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‘अन्य धर्मिय लडके के साथ लिव-इन रिलेशनशिप केवल टाइम पास’ : इलाहाबाद उच्च न्यायालय

इलाहबाद उच्च न्यायालय ने अपनी एक टिप्पणी में लिव इन रिलेशनशिप जैसे रिश्तों को अस्थाई और नाजुक बताते हुए टाइम पास जैसा कहा है। न्यायाधीशों ने एक मुस्लिम युवक के साथ लिव इन रिलेशन में रहने की दलील दे कर पुलिस सुरक्षा चाह रही हिन्दू लड़की की मांग को अस्वीकार कर दिए। 25 सितंबर, 2023 को दिए गए इस फैसले में उच्च न्यायालय ने प्रेमी जोड़े को जीवन को कठिनाइयों से भरा बताते हुए इसे फूलों का बिस्तर न समझने की भी नसीहत दी।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह पूरा मामला मथुरा जिले के रिफायनरी थाना क्षेत्र का है। 17 अगस्त, 2023 को यहाँ एक हिन्दू महिला ने पुलिस ने अपनी भतीजी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करवाई। पुलिस ने यह केस IPC की धारा 366 के तहत दर्ज करते हुए सोहिल नाम के युवक को नामजद किया। पीड़िता ने अपनी भतीजी के साथ किसी अनहोनी की भी आशंका जताई थी। यह FIR दर्ज कर के पुलिस ने सोहिल की तलाश शुरू कर दी थी। इस बीच आरोपित सोहिल ने रिश्तेदार एहसान फ़िरोज़ के माध्यम से उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की।

इसी याचिका में वह लडकी भी शामिल है जिसके अपहरण की जांच मथुरा पुलिस कर रही थी। लड़की ने कोर्ट को बताया कि वह 20 साल की बालिग है और अपना भला-बुरा सोचने में सक्षम है। साथ ही वो सोहिल के साथ अपनी मर्जी से गई है। लड़की ने सोहिल के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने की इच्छा जताते हुए अपने ही परिवार से खुद को खतरा बताया था और पुलिस सुरक्षा की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं की तरफ से यह भी मांग की गई थी कि उच्च न्यायालय पुलिस को निर्देश दे कि सोहिल पर दर्ज FIR निरस्त की जाए। साथ ही इन सभी प्रक्रियाओं के दौरान सोहिल को गिरफ्तार न किया जाए।

हालाँकि, लड़की के परिजनों ने इस मांग का विरोध किया। लडकी के परिवार की तरफ से एडवोकेट श्रवण कुमार ने बहस की। उन्होंने आरोपित सोहिल को FIR में किसी भी राहत देने की मांग का विरोध किया। एडवोकेट श्रवण ने अदालत को बताया कि आरोपित सोहिल का पुराना आपराधिक रिकॉर्ड रहा है। उस पर साल 2017 में मथुरा के छाता थाने में गैंगस्टर एक्ट के तहत केस भी दर्ज हुआ था। पीड़ित परिजनों ने अदालत से बताया कि सोहिल के साथ लड़की का भविष्य सुरक्षित नहीं है।

इस केस की सुनवाई न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी की बेंच ने की। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने अंतर्धार्मिक जोड़े को लिव इन रिलेशनशिप के दौरान पुलिस सुरक्षा देने की मांग को अस्वीकार कर दिया। अपनी टिप्पणी ने उच्च न्यायालय ने कहा कि जीवन कठिनता से भरा है जिसे फूलों का बिस्तर समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। अदालत ने यह भी माना कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर लिव इन रिलेशनशिप को सही माना है पर ऐसे रिश्तों में अक्सर ईमानदारी से अधिक एक दूसरे का मोह होता है।

इसी टिप्पणी में न्यायाधीशों ने कहा कि 22 साल की उम्र में महज 2 माह के अंदर किसी रिश्ते की परिपक्वता नहीं आँकी जा सकती है। ऐसे रिश्तों को नाजुक और अस्थाई बताते हुए कोर्ट ने यह भी कहा कि उनकी टिप्पणी का कोई गलत अर्थ न लगाया जाए। अंतिम फैसले में उच्च न्यायालय ने जाँच जारी होने की स्थिति में प्रेमी जोड़े को पुलिस सुरक्षा देने के निर्देश से इनकार कर दिया।

स्रोत : ऑप इंडिया

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