Menu Close

साधु-संतोंके देश भारतमें हिंदुओंकी दुर्दशा !

वक्ता : श्री. पी.पी. एम्. नायर, केरलीय मंदिर क्षेत्र परिपालन समिति, मुंबई

सारणी


 

१. अनेक आक्रमणोंके उपरांत भी हिंदू संस्कृतिका प्रवाह निरंतर जारी रहना !

        ‘वर्ष १९४७ से पूर्व हिंदू, हिंदू संस्कृति तथा हिंदुस्थानपर विदेशियोंके आक्रमण होते थे । स्वतंत्रताके पश्चात आजतक हिंदुओंपर स्वदेशियोंके आक्रमण हो रहे हैं । तब भी हिंदू संस्कृतिका प्रवाह गंगाके समान निरंतर जारी है ।

 

२. भारतमें हिंदू ही खरे अर्थमें अल्पसंख्यक होना

        यहांके हिंदू ही खरे अर्थसे अल्पसंख्यक हैं; क्योंकि हिंदुओंके पक्षमें बोलनेवाली पत्रिका, दूरदर्शनप्रणाल अथवा एक भी नेता नहीं है । अन्योंकी ही पत्रिकाएं होती हैं । उनके लिए दूरदर्शनप्रणाल हैं । उनके लिए काम करनेवाले सत्ताधारी दल हैं ।

 

३. ‘इस्लामी नाम तथा धर्मांधोंके लिए काम करनेवाला दल है’,

यह स्पष्ट होते हुए भी दलको धार्मिक शक्ति न कहनेवाले राज्यकर्ता !


केरलमें ‘मुस्लिम लीग’ नामक पक्ष है । उसके नामसे ही स्पष्ट है कि वह इस्लामी है, तब भी शासन कहता है, ‘वह तो केवल एक नाम है । वह दल कोई धार्मिक शक्ति नहीं है ।’ सच तो यह है कि यह दल धार्मिक ही है । इसका कारण यह कि केरल विधानसभाके गत वर्षके चुनावोंके समय मुंबईसे ११ बसें धर्मांधोंको लेकर मंगलापुरम्के लिए रवाना हुई थीं । ये मतदाता ‘मुस्लिम लीग’को मत देनेवाले थे । सऊदी अरब जैसे देशसे तीन हवाई जहाज विशेष रूपसे आए थे । वे भी ऐसे ही धर्मांध मतदाताओंसे भरे थे । केवल तीन दिनोंके लिए ये सब लोग उस समय मंगलापुरम्में आए और मुस्लिम लीगको मत देकर चले गए । राज्यकर्ताओंको अच्छेसे पता है कि ‘धर्मांधोंकी मतपेटी है ।’

 

४. आजका शासन विदेशियोंके

दबावमें होनेके कारण हिंदुओंकी रक्षा होना असंभव !

        मंदिरोंके समान ही हिंदू संस्कृति भी राज्यकर्ताओंका लक्ष्य है । हिंदू संस्कृतिमें प्रेमभाव, सहिष्णुता तथा सभ्यता है । उन्हें पता है कि हिंदू संस्कृति नष्ट की जाए, तो हिंदू अपनेआप ही नष्ट हो जाएंगे । आजका शासन विदेशियोंके दबावमें काम कर रहा है । जिस महात्माने विदेशियोंको निकालनेके लिए अपना जीवन दिया, उसी महात्माके नामपर आज यहां एक विदेशी राज्य कर रहा है । ऐसी स्थितिमें हिंदुओंकी रक्षा कैसे होगी ? कुछ लोग हमें कहते हैं, ‘आप ऐसे राजनीतिक विषयोंपर क्यों बोलते हैं ? आपको तो केवल ‘धर्म’ इस विषयपर बोलना चाहिए ।’ हम कहते हैं, ‘यह और कौन करेगा ? शिवाजी महाराजको ‘छत्रपति’ किसने बनाया ? रामदासस्वामी जैसे एक महात्माने ही बनाया । यह देश साधु-संतोंका है ।’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *