सनातन धर्म पर जहरीले वक्तव्य देने का प्रकरण
चेन्नई : सनातन धर्म को लेकर I.N.D.I.A. गठबंधन के कुछ नेताओं द्वारा दिए जा रहे घृणित बयानों के बीच मद्रास उच्च न्यायालय ने अहम टिप्पणी जारी की है। उच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि सनातन धर्म शाश्वत कर्तव्यों का एक समूह है, जिसमें राष्ट्र, राजा, अपने माता-पिता और गुरुओं के प्रति कर्तव्य और गरीबों की देखभाल करना शामिल है। दरअसल, जस्टिस एन शेषशायी, एलंगोवन नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें एक स्थानीय सरकारी आर्ट्स कॉलेज द्वारा जारी एक परिपत्र को चुनौती दी गई थी, उस परिपत्र में छात्रों से ‘सनातन का विरोध’ विषय पर निबंध लिखने के लिए कहा गया था।
Sanatana Dharma is set of 'eternal duties'…free speech cannot be hate speech: Madras High Court judge
Read @ANI Story | https://t.co/w5lS2KURpF#SanatanaDharma #MadrasHighCourt #FreeSpeech pic.twitter.com/B7815NeDTp
— ANI Digital (@ani_digital) September 16, 2023
इस पर जस्टिस ने कहा कि, ऐसा लगता है कि एक विचार ने जोर पकड़ लिया है कि सनातन धर्म पूरी तरह से जातिवाद और अस्पृश्यता को बढ़ावा देने के बारे में है, एक ऐसी धारणा जिसे वे दृढ़ता से खारिज करते हैं। जस्टिस शेषशायी ने कहा कि, “समान नागरिकों वाले देश में अस्पृश्यता बर्दाश्त नहीं की जा सकती। भले ही इसे ‘सनातन धर्म’ के सिद्धांतों के भीतर कहीं न कहीं अनुमति के रूप में देखा जाता है, फिर भी इसमें रहने के लिए जगह नहीं हो सकती है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 17 में घोषित किया गया है कि अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया है।”
न्यायाधीश ने आगे इस बात पर जोर दिया कि हालांकि स्वतंत्र भाषण एक मौलिक अधिकार है, लेकिन इसे नफरत फैलाने वाले भाषण में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए, खासकर जब यह धर्म के मामलों से संबंधित हो। उन्होंने यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया कि इस तरह के भाषण से कोई आहत न हो। उन्होंने कहा कि, “हर धर्म आस्था पर आधारित है और आस्था स्वभावतः अतार्किकता को समायोजित करती है। इसलिए, जब धर्म से संबंधित मामलों में स्वतंत्र भाषण का प्रयोग किया जाता है, तो किसी के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि कोई भी आहत न हो। स्पष्ट शब्दों में, स्वतंत्र भाषण घृणास्पद भाषण नहीं हो सकता है।”
अदालत की यह टिप्पणी तमिलनाडु के मंत्री और DMK नेता उदयनिधि स्टालिन द्वारा सनातन धर्म के खिलाफ की गई हालिया टिप्पणियों के मद्देनजर आई है। बता दें कि, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि ने सनातन धर्म की तुलना “डेंगू और मलेरिया” जैसी बीमारियों से करते हुए इसके समूल नाश का आह्वान किया था। कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं ने उदयनिधि के इस बयान का समर्थन किया था, जबकि भाजपा ने इसका पुरजोर विरोध किया था।
उदयनिधि के बयान पर गौर करें, तो आप पाएंगे कि, उन्होंने जातिवाद ख़त्म करने की बात नहीं कही है, बल्कि सनातन धर्म को पूरी तरह से ख़त्म करने की बात कही है। क्योंकि, जातिवाद ख़त्म करने की बात बसपा सुप्रीमो मायावती, मुलायम यादव जैसे नेताओं से लेकर पीएम मोदी तक ने कही है, लेकिन उसे समाज सुधार के रूप में देखा जाता है और उन टिप्पणियों पर विवाद नहीं होता, क्योंकि वे धर्म के खिलाफ नहीं होती। एक प्रमुख सवाल यह भी उठता है कि, यदि किसी दूसरे धर्म को खत्म करने की बात कही गई होती, तो क्या यही होता, जो उदयनिधि वाले मामले में हो रहा है ? क्योंकि, जातिवाद तो हर धर्म में है, इस्लाम में भी 72 फिरके हैं, जिनमे से कई एक-दूसरे के विरोधी हैं, तो वहीं ईसाईयों में प्रोटेस्टेंट- केथलिक, पेंटिकोस्टल, यहोवा साक्षी में विरोध है। तो क्या समाज सुधारने के लिए उदयनिधि, इन धर्मों को पूरी तरह ख़त्म करने की बात कह सकते हैं ? या फिर दुनिया में एकमात्र धर्म जो वसुधैव कुटुंबकम (पूरा विश्व एक परिवार है), सर्वे भवन्तु सुखिनः (सभी सुखी रहें) जैसे सिद्धांतों पर चलता है, जो यह मानता है कि, ईश्वर एक है और सभी लोग उसे भिन्न-भिन्न रूप में पूजते हैं, उस सनातन को ही निशाना बनाएंगे ?
स्रोत : न्यूज ट्रैक लाइव