मंदिर संस्कृति की ऱक्षा के लिए वस्त्रसंहिता आवश्यक !
दापोली एवं खेड में वस्त्रसंहिता के विषय में हुई बैठकों में मंदिर विश्वस्तों का एकमत
दापोली – मंदिर, हिन्दू धर्म की आधारशिला एवं चैतन्य का स्रोत हैं । हिन्दुओं को आध्यात्मिक बल देनेवाली ‘भारतीय मंदिर संस्कृति’ आज धर्मविहीन ‘सेक्युलर’ शासनतंत्र के कारण संकट में आ गई है । धर्मशिक्षा के अभाव के कारण हिन्दुओं को देवदर्शन भावपूर्ण कैसे करने हैं ? यह पता नहीं, इसलिए कुछ लोग अंगप्रदर्शन करनेवाले उत्तेजक, अल्प और तंग वस्त्र पहनकर मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं । मंदिर के स्वरूप में मिली दैवीय धरोहर संजोना और सात्त्विकता-चैतन्य का संवर्धन करना, प्रत्येक हिन्दू का धर्मकर्तव्य है । इस अनुषंग से मंदिर विश्वस्तों को मंदिऱ में वस्त्रसंहिता लागू करने हेतु प्रयत्न करने चाहिए, ऐसा आवाहन हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. सुरेश शिंदे ने किया ।
मंदिर में दर्शन के लिए आनेवाले हिन्दू एवं पर्यटकों की वेशभूषा के कारण उन्हें मंदिर के चैतन्य का लाभ नहीं होता और मंदिर की सात्त्विकता भी घटती है । इसलिए मंदिरों में वस्त्रसंहिता फलक लगाना आवश्यक है, इस विषय में इस बैठक में विश्वस्तों का एकमत हुआ । इस अवसर पर ‘अन्य पदाधिकारियों से चर्चा कर उस विषय में निर्णय लेकर वस्त्रसंहिता फलक निश्चित ही लगाएंगे’, ऐसा मत विश्वस्तों ने व्यक्त किया। दापोली में बैठक में समिति के श्री. परेश गुजराथी एवं खेड के श्री. शिवाजी सालेकर ने इस बैठक का सूत्रसंचालन किया ।
मंदिर रक्षा के लिए संगठित होने का वसई के मंदिर विश्वस्तों का निर्धार !
हिन्दू जनजागृति समिति एवं मंदिर महासंघ के संयु्क्त विद्यमान में मंदिर विश्वस्तों की बैठक का आयोजन !
वसई – मंदिरों पर होनेवाले आघात, मंदिरों का सरकारीकरण रोकना एवं धार्मिक परंपराओं की रक्षा करने के लिए संगठितरूप से कार्य करना आवश्यक है, ऐसे उद़्गार ‘महाराष्ट्र मंदिर महासंघ’के एवं हिन्दू जनजागृति समिति के समन्वयक श्री. बळवंत पाठक ने व्यक्त किए । वे वसई में वीर मारुति मंदिर में हुए मंदिर विश्वस्तों की बैठक में बोल रहे थे । यह बैठक १६ जुलाई को हिन्दू जनजागृति समिति एवं मंदिर महासंघ के संयुक्त विद्यमान में संपन्न हुई । बैठक में वसई, विरार, नालासोपारा परिसर के २९ मंदिरों के विश्वस्त एवं प्रतिनिधि उपस्थित थे । सभी ने मंदिर रक्षा के लिए संगठित होने का निर्धार किया ।
‘सभी स्थानों पर जैसे वस्त्रसंहिता लागू होती है, उसीप्रकार मंदिरों में भी वस्त्रसंहिता होनी चाहिए’, ऐसे स्पष्ट मत श्री. बळवंत पाठक ने व्यक्त किए । उन्होंने मंदिरों में धर्मशिक्षा वर्ग आरंभ कर, जागृति के लिए नेतृत्व लेने का आवाहन किया ।