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‘सांप्रदायिक एवं लक्ष्यित हिंसा प्रतिबंधक अधिनियम’ का संकट और उपाय !

सारणी



वक्ता : श्री. मनीष मंजुल, ‘समर्थ’ संगठन, देहली.

१. ‘सांप्रदायिक एवं लक्ष्यित हिंसा अधिनियम’ यह हिंदुत्व को समाप्त करने का षड्यंत्र !

        माना जाता है कि ‘सांप्रदायिक एवं लक्ष्यित हिंसा अधिनियम’ मतोंके लिए की गई राजनीति (वोट बैंक पोलिटिक्स) है’; परंतु एक महत्त्वपूर्ण बात हमें समझ लेनी चाहिए कि ‘यह मतोंकी राजनीति नहीं, अपितु हिंदुत्वको समाप्त करनेका एक षड्यंत्र है ।’

२. इस्लामी विशेषज्ञोंद्वारा विदेश में ‘भारत के अल्पसंख्यक संकटमें हैं’, ऐसा दुष्प्रचार करना

        पश्चिमी देशों में तथा यूरोप में मुसलमान और ईसाई एक-दूसरे के साथ लड रहे हैं । भारत में ईसाई मुसलमानों की रक्षा करने की बातें कर रहे हैं । यह विचित्र समीकरण है और इसे समझने के लिए हमें भारत के इतिहास का अध्ययन करना होगा । इस देश में मुसलमान और हिंदू कैसे रहे हैं, इसका अध्ययन करना होगा । क्या वे सदैव ही लडते थे अथवा उनमें शीतयुद्ध चल रहा था, उनमें किस प्रकार का झगडा था, यह हमें देखना होगा । इस विषय में गुप्तचर विभाग के (आई.बी.के) एक संयुक्त संचालक (ज्वाइंट डाइरेक्टर) श्री. आर्.एन्.पी. सिंह (श्री. रामनरेश प्रसाद सिंह)ने ‘रायट्स एंड राँग्स् (Riots and Wrongs)’ नामक पुस्तक लिखी है । इस पुस्तक में वर्ष १७१३ से २००४ तक हुए दंगों का विवरण दिया है । उसमें दिए आंकडों का अध्ययन कर कुछ प्रश्न उपस्थित करने पर ध्यान में आया कि भारत के बाहर इस्लामी विशेषज्ञों ने (एक्स्पर्ट, स्कॉलर्स ने) प्रसार (मार्केटिंग) किया है कि भारत में अल्पसंख्यक संकट में हैं ।

३. कानून में अनुसूचित जाति-जनजातियों का समावेश अर्थात उन्हें हिंदुओं से पृथक करने के लिए रचा गया षड्यंत्र !

        इस कानून में अनुसूचित जाति-जनजाति (‘एस्.सी., एस्.टी.’) का भी उल्लेख है । हमें उन लोगों को बताना होगा कि यह आपको हिंदुओं से पृथक करने के लिए रचा गया षड्यंत्र है । उनका उद्देश्य आपका उपयोग करने का है; क्योंकि केंद्र में शासन पाने के लिए मुसलमान और ईसाई मिलाकर उनके पास पर्याप्त संख्या है ।  

४. ‘सांप्रदायिक एवं लक्ष्यित हिंसा अधिनियम’का वास्तविक स्वरूप !

        कुछ लोग कहते हैं, ‘‘आप पागल हो गए हैं । क्या यह कानून बनाने के लिए शासन पागल हो गया है ? ऐसा कानून कभीr नहीं बनेगा ।’’ ऐसा कहनेवालों को हम बताना चाहते हैं कि, ‘‘शासन कोई पहली बार ऐसा कानून नहीं बना रहा । इस से पूर्व भी वह अस्तित्व में था । स्टेलिन, हिटलर के काल में ऐसा कानून था । एक ‘प्रोटेक्शन स्क्वाड्रन’ बनाया था । उसका मुखिया था हेनरी खेमलर । उसने ‘प्रोटेक्शन स्क्वाड्रन’ के माध्यम से पूर्ण जर्मनी में यहूदियों को मारने हेतु उनके कार्यालय में लोग भेजे थे । उन्हें ‘एस्.एस्. ऑफिसर्स’ के नाम से जाना जाता था । उन ‘एस्.एस्. ऑफिसर्स’ने ही यह काम किया है । ‘सांप्रदायिक एवं लक्ष्यित हिंसा अधिनियम’ उसी कानूनकी कॉपी है ।

५. ‘सांप्रदायिक एवं लक्ष्यित हिंसा अधिनियम’के विरोध में जागृति करने के लिए ‘समर्थ’ संगठन की ओर से किए जानेवाले प्रयत्न

५.अ. कार्यकर्ताओंद्वारा दूरभाष से विधान के विषय में जानकारी देना

         हमने देहली में ‘कॉल सेंटर’के समान एक ‘सेटअप’ लगाया है । उस में तीन संगणकों पर ३ कार्यकर्ता काम करते हैं । ये कार्यकर्ता लोगों को दूरभाष कर ‘सांप्रदायिक एवं लक्ष्यित हिंसा अधिनियम’के विषय में जानकारी देते हैं ।

५.आ. प्रतिष्ठित लोगों को ३० सेकेंड के भीतर विधान के विषय में जानकारी देना

        प्रत्येक भाग में कार्य करनेवाले कुछ लोग हैं, उदा. किसी भाग में कोई उद्योगपति है, तो उस भाग में उसका कहा माननेवाले सहस्र लोग तो होते ही हैं । ऐसे ९ सहस्र लोगों की सूची हमने सिद्ध की है । ऐसे प्रतिष्ठित लोगों को ३० सेकेंड के भीतर हम इस कानून के विषय में जानकारी देते हैं ।

५.इ. कार्यकर्ताओंद्वारा कानून के विषय में जानकारी देना और उस माध्यम से १२००-१३०० लोगों में से न्यूनतम २०० लोग नियमित संपर्क में रहना

        किसी व्यक्ति की ओर से सकारात्मक प्रतिसाद मिलते ही हम उन्हें पैâक्स, दूरभाष, संगणकीय पत्र इत्यादि माध्यमोंद्वारा विस्तृत जानकारी भेजते हैं । इसके अतिरिक्त हमने ७ कार्यकर्ता सिद्ध किए हैं । वे कॉर्पोरेट ऑफिसेस में जाते हैं और भोजन की अवधि में उनके समक्ष इस कानून की जानकारी देनेवाला एक कागज (पेपर) रखते हैं । उन्हें जानकारी देकर अपना संपर्क क्रमांक देते हैं । इस प्रकार विगत डेढ वर्ष में संपर्क किए गए १२००-१३०० लोगोंमें से २०० लोग नियमित संपर्क में हैं ।

५.ई. विद्यापीठों तथा पुस्तकालयों में लेख अथवा प्रतिक्रियाओं के माध्यम से कानून की जानकारी भेजना

        हमने विद्यापीठों तथा पुस्तकालयों में ‘एकेडमिक कंटेंट’के रूप में यह कानून, लेख अथवा प्रतिक्रियाओं के माध्यम से रखने का प्रयास किया । यह काम भावनात्मक नहीं है, इसलिए इसे करते समय हमें व्यावसायिक पद्धतिसे जाना पडेगा; क्योंकि सामनेवाले पक्ष के पास प्रसार माध्यम तथा बायस्ड माइंड सेट (पूर्वाग्रहग्रस्त वर्ग) है । वह हमारा कहना स्वीकार्य न हो, इसलिए बाधाएं लाता है ।

६. सांप्रदायिक एवं लक्ष्यित हिंसा अधिनियम’के विरोध में जागृति हेतु किए जानेवाले प्रयत्न

६.अ. मंदिरों में भजन-कीर्तन आयोजित कर उस माध्यम से कानून के विरोध में जनप्रबोधन किया जा सकता है ।

६.आ. राष्ट्रीय स्तरपर कार्य करना

        कानून के विरोध में विभिन्न राज्यों में कार्यरत छोटे-छोटे संगठनों को एकत्र कर क्या हम राष्ट्रीय समिति गठित कर सकते हैं, यह भी देखना होगा । इन संगठनों का समन्वय किसी एकको देखना होगा । इस हेतु बहुत संख्याबल नहीं चाहिए, प्रत्येक स्थान पर केवल ५० लोग कुछ प्रयास करें और ऐसा ६०० जनपदों में (जिलोंमें) किया जाए । इन सबकी एकत्रित रिपोर्ट राष्ट्रीय स्तरपर बनाई जाए, तो उसका बडा प्रभाव पडेगा । राष्ट्रीय स्तरपर बडा जाल (नेटवर्क) निर्माण हो जाएगा ।

६.इ. बडा ध्येय साध्य करने के लिए आवश्यक तीन स्तर

        मुझे लगता है कि ‘तीन स्तरोंपर हम काम कर सकते हैं । पहला स्तर अर्थात शक्ति का एकत्रिकरण करना, दूसरा स्तर समन्वय रखकर जागरण करना और तीसरे स्तरपर शक्तियों का सुयोग्य एवं संगठित उपयोग करना ।’ इन तीन स्तरोंपर काम किया जाए, तो हम बहुत बडा ध्येय साध्य कर पाएंगे ।

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