शरीर में प्राण होने तक मठ-मंदिर एवं सनातन धर्म रक्षा करने का प्रण लें ! – महंत सुधीरदासजी महाराज, श्री कालाराम मंदिर, नाशिक
ओझर (जिला पुणे) – श्री विघ्नहर गणपति मंदिर देवस्थान, लेण्याद्री गणपति मंदिर देवस्थान, श्री क्षेत्र भीमाशंकर देवस्थान, हिन्दू जनजागृति समिति एवं महाराष्ट्र मंदिर महासंघ के संयुक्त विद्यमान से 2 एवं 3 डिसंबर को श्री विघ्नहर सभागृह, ओझर, जिला पुणे में द्वितीय ‘महाराष्ट्र मंदिर न्यास परिषद’ हो रही है । इस अवसर पर नासिक के श्री कालाराम मंदिर के पुजारी महंत श्री सुधीरदासजी महाराज ने महाराष्ट्र मंदिर-न्यास परिषद में आवाहन करते हुए कहा कि मंदिर में देवत्व टिकने के लिए पुजारियों का दायित्व महत्त्वपूर्ण है । इसलिए मंदिर में विधियां धर्मशास्त्रानुसार होनी चाहिए । इस बात का पुजारियों को विशेष ध्यान रखना चाहिए । वर्ष 1760 में अब्दाली नामक इस्लामी आक्रमक ने भारत पर आक्रमण किया, तब मथुरा के मंदिर की रक्षा के लिए नागा साधुओं ने अपने प्राण हथेली पर रखकर उनका सामना किया । इस लढाई में 10 हजार नागा साधु मारे गए । अत: प्राचीन काल से ही धर्म के लिए संघर्ष, यही अपना इतिहास है । तत्पश्चात के काल में हिन्दू धर्म और मंदिरों की रक्षा के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी औरंगजेब से जोरदार जंग की । इसलिए धर्म की रक्षा के लिए ही हमारा जन्म हुआ है, यह हमें ध्यान में रखना चाहिए । इसलिए शरीर में प्राण होने तक मठ-मंदिर एवं सनातन धर्म की रक्षा करने का प्रण लें । इस अवसर पर 550 से भी अधिक मंदिर प्रतिनिधि उपस्थित थे ।
ओझर के श्री विघ्नहर गणपति मंदिर देवस्थान के विद्यमान विश्वस्त श्री. बबनराव मांडे ने प्रारंभ में उपस्थितों का स्वागत किया । तदुपरांत महासंघ के राज्य समन्वयक श्री. सुनील घनवट ने महाराष्ट्र मंदिर महासंघ का कार्यात्मक ब्योरा प्रस्तुत किया । श्री. घनवट ने कहा, ‘‘मंदिर विश्वस्तों का अधिवेशन वर्तमान स्थिति में राज्यव्यापी हो गया है । इस धर्मकार्य में यदि विश्वस्तों का सहयोग इसीप्रकार मिलता रहा, तो अगली मंदिर-न्यास परिषद राष्ट्रीय स्तर पर लेनी होगी । कुछ दिनों पूर्व अहिल्यानगर में गुहा के कानिफनाथ देवस्थान में घुसकर धर्मांधों ने भक्तगणों को मारा-पीटा था । इससे पहले मंदिरों का कोई संरक्षक नहीं था; परंतु अब मंदिर विश्वस्त संगठित हो गए हैं । अत: अब इस संगठन के माध्यम से मंदिरों की समस्या सुलझाई जाएंगी ।’’
देवताओं का सम्मान न होने पर विज्ञान को भी पराजय स्वीकारना होता है ! – श्री. रमेश शिंदे
इस प्रसंग में हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे बोले, ‘‘देवताओं सम्मान न होने पर विज्ञान को भी पराजय स्वीकारना होता है । इसका ताजा उदाहरण है उत्तराखंड में सुरंग में फंसे 41 मजदूरों का सुरक्षितरूप से बाहर आना ! जब सुरंग निर्माण का काम चल रहा था, तब वहां के बाबा बौखनाथ नाग का मंदिर धराशायी कर दिया गया; परंतु 3 वर्ष बीतने के पश्चात भी उनकी पुनर्स्थापना नहीं हुई । ऑस्ट्रेलिया से आए सुरंग विशेषज्ञ डिक्स ने भी बाबा बौखनाथ नाग की शरण जाकर, उनसे प्रार्थना की, तब उन्हें काम प्रारंभ करने में सफलता मिली । अत: वैज्ञानिकों को भी भगवान की शरण जाना पडा । भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 धर्मस्वतंत्रता और अनुच्छेद 26 धार्मिक व्यवहारों की व्यवस्था देखने की स्वतंत्रता देता है । सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा मंदिरों के सरकारीकरण के विरोध में निर्णय देने के पश्चात भी राज्य सरकार हिन्दू मंदिरों का नियंत्रण अपने पास रखती हैं, इसलिए हमें सरकारीकरण के विरोध में चल रहे संघर्ष की गति बढानी होगी । मंदिर विश्वस्तों को प्रभु श्रीराम के अनुज भरत समान सेवा का दृष्टिकोण रखकर कार्य करना होगा ।
विकास करते समय मंदिर की मूल रचना बचाना आवश्यक ! – विलास वहाणे, उपसंचालक, पुरातत्व
महाराष्ट्र राज्य के पुरातत्त्व विभाग के उपसंचालक श्री. विलास वहाणे ने कहा, ‘‘मंदिरों का विकास करते समय मंदिर की मूल रचना का जतन करना आवश्यक होता है । इसके साथ ही मंदिरों की मरम्मत करते समय और जीर्णाेद्धार करते समय मंदिरों के निर्माणकार्य की शैली का अध्ययन करना भी आवश्यक है । मंदिरों में ‘टाइल्स’ बिठाने के कारण मूल पत्थरों तक हवा के न पहुंचने से कुछ वर्षाें के उपरांत मंदिर कमजोर होने लगते हैं । वर्तमान में मूर्ति पर वज्रलेप करने के नाम पर रासायनिक घटकों का उपयोग किया जा रहा है । वह अत्यंत गलत है । वास्तव में मंदिरों का संवर्धन करते समय मूल मंदिर और देवता की मूर्ति को कोई भी क्षति नहीं पहुंचनी चाहिए । तब ही मंदिर में भगवान का वास टिका रहता है ।’’
दोपहर के सत्र में मंदिर सुव्यवस्थापन एवं पुजारियों की समस्या और उपाययोजना पर परिसंवाद हुआ । इसके पश्चात के सत्र में ‘जी’ 24 के संपादक श्री. नीलेश खरे का ‘मंदिर और मीडिया मैनेजमेंट’ तथा भूतपूर्व धर्मादाय आयुक्त श्री. दिलीप देशमुख का ‘धर्मादाय आयुक्त कार्यालय एवं मंदिरों का समन्वय’, इस संदर्भ में मार्गदर्शन हुआ ।
प्रारंभ में ओझर के श्री विघ्नहर गणपति देवस्थान के विश्वस्त श्री. बबनराव मांडे, श्री लेण्याद्री गणपति देवस्थान ट्रस्ट के श्री. शंकर ताम्हाणे, श्री ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर देवस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष श्री. मधुकर अण्णा गवांदे, तुलजापुर के सिद्ध गरीबनाथ मठ के योगी पू. मावजीनाथ महाराज, नासिक के श्री कालाराम मंदिर के श्री महंत सुधीरदासजी महाराज, सनातन संस्था के धर्मप्रचारक सद्गुरु नंदकुमार जाधव, अमरावती के श्री महाकाली शक्तिपीठ के पीठाधीश्वर श्री शक्तिजी महाराज और हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे, इन मान्यवरों के हस्तों दीपप्रज्वलन किया गया । तदुपरांत सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले एवं रत्नागिरी के जगद्गुरु नरेंद्रचार्यजी महाराजजी के संदेश का वाचन किया गया । इस प्रसंग में मान्यवरों के हस्तों ‘एंड्रॉइड’, इसके साथ ही ‘आय.ओ.एस्’ प्रणाली पर आधारित ‘सनातन पंचांग 2024’का लोकार्पण किया गया, इसके साथ ही लेखक श्री. दुर्गेश परूळकर द्वारा लिखी गए ‘योगेश्वर श्रीकृष्ण’ नामक ग्रंथ का प्रकाशन किया गया ।
उपस्थित मान्यवर – श्री विघ्नहर ओझर गणपति मंदिर के अध्यक्ष श्री. गणेश कवडे, देहू के जगद्गुरु संत तुकाराम महाराज के वंशज ह.भ.प. माणिक महाराज मोरे एवं ह.भ.प. पुरुषोत्तम महाराज मोरे, भाजप के मंचर (पुणे) के किसान मोर्चा जिल्हाध्यक्ष श्री. संतोष थोरात, श्री लेण्याद्री गणपती देवस्थान के अध्यक्ष श्री. जितेंद्र बिडवई, श्री भीमाशंकर मंदिर के अध्यक्ष अधिवक्ता सुरेश कौदरे, श्री मंगलग्रह देवस्थान के श्री. डिगंबर महाले के साथ ही राज्यभर से आए विविध मंदिरों के विश्वस्त, सनातन संस्था की धर्मप्रचारक सद्गुरु स्वाती खाडये एवं पू. (श्रीमती) मनीषा पाठक की वंदनीय उपस्थिति थी ।