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सनातन धर्म के हो रहे अनादर का निषेध करना भक्ति ही है – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी

ग्वालियर (मध्यप्रदेश) में आबा महाराज श्रीराम मंदिर के ‘रामधुन’ कार्यक्रम में हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी का मार्गदर्शन

बाएं से श्री. उपेंद्र शिरगावकर, सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे एवं श्री. राघवेंद्र शिरगावकर

ग्वालियर (मध्यप्रदेश) – हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने यहां के आबा महाराज श्रीराम मंदिर में आयोजित पाक्षिक ‘रामधुन’ कार्यक्रम में उपस्थितों को संबोधित किया । उन्होंने कहा, ‘‘इस मंदिर में पाक्षिक ‘रामधुन’ कार्यक्रम होता है; परंतु हमें अपने अंत:करण में अखंड धूनी प्रज्वलित रखनी आवश्यक है । प्रभु श्रीराम का जीवनचरित्र केवल पढने के लिए अथवा वर्ष में एक बार स्मरण करने के लिए नहीं, अपितु उनके गुण आत्मसात कर नित्य आचरण करना चाहिए । इसके साथ ही हमें श्रीराम को अपेक्षित बनने का प्रयत्न करना चाहिए । इसी को साधना कहते हैं । वर्तमान में हिन्दू देवी-देवता और सनातन धर्म का धडल्ले से अपमान किया जाता है । उसका वैधानिक मार्ग से निषेध करना, भक्ति ही है । आज रामराज्य की स्थापना करने के लिए प्रत्येक को धर्म के लिए १ घंटा देने की आवश्यकता है !’’ इस कार्यक्रम का लाभ २०० से भी अधिक श्रद्धालुओं ने लिया । इस मंदिर में गत १८ वर्षाें से पाक्षिक ‘रामधुन’ कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है । इस व्याख्यान के आयोजन के लिए श्री. हेमंत खेडकर ने पहल की ।

आबा महाराज श्रीराम मंदिर का महत्त्व

यहां के दाल बाजार में आबा महाराज श्रीराम मंदिर है । समर्थ रामदासस्वामी के शिष्य कल्याणस्वामी के बंधु दत्तात्रय स्वामी का वंशपरंपरा का एकमेव मंदिर है । इसका मूल मठ महाराष्ट्र के सातारा के शिरगाव में है । वर्ष १८३८ में ग्वालियर के तत्कालीन महाराज जनकोजी राव ने आबा महाराज को ग्वालियर में आने की प्रार्थना की थी । उन्होंने वर्ष १८३५ में दाल बाजार में श्रीराममंदिर का निर्माण किया । दत्ताश्रय स्वामी ने ४०० वर्षाें पूर्व लिखे दासबोध की दुर्लभ पांडुलिपी आज भी मंदिर में उपलब्ध है । दत्तात्रय स्वामी के वंश परंपरा के श्री. उपेंद्र शिरगावकर और श्री. राघवेंद्र शिरगावकर ने मंदिर की परंपरा शुरू रखी है ।

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