ज्येष्ठ कृष्ण १२, कलियुग वर्ष ५११५
सारणी
- १. गंगा, गाय, भारतमाता और गीता, ये सब माता हैं !
- २. प्रश्न गंगाके शुद्धिकरणका नहीं, अपितु अस्तित्वका है !
- ३. गंगाका प्राकृतिक प्रवाह नष्ट करनेवाले उत्तराखंडके अवैध उत्खनन !
- ४. सुरंगोंद्वारा गंगाका प्राकृतिक प्रवाह मोडनेका भयानक कृत्य !
- ५. गंगा अपने उद्गमस्थलसे ५० कि.मी. अंतरपर विलुप्त हो जाएगी !
६. ‘गंगा मोक्षदायिनी है’, यह भारतीय दृष्टिकोण, जबकि ‘गंगा केवल जलस्रोत है’, यह विदेशी दृष्टिकोण ! - ७. भावी पीढीके गंगापुत्रोंको गंगाके दर्शन होंगे क्या ?
वक्ता : श्री. अश्वनीकुमार च्रोंगू, पनून कश्मीर, जम्मू
१. गंगा, गाय, भारतमाता और गीता, ये सब माता हैं !
‘गंगा, मातासमान नहीं; अपितु हमारी माता ही है । भारत, मातासमान नहीं, हमारी माता ही है । उसी प्रकार, गीता हमारी माता है ।
२. प्रश्न गंगाके शुद्धिकरणका नहीं, अपितु अस्तित्वका है !
गंगाका प्रवाह हिमालयके गंगोत्रीसे आरंभ होता है और बंगालके गंगासागर स्थित बंगालकी खाडीमें जा मिलता है । गंगोत्री और गंगासागरके बीचके क्षेत्रोंमें ४०० छोटी–बडी नदियोंके प्रवाह गंगाके प्रवाहसे मिलते हैं । हम गंगाके शुद्धिकरणके विषयमें बहुत सुनते हैं; किंतु गंगाका प्रदूषण एवं शुद्धिकरण तो दूरकी बात है; अब तो गंगाके अस्तित्वका ही प्रश्न उपस्थित हो गया है । यह समस्या इसी देशके लोगोंने उत्पन्न की है । आज जो गंगा दिखाई दे रही है, वह १० वर्ष पश्चात नहीं दिखाई देगी ।
३. गंगाका प्राकृतिक प्रवाह नष्ट करनेवाले उत्तराखंडके अवैध उत्खनन !
‘विश्वकी तीन पर्वतमालाओंमेंसे एक हिमालयको, ‘यूनेस्को’ने ‘सांस्कृतिक धरोहर’ घोषित किया है । इस पर्वतमालाका सर्वोच्च शिखर ‘एवरेस्ट’ भारत और चीन देशके अधिकार क्षेत्रमें नहीं, अपितु ‘यूनेस्को’के अधिकारक्षेत्रमें है । इसीलिए, हिमालयक्षेत्रमें उत्खनन करना हो, तो इसके लिए पहले ‘यूनेस्को’की अनुमति लेनी पडती है । किंतु, आजतक ऐसी अनुमति कभी नहीं ली गई । संपूर्ण उत्तराखंड क्षेत्र ही भूकंप-संवेदी क्षेत्र होनेके कारण, केंद्रीय शासनको भी यहां खननके लिए खान मंत्रालयसे अनुमति लेना आवश्यक है । शासनके खान, भूकंप, पर्यावरण आदि मंत्रालय किन सूत्रोंके आधारपर इस क्षेत्रमें खननके लिए अनुमति देते हैं, यह भी एक प्रश्न है । भूकंपके संदर्भमें एक तथ्य यह है कि नदीका बहता जल जब भूमिके गड्ढोंको भरता हुआ भूमिके गर्भमें पहुंचता है, तब इस जलके प्रभावसे भूकंप सौम्य होता है । किंतु भू-खननसे भूकंपकी तरंगें उत्तेजित होती हैं । दूसरी बात यह है कि गंगाके प्रवाहक्षेत्रमें खननसे उसके प्रवाहकी गति मंद हो जाती है ।
४. सुरंगोंद्वारा गंगाका प्राकृतिक प्रवाह मोडनेका भयानक कृत्य !
गंगाके प्राकृतिक रूपको परिवर्तित करनेका दूसरा कृत्य है, गंगाके उद्गम स्थानपर ५० कि.मी. लंबा सुरंग (टनेल) बांधना । उसकेद्वारा गंगाका प्रवाह ले जाया जाएगा । गंगाका प्रवाह इस सुरंगसे बहुत दूरतक प्रवाहित किया गया, तो गंगाके मूल प्रवाहक्षेत्रमें उगनेवाली औषधीय वनस्पतियां, आरोग्यदायी जीवजंतु एवं जीवाणुओंसे संपर्क नहीं होगा । परिणामतः आगे बढनेवाला गंगाजल आरोग्यदायी गुणोंसे वंचित हो जाएगा । गंगाजल सुरंगसे प्रवाहित करनेपर उस क्षेत्रकी वनसंपदा, जनजीवन, तीर्थक्षेत्र इत्यादिका क्या होगा, यह भी एक प्रश्न ही है ।
५. गंगा अपने उद्गमस्थलसे ५० कि.मी. अंतरपर विलुप्त हो जाएगी !
गंगा नदीपर ३०० परियोजनाएं बनाई गई हैं । वनविभागने इन्हें कैसे अनुमति दी ? यह प्रश्न अनुत्तरित है । इन शासकीय आक्रमणोंको सहते हुए गंगा नदी अभी प्रवाहित है; किंतु यही स्थिति रही, तो आगामी ५० वर्षोंमें गांगेय क्षेत्र मरुस्थल बन जाएगा ! कुछ लोग कहते हैं, ‘गंगाकी चिंता क्यों की जाती है ?’ गंगा विदेश नहीं भेजी जा रही है ।
६. ‘गंगा मोक्षदायिनी है’, यह भारतीय दृष्टिकोण,
जबकि ‘गंगा केवल जलस्रोत है’, यह विदेशी दृष्टिकोण !
गंगाका हमारे जीवनमें क्या स्थान है ? हम इसे केवल ‘जलस्रोत’के रूपमें नहीं देखते ? विदेशी ही इसे जलस्रोतके रूपमें देखते हैं । गंगा हमारे लिए बहुत कुछ है । गंगा हमारे लिए मोक्षदायिनी है । मोक्षप्राप्ति हिंदुओंके जीवनका अंतिम ध्येय है, स्वर्ग प्राप्त करना नहीं । जो स्वर्गप्राप्तिकी इच्छासे कार्य करते हैं, वे हिंदू कहलानेके अधिकारी नहीं हैं; क्योंकि कहा गया है,
तपतपस्याके सहारे स्वर्ग पाना तो सरल है ।
स्वर्गका ऐश्वर्य पाकर मद भुलाना ही कठिन है ।।
अर्थात ‘तपस्या कर स्वर्ग प्राप्त किया जा सकता है; परंतु स्वर्गसुख प्राप्त करनेपर बढनेवाला अहं भुलाना कठिन है ।’ अतः मोक्षप्राप्तिके लिए भगवानने हमें एक सरल मार्ग दिखाया है और वह है, ‘गंगा’ ! हम गंगाकी ओर मोक्षदायिनी माताकी दृष्टिसे देखते हैं अथवा जलस्रोतकी दृष्टिसे ? हमारा दुर्भाग्य यह है कि यहांसे अंग्रेजोंके चले जानेके ६५ वर्षोंके उपरांत भी गंगाकी ओर जलस्रोतकी दृष्टिसे देखा जाता है । भारत शासन गंगापर बनी सर्व परियोजनाओंको निरस्त करेगा क्या ?
७. भावी पीढीके गंगापुत्रोंको गंगाके दर्शन होंगे क्या ?
एक पीढी २५ वर्षकी मानें, तो दो पीढियोंके पश्चात गंगाकी अवस्था क्या होगी ? गंगा कहां होगी ? हम सब गंगापुत्र हैं । गंगा हमारे लिए नदी नहीं, माता है । गंगाको पर्यावरणकी दृष्टिसे नहीं, अपितु एक हिंदूकी दृष्टिसे देखना चाहिए । प्रदूषण आदि तो दूरकी बातें हैं, अब तो प्रश्न है कि हमारी आगामी पीढियोंको गंगाके दर्शन होंगे अथवा नहीं ।’