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कतर में जिन भारतीयों को सुनाई गई थी मौत की सजा उन्हें किया रिहा

कतर में मौत की सजा पाने वाले भारतीय नौसेना के 8 पूर्व जवानों को दोहा की एक अदालत रिहा कर चुकी है, जिनमें से 7 लोग भारत लौट चुके हैं। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत कहा गया और इसके हीरो पीएम नरेंद्र मोदी माने गए। हालांकि, पीएम मोदी के अलावा इस जीत में एक और हीरो भी रहे, जिन्होंने पर्दे के पीछे रहकर 8 पूर्व नौसैनिकों की रिहाई में बड़ी भूमिका निभाई। उनका नाम है अजीत डोभाल जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) हैं।

ऐसा बताया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक तरफ जहां 1 दिसंबर 2023 को कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी के साथ मुलाकात कर इस मुद्दे पर बात की थी तो वहीं दूसरी तरफ एनएसए डोभाल ने पर्दे के पीछे की कूटनीति से यह सुनिश्चित किया कि भारतीय नौसेना के इन 8 पूर्व कर्मियों को रिहा किया जाए।


26 अक्टूबर

कतर ने 8 पूर्व भारतीय नौसैनिकों को कथित जासूसी के आरोप में सुनाई फांसी की सजा

कतर की एक अदालत ने भारत के 8 पूर्व नौसैनिकों को मौत की सजा सुनाई है। ये एक साल से कतर की अलग-अलग जेलों में कैद हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार ने इस पर हैरानी जाहिर की है। उन्हें छुड़ाने के लिए कानूनी रास्ते खोजे जा रहे हैं। विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है कि हम जजमेंट की डिटेलिंग का इंतजार कर रहे हैं।

कतर सरकार ने 8 भारतीयों पर लगे आरोपों को सार्वजनिक नहीं किया है। कतर में जिन 8 पूर्व नौसेना अफसरों को मौत की सजा दी गई है उनके नाम हैं- कैप्टन नवतेज सिंह गिल, कैप्टन सौरभ वशिष्ठ, कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा, कमांडर पूर्णेन्दु तिवारी, कमांडर सुग्नाकर पकाला, कमांडर संजीव गुप्ता, कमांडर अमित नागपाल और सेलर रागेश।

जासूसी के दोषी पाए जाने की आशंका

कतर सरकार ने 8 भारतीयों पर लगे आरोपों को अब तक सार्वजनिक नहीं किया है। हालांकि सॉलिटरी कन्फाइनमेंट में भेजे जाने से यह चर्चा है कि उन्हें सुरक्षा संबंधी अपराध के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है।

स्‍थानीय मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी इजराइल के लिए उनके देश की जासूसी कर रहे थे। हालांकि इसमें भी कोई तथ्य पेश नहीं किया गया है।

यह पूछे जाने पर कि उन पर क्या आरोप लगाए गए हैं, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इस साल जनवरी में अपनी वीकली ब्रीफिंग में कहा था कि यह सवाल कतर के अधिकारियों से पूछा जाना चाहिए।

स्रोत : भास्कर

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