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गोमाहात्म्य एवं गोरक्षा

वैशाख कृष्ण द्वादशी , कलियुग वर्ष ५११५

वक्ता : श्री. नटेशन, गोवर्धन ट्रस्ट, तमिलनाडु.

सारणी



१. परमाचार्य श्री श्री श्री चंद्रशेखरानंद सरस्वतीजीकी

प्रेरणासे ‘गोमाताको बचाएं, राष्ट्र बचाएं’, यह अभियान आरंभ होना

        ‘विश्व हिंदू परिषद’के ‘चेन्नई शहरसचिव’ पदपर कार्य करते हुए कांची कामकोटी पीठाधीश्वर परमाचार्य श्री श्री श्री चंद्रशेखरानंद सरस्वतीजीने मुझे ‘ग्रामविकास एवं गोरक्षा’ करनेके लिए प्रेरित किया । यह ३० वर्ष पूर्वकी बात है । मनुष्य कल्याणके लिए हमारे दो न्यास हैं । एक ‘गोवर्धन’ एवं दूसरा ‘भारत हेरिटेज फाऊंडेशन’ । हमारे कार्यका मुख्य उद्देश्य है, ‘गोमाताको बचाएं, ग्राम बचाएं, किसानोंको बचाएं एवं राष्ट्र बचाएं !’

 

२. १२१ करोडकी जनसंख्यावाले भारतमें

‘खेती’ ही भारतका एकमात्र परिपूर्ण एवं सर्वश्रेष्ठ उद्योग होना


प्रत्येककी तीन माता हैं । एक जननी, दूसरी गोमाता और तीसरी किसान माता । यदि किसान अनाज न उगाएं, तो हमें खानेके लिए नहीं मिलेगा । तमिलनाडुमें कहा जाता है कि ‘यद्यपि हमने बहुत कुछ किया हो; तब भी खेती सर्वश्रेष्ठ है ।’ पूर्वमें जब किसान भारी संख्यामें थे, तब देशमें समृद्धि थी । अब १२१ करोडकी जनसंख्या है, तब भी खेतोंमें काम करनेवाला मुनष्यबल अल्प है । अन्य कोई भी उद्योग परिपूर्ण नहीं है । इन उद्योगोंकी तुलनामें कृषि एक शत-प्रतिशत परिपूर्ण उद्योग है; जबकि रसायन उद्योग, ‘आई.टी’ समान उद्योग शत–प्रतिशत परिपूर्ण हो ही नहीं सकते । मार्ग, अधिकोष, भवन किसलिए चाहिए ? गाय एवं साथमें कृषिभूमि होगी, तो आपको सबकुछ मिल जाएगा ।

 

३. गोमाताके बिना मनुष्य अस्तित्वहीन

        गोमाता भूमाताका शुद्धिकरण करती है । यह हमें ध्यानमें रखना चाहिए  कि ‘गोमाताके बिना मनुष्यका विश्वमें अस्तित्व ही नहीं है ।’ गोमाता सर्व प्राणिमात्रका प्रतिनिधित्व करती है । इस संकल्पनाके आधारपर हम कार्य कर रहे हैं ।

 

४. भारतीय वंशके गिर गायोंके माध्यमसे अपनी अर्थव्यवस्था

सुदृढ करनेवाला ब्राजील एवं बुद्धि गिरवी रखकर ऐसी गायें ब्राजीलको देनेवाले नेहरू !


भारतमें १८ करोड ४४ लाख गायें हैं । विश्वकी सर्वाधिक गायें भारतमें हैं । भारतकी देशी गायोंका महत्त्व समझनेके लिए ‘मदर इंडिया फादर ब्राजील’ नामक पुस्तक पढें । ब्राजीलमें हमें कहीं भी जर्सी गाय अथवा संकरित गाय नहीं मिलेंगी । वहां केवल भारतीय देशी गाय ही मिलेंगी । वहां उसे ‘झेबु गाय’ कहते हैं ।  एक भारतीय गिर गायका मूल्य अंतरराष्ट्रीय बाजारमें ३५ लाख रुपए है । भगवान श्रीकृष्णसे गिर गायका नाता बताया गया है । ब्राजीलमें एक गिर गाय प्रतिदिन ४८ लीटर दूध देती है । हमें खरी भारतीय देशी गिर गाय क्रय करनी (खरीदनी) हो, तो ब्राजील जाना पडेगा ।

        वर्ष १९६८ में जवाहरलाल नेहरूके आग्रहपर भारतीय नेताओंने गिर गाय एवं बछडे ब्राजीलको बेच दिए । ब्राजीलमें भारतीय देशी गिर गाय लाकर वहांकी अर्थव्यवस्था गत ४० वर्षोंमें सुदृढ करनेके लिए भारतीय वैज्ञानिक श्री. प्रताप सिंहको ब्राजीलके राष्ट्रपतिने सम्मानित किया है । अब हमें ब्राजीलके लोग आकर सिखाएंगे कि भारतीय देशी गायोंका पुनरुत्पादन तथा पालन कैसे करें ? अब भी संकरित गायोंकी उत्पत्तिके लिए हम गुजरातसे नहीं, अपितु ब्राजीलसे वीर्य खरीद रहे हैं । एक डोस (खुराक)का मूल्य लगभग ३५० रुपए है ।

 

५. गोरक्षाके लिए क्या करें ? 


५ अ. गोरक्षाकी पूर्ण व्यवस्था निर्माण करना आवश्यक !

        अनेक लोग ‘गोरक्षा’के संदर्भमें भावनाशील हैं । केवल गोशाला स्थापित करनेसे गोरक्षाकी समस्याका समाधान नहीं होगा । प्रत्यक्षमें ‘गो’पालन करते हुए चारा, पानी, मनुष्यबल ऐसी विविध समस्याओंका सामना करना पडता है । इस कारण हमें पूर्ण व्यवस्था ही निर्माण करनी होगी ।

५ आ. गोवंश वध रोकना

        शासकीय आंकडोंके अनुसार, वर्तमानमें देशमें प्रति माह २-३ लाख गोवंशका वध किया जा रहा है । केरलमें प्रति माह २५,००० गोवंशका वध हो रहा है । वहां हिंदू, मुसलमान, ईसाई सभी गोमांस भक्षण करते हैं । यह सब रोकना होगा ?

५ इ. किसान कहते हैं कि वृद्ध गाय पालना, आर्थिक दृष्टिसे असंभव है ।

ऐसे किसानोंका प्रबोधन कर उन्हें समझाना चाहिए कि वे उन वृद्ध गायोंको गोशालामें अर्पण करें ।

 

६. गोमाता मांसे भी अधिक पवित्र होनेके कारण

उसे प्रेम करना आवश्यक है, ऐसा आदि शंकराचार्यद्वारा बताया जाना

        आदि शंकराचार्यजी की प्रश्नोत्तर मालिकामें उन्होंने १८० प्रश्नोंके उत्तर दिए हैं । उनमेंसे दो सूत्र गोमातासंबंधी हैं । ‘मनुष्यको मांसे भी अधिक पवित्र किसे मानना चाहिए ?’, इस प्रश्नका उत्तर है ‘गोमाता’ । मनुष्यका ध्येय क्या होना चाहिए ? इसके उत्तरमें आदि शंकराचार्यजीने ये नहीं कहा कि ‘श्रीराम बनें ।’ उन्होंने कहा कि ‘जीवोंके प्रति करुणापूर्ण व्यवहार करें ।’ इसका अर्थ है कि ‘मनुष्य अपने आसपासके जीवों प्राणी, वनस्पति)से प्रेम करे ।’ वर्तमानकी शिक्षाप्रणालीमें ऐसा कुछ भी नहीं होता ।

 

७. गोरक्षाके कार्यके लिए सहायता करनेके लिए

उत्सुक अधिकारी एवं न्यायाधीशोंको प्रेरित कर गोवंश बचाना

        आप शासकीय अधिकारी, न्यायाधीशोंका अकारण ही विरोध न करें । अनेक बार वे गोरक्षाके कार्यमें हमारी सहायता करनेके लिए उत्सुक होते हैं । हम गायोंका परिवहन करनेवालोंको पकडते हैं । हमारे ३७ अभियोग न्यायालयमें चल रहे हैं । अभी कुछ समय पूर्व ही हमने गायसे भरा हुआ एक ट्रक पकडा था । उस अभियोगके लिए न्यायाधीशने हमें व्ययके लिए ५,००० रुपए दिए थे । कुछ पुलिस अधिकारी एवं न्यायाधीश अच्छे होते हैं । हमें उन्हें प्रेरित करना चाहिए । हमारा उनके साथ योग्य आचरण होना चाहिए । हम न्यायाधीशके पास जाते हैं । ‘प्राणी रक्षा’पर बने कानूनके विषयमें उन्हें बताते हैं । इसके साथ ही हम उन्हें बताते हैं कि हम ‘प्राणियोंके साथ क्रूर बर्ताव होनेसे रोकनेका कार्य करते हैं ।’ 

 

८. गोरक्षाकी न्यायालयीन लडाईमें एक युक्ति !

        कानूनमें विद्यमान अनेक बातें अपराधियोंके लिए उपयुक्त होती हैं, तो कुछ हमारी भी सहायता करती हैं । हम उनका उपयोग करते हैं । हम न्यायधीशोंसे अभियोगकी तारीखें आगे-आगे बढानेके लिए विनती करते हैं । गायोंके लालन-पालनका व्यय आरोपियोंको देना पडता है । अत: अंतमें गाय ले जाते समय उन्हें इतनी बडी रकम चुकानी पडती है कि वह गायको लिए बिना ही चला जाता है । इस प्रकार तमिलनाडुमें गत १० वर्षोंमें हम ४,७०० गायोंको बचानेमें सफल हुए हैं । 

 

९. किसानोंको गाय देकर उनके चारे-पानीकी

व्यवस्था करना एवं शासनद्वारा भी उसमें सहकार्य करना

        हमने ३० गोशालाएं स्थापित की हैं । गोशाला यह अस्थायी व्यवस्था है । हम ६० गांवके किसानोंको गाय देते हैं । ‘एक किसान एक गाय’ यह हमारी नीति है । मान लीजिए कि गोशालामें हमारे पास १०० गायें हैं, तो उनका पालन-पोषण करनेके लिए हमें प्रत्येकको १ सहस्र रुपये प्रतिमाह, अर्थात इस प्रकार १ लाख रुपये लगेंगे । यदि यह गाय हमने पूर्वमें बताए समान बांट दी एवं उसकी देखरेखके लिए ५ सहस्र रुपए देकर किसी व्यक्तिको नियुक्त कर दें, तो वह सुलभ होता है । हम शासकीय भूमिपर चारा लगाते हैं एवं ५० पैसे प्रति किलोकी दरसे किसानोंको देते हैं । इसका कारण यह है कि किसानके चारा क्रय न कर पानेसे उनके लिए गाय पालना कठिन हो जाता है । इस बार हमने सरकारसे १६ एकड भूमि चारा लगानेके लिए ली है । वर्तमानकी तमिलनाडु सरकारने ८०० करोड रुपयोंकी धनराशि चारा उत्पादनके लिए रखी है । इससे पूर्व सत्तामें रहते हुए जयललिताने भी गोरक्षाके लिए किसानोंद्वारा चारा उत्पादन करनेपर ‘सब्सीडी’ देनेकी योजना बनाई थी ।

 

१०. देशी गायोंका लालन-पालन करनेवाले किसान

आत्महत्या नहीं करते, यह शासकीय सर्वेक्षणके आंकडोंसे स्पष्ट होना

        ३० गोशालाओंमें १०० लोगोंको नौकरी दी जा सकती है । जिन्हें रोजगारकी समस्या है और जिनके पास कोई भी कुशलता नहीं है, उनके लिए यह सबसे अच्छा है । शासकीय अध्ययनके आंकडोंके अनुसार, गत १० वर्षोंमें २ लाख ५६ सहस्र किसानोंने आत्महत्या की । इसी अध्ययनका ऐसा भी निष्कर्ष है कि ‘जो किसान देशी गाय पाल रहे थे, उन्होंने आत्महत्या नहीं की’ । जिसके पास जर्सी एवं संकरित गायें थीं, उनके संबंधमें ऐसा नहीं है । इसका कारण यह है कि उनपर व्यय बहुत होता है । ऐसी गायोंका दूध भी स्वास्थ्यके लिए उपयुक्त नहीं है । फिलीपीन्सके एक वैज्ञानिकके शोधके अनुसार, इस दूधके कारण कर्करोग हो सकता है ।

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