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गोरक्षाके लिए अपनाया गया अनुकरणीय मार्ग और उससे हुई धर्मजागृति !

वैशाख कृष्ण द्वादशी , कलियुग वर्ष ५११५

वक्ता : श्री. राजा सिंह ठाकुर, अध्यक्ष, श्रीराम युवा सेना, आंध्रप्रदेश.

सारणी



१. हिंदुओंके समक्ष गाय काटकर धर्मभावना

आहत करनेवाले कसाइयोंको सदाके लिए पाठ पढाना

        ‘गोरक्षाका हमारा कार्यक्रम दो वर्षोंसे चल रहा है । हमारे क्षेत्रमें मुख्य मार्गपर अथवा घरके सामने ही गोमाता काटी जाती थी । किसी हिंदूको मंदिरमें जाना हो, तो उसे वहां पडे रक्तको लांघकर जाना पडता था । यह देखकर, जो कसाई गायको खींचकर ले जाते दिखाई देते, उनके हाथोंसे हम लोग उस गायको छुडाकर उन कसाइयोंको पीटने लगे । ऐसा करते रहनेसे वर्ष २००९ तक ऐसा वातावरण बना कि गायको लेकर जानेसे पहले कसाई दस बार सोचने लगे ।

 

२. कसाईयोंको पाठ पढानेके कारण हिंदुओंमें

धर्मजागृति होकर प्रत्येक हिंदू गोरक्षाके लिए आगे आना

        भाग्यनगरके (हैदराबादके) बेगमपारा, धूळपेठ, मंगलहाट इन भागोंमें आज भी कोई गाय लेकर नहीं जाता; कहीं औरसे ले जाता है । इतनी जागृति हमने हिंदुओंमें कर दी है । किंतु, हमारे प्रयत्नोंकी भी सीमाएं हैं । हम कबतक प्रयास करेंगे । जबतक हम जीवित हैं, तबतक प्रयत्न करते रहेंगे; किंतु उसके आगे क्या ? इसीलिए, आप जैसे प्रत्येक हिंदूको इस कार्यके लिए आगे आना चाहिए । जबतक प्रत्येक हिंदू धर्मकी रक्षा करनेके लिए कटिबद्ध नहीं होगा, तबतक धर्मकी रक्षा नहीं होगी । 
        अब हमें गोरक्षा करनेकी आवश्यकता नहीं पडती; क्योंकि जब कोई गाय लेकर जाता दिखाई देता है, जनता ही उसे पकडकर पीटने लगती है एवं उसके विरुद्ध अभियोग प्रविष्ट कर पुलिसके अधीन करती है । आगे गायको गोशाला भेज देते हैं । 

 

३. सांप्रदायिक तनावका कारण बताकर गोहत्या हेतु प्रयत्नरत धर्मांधोंके

विरुद्ध कार्यवाही करनेमें टालमटोल करनेवाली पुलिसको अपराध प्रविष्ट करनेके लिए बाध्य करना

        हम प्रतिवर्ष बकरीदके दिन २०० से ३०० गायोंके प्राण बचाते हैं । ये लोग एक ट्रकमें २० नहीं ५० गायोंको एकके ऊपर एक रखकर उन्हें काटनेके लिए ले जाते हैं । हम उन्हें मार्गमें ही रोकते हैं । उस समय पुलिस उन लोगोंकी रक्षा करनेके लिए आती है । पुलिस कहती है कि गायोंका ट्रक छोड दो, अन्यथा सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न होगा । हम उनकी बातोंमें नहीं आते । हम ४०० से ५०० कार्यकर्ता एक साथ धरनेपर बैठ जाते हैं । तब कसाइयोंके विरुद्ध अपराध प्रविष्ट किया जाता है और गायोंको छुडाया जाता है ।

 

४. गोरक्षकोंपर आक्रमण करनेवाले कसाइयोंसे

बचनेके लिए सुरक्षा प्रदान करने हेतु पुलिसको बाध्य करना

        वर्ष २००७ से २०१० की अवधिमें हम लोगोंपर कसाइयोंके आक्रमण होना आरंभ हुआ । गायोंसे भरे वाहनोंके पीछे ४-५ ‘स्कॉर्पियो’में सशस्त्र गुंडे आने लगे । ऐसेमें हम लोग पुलिससे सुरक्षा मांगते थे; किंतु वे हमें सुरक्षा प्रदान करनेके लिए तैयार नहीं होते । उस समय हम उन्हें एक ही बात कहते, ‘‘यदि आपने हमें सुरक्षा नहीं दी, तो हम अपनी पद्धतिसे उत्तर देंगे । तब जो होगा, उसका दायित्व आपपर होगा ।’’ यह सुनकर, पुलिसने गायोंको ले जानेवालोंपर अपराध प्रविष्ट कर गायोंको मुक्त करना आरंभ किया ।

 

५. गोमाताके आशीर्वादसे १.००० कसाइयोंके आक्रमणसे ग्रामीणोंद्वारा रक्षा करना

        वर्ष २०११ में हमपर बहुत भीषण आक्रमण हुआ । लगभग १,००० कसाइयोंने हमें मार्गमें घेर लिया । उस समय हम २५-३० लोग थे । उन्होंने हमपर आक्रमण कर दिया । गोमाताके आशीर्वादसे हमें कुछ समझनेके पूर्व ही अचानक समीपवर्ती गांवोंसे लोग आ गए और उन्होंने हमारी रक्षा की । उस दिन हमें लगा था कि अब हम मारे जाएंगे । कसाई भी कह रहे थे, ‘‘आज तुम लोग नहीं बचोगे । तुम लोगोंने हमारी करोडोंकी हानि की है ।’’ तभी गांववाले लाठी-डंडा लेकर आ गए और उन्होंने कसाइयोंको पीटना आरंभ कर दिया । तब वे भाग खडे हुए ।’ 

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