आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने आदेश यथावत रखा !
हिन्दुओं के मंदिरों में हिन्दू ही काम करने वाले होने चाहिए, इसका कोई विरोध नहीं करेगा ! – सम्पादक, हिन्दुजागृति
अमरावती (आंध्र प्रदेश) – आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने हिन्दू धर्म छोडकर ईसाई बने ‘श्री ब्रह्मारंभ मल्लिकार्जुन स्वामी वरला देवस्थानम’ के एक कर्मचारी को नौकरी से निकाले जाने का आदेश यथावत रखा है । न्यायालय ने कहा कि ईसाई धर्म स्वीकारने के कारण यह कर्मचारी अब हिन्दू न रहने से धार्मिक संस्थान अधिनियम के अनुसार काम पर नहीं रह सकता । इस अधिनियम के अनुसार इस मंदिर में केवल हिन्दू व्यक्ति ही काम कर सकते हैं ।
१. वर्ष २००२ में इस कर्मचारी पर अनुकम्पा कर मंदिर में काम पर रखा गया था । उसने वर्ष २०१० में ईसाई युवती से एक चर्च में विवाह किया था । इसके उपरांत इसके विरोध में शिकायत की गई थी । ‘उसने नौकरी पाने के लिए स्वयं का ईसाई धर्म छुपाया’, ऐसा शिकायत में कहा गया था । इसके उपरांत उसे नौकरी से निकाला गया । उसने स्पष्टीकरण देते हुए कहा था, ‘मैने धर्म नहीं छुपाया था । मैने इस संबंध में सरकारी कागजात प्रस्तुत किए थे और मैंने अनुसूचित जाति का होने की जानकारी दी थी । ‘ईसाई युवती से विवाह करने पर मैंने धर्म परिवर्तन किया’, ऐसा न समझा जाए । मैं अभी भी हिन्दू धर्म को ही मानता हूं ।’ उच्च न्यायालय ने उसके स्पष्टीकरण को नकारते हुए उसे नौकरी से निकलने के मंदिर समिति के आदेश को यथावत रखा ।
२. न्यायालय ने निर्णय के समय कहा कि, यदि याचिकाकर्ता ने ईसाई धर्म न स्वीकारते हुए ईसाई युवती से विवाह किया होगा, तो ‘विशेष विवाह अधिनियम १९५४’ के प्रावधान के अनुसार यह विवाह करना चाहिए था । विवाह प्रमाण पत्र ‘विशेष विवाह अधिनियम’ की धारा १३ के अनुसार दिया जाना चाहिए था; लेकिन याचिकाकर्ता ने अभी तक धारा १३ के अंतर्गत कोई भी प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया । इससे ध्यान में आता है कि, याचिकाकर्ता ने इस नियम से स्वयं को अलग रखने के लिए यह याचिका प्रविष्ट की । नांदयाल के जिस चर्च में विवाह किया गया, वहां के पंजीकरण में याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी का धर्म ‘ईसाई’ ही लिखा है और उस पर वहां के रजिस्ट्रार के हस्ताक्षर भी हैं ।
स्रोत : हिन्दी सनातन प्रभात