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‘हज हाउस’ का निर्माण एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि है, धार्मिक नहीं : बॉम्बे उच्च न्यायालय

तो क्या देश सेकुलर है इसलिए सरकारी जमीन पर मंदिर के स्थान पर मस्जिदें और हज हाउस बनेंगे ?, ऐसा प्रश्न हिन्दुओं के मन में आता है ! – सम्पादक, हिन्दुजागृति

हिंदूवादी नेता मिलिंद एकबोटे ने पुणे में सरकारी जमीन पर हो रहे निर्माण को की थी गिराने की मांग

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने गुरुवार (7 सितंबर) को समस्त हिंदू अघाड़ी के नेता मिलिंद एकबोटे की पुणे में निर्माणाधीन हज हाउस को गिराने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। इसे खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि हज हाउस का निर्माण एक ‘धर्मनिरपेक्ष गतिविधि है, धार्मिक नहीं’।

चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस आरिफ डॉक्टर वाली न्यायालय की बेंच ने एकबोटे से कहा, “आपको धार्मिक गतिविधि और धर्मनिरपेक्ष गतिविधि में राज्य की संलिप्तता के बीच अंतर करना चाहिए। हज हाउस का निर्माण एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि है। यह कोई धार्मिक गतिविधि नहीं है। आप खुद को भ्रमित न करें।”

बेंच ने देखा कि इस मामले में मिलिंद एकबोटे की कोई व्यक्तिगत हित नहीं है तो उसने रिट याचिका को जनहित याचिका (पीआईएल) में बदल दिया। दरअसल, न्यायालय में हिंदू नेता एकबोटे के वकील ने दलील थी कि केवल एक समुदाय को ही फायदा कैसे मिलता है? पंढरपुर में लाखों श्रद्धालु आते हैं, लेकिन उनके लिए कुछ नहीं किया जाता है।

हज हाउस का निर्माण धार्मिक गतिविधि नहीं

समस्त हिंदू अघाड़ी के नेता मिलिंद एकबोटे के वकील कपिल राठौड़ ने अपने मुवक्किल के पक्ष में दलील दी। उन्होंने न्यायालय को बताया कि इस मामले में ‘जमीन के इस्तेमाल में बदलाव’ हुआ है, क्योंकि यह जगह पुणे के कोंढवा क्षेत्र के और उसके आसपास के लोगों को बुनियादी सुविधाएं देने के लिए आरक्षित था। उन्होंने तर्क दिया कि हज हाउस के निर्माण के लिए जमीन का इस्तेमाल बदल दिया गया।

अधिवक्ता कपिल राठौड़ ने कहा कि हज हाउस का निर्माण ‘धार्मिक गतिविधि’ के तहत आता है और यह वर्तमान परिदृश्य में स्वीकार्य नहीं है। अधिवक्ता राठौड़ ने न्यायालय से कहा, “केवल एक समुदाय को फायदा क्यों मिले, जबकि पंढरपुर में लाखों श्रद्धालु आते है। इन श्रद्धालुओं के लिए कुछ नहीं किया गया।”

वहीं, पुणे नगर निगम की ओर से पेश वकील अभिजीत कुलकर्णी ने बॉम्बे उच्च न्यायालय से कहा कि जमीन का उपयोग नहीं बदला गया है। उन्होंने कहा कि विभिन्न समुदाय के लोगों को उनकी सांस्कृतिक और सामुदायिक गतिविधियों के लिए यहां जगह मिलती है।

इस दौरान वकील कुलकर्णी ने न्यायालय का ध्यान हिंदू नेता के वकील राठौड़ की इस दलील पर दिलाया, जिसमें उन्होंने कहा कि हज हाउस की इमारत की दो मंजिलों का निर्माण पहले ही किया जा चुका था। इसके बाद न्यायालय ने उनसे याचिका के जवाब में हलफनामा दाखिल करने को कहा।

बेंच ने वकील कपिल राठौड़ से कहा कि वह केवल हज हाउस मामले पर ध्यान केंद्रित करें। बॉम्बे उच्च न्यायालय की बेंच ने उनसे सवाल किया, “जमीन के इस्तेमाल में बदलाव कहां हुआ है? यदि आप मंदिर बनाएंगे तो क्या इसका इस्तेमाल हर कोई करेगा? कृपया पहले एक मामला बनाएं और फिर बताएं कि हज हाउस का निर्माण नहीं किया जा सकता है।”

बेंच ने कहा, “आपने कहा कि जमीन के इस्तेमाल में बदलाव हुआ है। अपनी दलीलों में से कोई एक पैराग्राफ ऐसा बताएं। इसमें कहा गया है कि यह ‘कानून की स्थापित स्थिति’ थी कि धार्मिक गतिविधियों में राज्य की संलिप्तता की अनुमति नहीं है।”

स्रोत : ऑप इंडिया

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