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उत्तरप्रदेश-नेपाल बॉर्डर पर धर्मांतरण का नया पैटर्न, भगवान की मूर्ति हटवाकर जीसस की प्रार्थना

नाम हिंदू रहा, पूजा का तरीका बदला

‘मैं शुरू से यीशू को फॉलो नहीं करता था। शराब-सिगरेट की लत लगी हुई थी। बेरोजगार था। कुछ साल पहले मैं एक मलयाली पास्टर गिरीश से मिला था। वही मुझे सही रास्ते पर लेकर आए। मेरी हर गलत आदत खत्म हो गई। इसके बाद से ही मैं यीशू को फॉलो करने लगा हूं। अब मेरे घर में ही चर्च है। यहां आसपास के ३०० से ४०० लोग प्रार्थना के लिए आते हैं।’

ये कहना है रमाकांत नामक व्यक्ति का। उम्र ३५ से ३७ साल के बीच होगी। जन्म से हिंदू हैं, पर अब यीशू को मानने लगे हैं। रमाकांत की पत्नी भी यीशू को मानती हैं। ये परिवार नेपाल बॉर्डर से सटे लखीमपुर जिले के निघासन कस्बे में रहता है। नेपाल से सटे उत्तरप्रदेश के जिलों में धर्मांतरण की खबरें अक्सर सामने आती हैं। हम नेपाल बॉर्डर पर मुस्लिमों की बढ़ती आबादी पर रिपोर्ट करने गए थे। वहीं हमारी मुलाकात रमाकांत से हुई।

कवरेज के दौरान पता चला था कि लखीमपुर के ३० गांवों में ईसाई मिशनरी एक्टिव हैं। ये गांव थारू जनजाति के हैं और चंदन चौकी से गौरीफंटा बॉर्डर के करीब बसे हैं। ये एरिया पलिया तहसील में आता है। यहां की १५ ग्राम पंचायतों में ५० हजार से ज्यादा थारू आबादी रहती है।

इसकी पड़ताल करने सबसे पहले हम नझौटा गांव पहुंचे। गांव में एक चर्च है, जो दूर से दिखता है। हमने कैमरा निकाला तो वहां मौजूद लोगों ने शूट करने से रोक दिया। हमारे आने की वजह पूछी। कहने लगे कि पहले मीडियावाले बातचीत करके जाते हैं और फिर उल्टी-सीधी चीजें दिखाते हैं। हमारे साथ गए एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा कि गांव में रुकना ठीक नहीं है। इसलिए हम वहां से निकल आए।

पता चला कि करीब साल भर पहले लखीमपुर के तिकुनिया बॉर्डर से २५ किमी दूर निघासन में धर्मांतरण का मामला सामने आया था। इसमें कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी हुई थी। हम निघासन की तरफ चल पड़े। वहां के अंबेडकरनगर में बने चर्च में पहुंचे, जहां रमाकांत कश्यप से हमारी मुलाकात हुई।

घर में चर्च, ऊपर के फ्लोर पर ३०० लोगों को प्रार्थना करने की जगह

निघासन चौराहे से पलिया रोड पर करीब ५०० मीटर दूर आंबेडकरनगर नाम का मोहल्ला है। नए बसे इस मोहल्ले में कई प्लॉट खाली पड़े हैं। चर्च के बारे में पूछते-पूछते हम एक मकान के पास पहुंचे। देखकर शक हुआ कि ये चर्च है भी या नहीं। वहां लोग आ-जा रहे थे। हमने घर का दरवाजा खटखटाया। एक महिला बाहर आई। हमने चर्च के फादर के बारे में पूछा, तो बोली वे प्रेयर की तैयारी कर रहे हैं।

कुछ देर बाद शॉर्ट कुर्ता और पैंट पहने एक आदमी बाहर आया। नाम रमाकांत कश्यप बताया और कहा कि इस चर्च का पादरी मैं ही हूं। वे हमें कमरे में अंदर ले गए। बताया कि ‘कुछ देर में फास्ट प्रेयर होनी है। इसके लिए लोग इकट्‌ठा होने वाले हैं। उसी की तैयारी कर रहा था।’ हमने कहा कि ‘हम आपकी प्रेयर को कवर करना चाहते हैं।’ थोड़ी ना नुकुर के बाद रमाकांत ने परमिशन दे दी।

हमने रमाकांत से कहा कि आपका नाम तो हिंदुओं की तरह है। जाहिर है आपने धर्म बदला है, लेकिन कैसे और क्यों? जवाब में रमाकांत बताते हैं, ‘मैंने धर्म नहीं बदला। यीशू धर्म बदलने को नहीं कहते हैं। धर्म तो दंगा करवाता है, अपराध करवाता है। मैं यीशू काे फॉलो करता हूं।’

बातचीत में पता चला कि रमाकांत की शादी २०१६ में हुई थी। रमाकांत की पत्नी लीना भी यीशू को फॉलो करती हैं। उन्होंने कैमरे पर बात नहीं की, लेकिन बताया, ‘मैं रायबरेली से हूं। पिता की तबीयत खराब रहती थी। तभी एक पास्टर के संपर्क में आई। उनकी चंगाई सभा में जाने लगी, इसके बाद पिता की तबीयत सुधरने लगी। उनके ठीक होते ही यीशू को फॉलो करने लगी।’

यीशू को फॉलो करने वालों में दलित ज्यादा, दिक्कतें दूर हुईं तो चर्च जाने लगे

चर्च में फास्ट प्रेयर करने आए जयराम निघासन के ही रहने वाले हैं। वे दलित समुदाय से हैं। मजदूरी करते हैं। २०१७ में उनकी तबीयत खराब हुई, फिर बिस्तर नहीं छोड़ पाए। जयराम बताते हैं, ‘मुझे कुष्ठ रोग भी हो गया। मेरी बुआ को किसी ने निघासन में चल रहे इस चर्च के बारे में बताया था। वे मुझे यहां लाईं। इसके बाद मैं भी चर्च में आकर प्रार्थना करने लगा।’

चर्च में आए दिनेश बताते हैं कि ‘मैं वाल्मीकि समुदाय से हूं। 2 साल से चर्च से जुड़ा हूं। पहले भगवान की पूजा-पाठ करते थे। एक बार बीमार पड़ गया। इलाज कराया, पूजा-पाठ सब किया, पर फायदा नहीं हुआ। मैं थोड़ा ठीक होता तो पत्नी बीमार पड़ जाती थी। इससे हम सभी परेशान थे। इसके बाद चर्च में प्रेयर करना शुरू किया। हम यहां हर रविवार आते हैं।’

रमाकांत का घर दो मंजिला बना हुआ है। ग्राउंड फ्लोर पर परिवार रहता है। अंदर बरामदा है, जिसमें सीढ़ियां बनी हैं। बरामदे से अंदर जाने के लिए गैलरी थी। गैलरी के दोनों तरफ कमरे थे। अंदर एक लॉबी है, जिसमें एक तरफ CCTV फुटेज देखने के लिए मॉनिटर लगा है। बीच में कालीन के ऊपर सोफा रखा है। कालीन के नीचे बेसमेंट है, रमाकांत ने उसे दिखाने से इनकार कर दिया। रमाकांत भले घर को चर्च बताएं, लेकिन चर्च का रजिस्ट्रेशन उनके पास नहीं है।

स्रोत : भास्कर

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