्र में कार्य करनेवाले अनुभवियों का कहना था कि ‘‘यहां आश्रम चलाइए, सेवाकार्य कीजिए, विद्यालय चलाइए इत्यादि ।’’
३.आ. हिंदुओं को एकत्रित करने हेतु धर्मजागृति अनिवार्य !
मित्रो, हमारे ध्यान में आया है कि ऐसा कार्य करते तो ५०-६० वर्ष बीत गए । आगे के १०-२० वर्षों में भी कुछ नहीं होगा । अंत में ईश्वर की कृपासे धर्मजागृति का कार्य आरंभ हो गया । धर्मजागृति के माध्यम से वहां कांवडयात्रा, गणेश उत्सव, संतों का भ्रमण, उनके प्रवचन आदि कार्यक्रमों का आयोजन किया गया । इस से ८ वर्षों में १३३४ गांवों में हिंदुओं को एकत्रित करना संभव हुआ तथा ‘धर्मरक्षक समितियां’ भी स्थापित की गर्इं । वार्षिक धार्मिक कार्यक्रम निश्चित करने पर उनमें बडी मात्रा में उत्साह निर्माण होकर धर्मजागृति हुई । वनवासियों में धर्माभिमान जागृत हुआ । हिंदू संगठित हुए और उनके प्रयासों से हिंदू महिला तथा युवक अन्य धर्म में जाने से बचने लगे । उन्होंने मुसलमान घरों में गई लडकियों को वापस लाने का कार्य आरंभ किया ।
३.इ. धर्मजागृति होने के साथ ही धर्मांतरण होते देख स्वामी असीमानंद जी का कार्य को दिशा देना
स्वामी असीमानंदजी ने ध्यान में लाकर दिया कि ‘इतना ही कार्य पर्याप्त नहीं, वह आपका भ्रम है’। उन्होंने दिखा दिया कि एक ओर प्रवचन, यात्राएं हो रही हैं, तो दूसरी ओर धर्मांतरण का कार्य भी निर्बाधरूप से जारी है । हिंदू बेटियों का परधर्म में जाना चल ही रहा है । ऐसा हो, तो कार्य का क्या लाभ ? स्वामी असीमानंदजी ने हमें बताया कि ‘हिंदुओं को मात्र ‘हिंदू’ नहीं बनाना है’, अपितु हिंदू को कट्टर हिंदू बनाना है । जब तक हिंदू कट्टर नहीं बनेंगे, तबतक हिंदू संगठन का कोई लाभ नहीं ।’
४.वनवासियों को कट्टर हिंदू बनाने के परिणाम !
मध्यप्रदेश के धार जनपद में १४३ दरगाहें थीं । उनमें से ८० मस्जिदों के आसपास एक भी मुसलमान नहीं था । ऐसा होते हुए भी वे जादू-टोना, उर्स जैसे सब प्रकार के कार्य वनवासी क्षेत्र में चलते थे । उन्होंने ग्रामवासियों को गाय काटकर मांसाहार करने की आदत लगाई । हिंदू ही गोहत्या कर रहे थे । वनवासी जनों को कुछ भी पता नहीं था कि ‘राम कौन हैं ?’, ‘हनुमानजी कौन हैं ?’ स्वामी असीमानंदजी की प्रेरणा से वहां साढेतीन लाख घरों में पूजाघर स्थापित किए गए । उस क्षेत्र में चलनेवाले दुष्चक्र के लिए उत्तरदायी २८ मुसलमानों को हम ने ढूंढ निकाला । ये लोग ही कार्य कर रहे थे । हम उन्हें रोकने का अवसर ढूंढ रहे थे । यह अवसर हमें दिग्विजय सिंह ने दिया । अवसर मिलते ही केवल २ दिनों में १४३ दरगाहों को उखाड दिया गया । पूरा गांव इकट्ठा हुआ । उनके मन से (मस्जिद, चर्च आदिके बारे में) श्रद्धा नष्ट हो चुकी थी । ‘‘यह ईश्वर नहीं’’, ऐसा समझाकर उन के सामने ईसाई देवताओं के चित्र फाड दिए गए ।
स्वामी असीमानंदजी की सीख थी कि केवल अनुचित श्रद्धाओं को नष्ट करना पर्याप्त नहीं, ‘हमारे देवी-देवता सर्वश्रेष्ठ हैं’, यह श्रद्धा निर्माण करना आवश्यक है !