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कोलकाता में श्री दुर्गापूजा में ‘कुमारिका’ के रूप में मुसलमान लडकी को चुना

मुसलमान अथवा ईसाइयों ने अपने धार्मिक कृत्यों में हिन्दुओं को कभी सम्मिलित किया, ऐसा कभी सुना है ?

धर्मशिक्षा का अभाव तथा धर्मनिरपेक्षता का चोला पहननेवाले हिन्दुओं के कारण इस प्रकार का निर्णय लिया जाता है! – संपादक, हिन्दुजागृति

देशभर में त्योहारों का मौसम नवरात्रि की शुरुआत के साथ ही शुरु हो गया है। कई जगह इसे नवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है तो वहीं कोलकाता में इसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। इतना ही नहीं दुर्गा पूजा कोलकाता के सबसे बडे त्योहार में से एक है। इस दौरान जगह-जगह माता रानी के पंडाल सजाए जाते हैं और धूमधाम से 9 दिनों तक माता के सभी स्वरूपों का जश्न मनाया जाता है। इतना ही नहीं कोलकाता में दुर्गा पूजा के साथ-साथ कुमारी पूजा भी की जाती है, जो दुर्गा पूजा के अंतिम दिन होती है। इस पूजा के लिए एक बच्ची का भी चुनाव किया जाता है।

किंतु इस साल कुमारी पूजन के लिए कोलकाता की एक दूर्गा पूजा समिति ने 8 साल की मुस्लिम लड़की का चुनाव किया है। उन्होंने ऐसा बरसों से चली आ रही परंपरा को तोड़ने और सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश देने के लिए किया है। कोलकाता के न्यू टाउन में रहने वाली नफीसा का चुनाव कुमारी के तौर पर किया है। उनका चुनाव मृत्तिका क्लब की ऑल वुमन कमीटी ने किया है।

पारंपरिक रूप से हर साल कुमारी के लिए केवल ब्राह्मिण लड़की का ही चुनाव किया जाता है। हालांकि, मृत्तिका क्लब जो इस साल अपनी पहली पूजा का आयोजन कर रहे हैं उन्होंने सांप्रदायिकता का संदेश देने के लिए मुस्किल लड़की का कुमारी के रूप में चुनाव किया है। टीओआई के अनुसार, मृत्तिका क्लब के कई सदस्य स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित रामकृष्ण मठ और मिशन मुख्यालय, बेलूर मठ की शिक्षाओं से प्रभावित हैं।

आयोजकों ने कहा कि एक शतक पूर्व स्वामी विवेकानंद द्वारा की गई कृति से प्रेरणा लेकर यह निर्णय लिया गया है । वर्ष १८९८ में एक यात्रा के समय स्वामी विवेकानंद ने मुसलमान नाविक की ४ वर्ष की लड़की की ‘कुमारिका पूजा’ की थी तथा इस विधि के एक भाग के रूप में उसके पैर छूने पर श्री दुर्गादेवी का आशीर्वाद मिला था । (गर्व से कहो हम हिन्दू हैं’, यह घोषणा भी स्वामी विवेकानंद ने दी थी । इस संदर्भ में आयोजकों को कुछ कहना है क्या ? – संपादक)

बता दें कि, कुमारी पूजा, दुर्गा पूजा का एक बहुत ही अहम हिस्सा है, जहां एक अविवाहित लड़की की पूजा, भगवान के रूप में की जाती है। कुमारी पूजा का आयोजन महाष्टमी के दिन पूजा के बाद में होता है। हिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक, कुमारी पूजा, देवी काली द्वारा कोलासुर के वध की याद दिलाता है। कहा जाता है कि कोलासुर ने एक बार स्वर्ग और धरती पर कब्जा कर लिया था। ऐसे में असहाय देवता माता काली के पास मदद मांगने के लिए गए थे और तब उन्होंने एक युवती के रूप में फिर से जन्म लेकर कोलासुर का वध किया था।

स्रोत : हिंदी पॉप्क्सो

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