अयोध्या के श्रीराम मंदिर के लिए सभी मंदिरों में दीपोत्सव के आयोजन सहित 7 प्रस्ताव एकमत से संमत
श्री क्षेत्र ओझर (जिला पुणे) – श्री क्षेत्र ओझर में 2 एवं 3 दिसंबर को आयोजित की गई द्वितीय ‘महाराष्ट्र मंदिर न्यास परिषद’के समापन पर ‘राज्यस्तरीय मंदिर महासंघ’की घोषणा की गई । इसमें प्रमुखरूप से राज्य के 264 मंदिरों में वस्त्रसंहिता लागू करना एवं 16 जिलों में ‘जिलास्तरीय मंदिर विश्वस्त अधिवेशन’ लेने का निर्णय लिया गया । इस अवसर पर सरकारीकरण किए हुए सभी मंदिरों को सरकारमुक्त कर, महाराष्ट्र सरकार उन्हें भक्तों के स्वाधीन करे, मंदिरों की संपत्तिे विकासकार्य के लिए उपयोग में न लाई जाए, महाराष्ट्र के पौराणिक एवं ऐतिहासिक मंदिरों की आर्थिक सहायता कर उनका जीर्णाेद्धार किया जाए, लेण्याद्री श्री गणेश मंदिर में आनेवाले दर्शनार्थियों से केंद्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा ली जानेवाली निधि न ली जाए, तीर्थक्षेत्र, गढ-किलों पर हुआ अतिक्रमण सरकार यथाशीघ्र हटाए, तीर्थक्षेत्र एवं अन्य मंदिरों के परिसर में मांस और मद्य की विक्री पर सरकार प्रतिबंध लगाए एवं अयोध्या के श्रीराम मंदिर में दीपोत्सव के उपलक्ष्य में राज्य के सभी मंदिरों में दीपोत्सव मनाकर श्रीरामजप का आयोजन किया जाए, ऐसे महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव सम्मत किए गए ।
इस परिषद के लिए श्री अष्टविनायक मंदिरों के विश्वस्त, महाराष्ट्र के जोतिर्लिंग देवस्थानों के विश्वस्त, संत पीठों के प्रतिनिधियों के साथ ही देहू के संत तुकाराम महाराज मंदिर, पैठण का नाथ मंदिर, गोंदवले का श्रीराम मंदिर, रत्नागिरी का गणपतिपुळे मंदिर, श्री एकवीरा देवी मंदिर, अंमलनेर का मंगलग्रह मंदिर, विश्व हिन्दू परिषद के मठ-मंदिर के प्रांतआयाम के सहकार्यवाह श्री. जयप्रकाश खोत एवं श्री. महेश कुलकर्णी के साथ ही राज्यभर से 650 से भी अधिक मंदिर विश्वस्त प्रतिनिधि, उपस्थित थे । आनेवाले समय में देश के लिए आदर्श, ऐसा मंदिरों का संगठन महाराष्ट्र में बनाने का निश्चय सभी ने किया ।
इस प्रसंग में महाराष्ट्र मंदिर महासंघ की राज्य कार्यकारिणी की रचना घोषित की गई । इसमें प्रमुखरूप से महासंघ के मार्गदर्शक मंडल घोषित किया गया और जिलास्तर के साथ ही तालुकास्तर पर ‘निमंत्रक’ घोषित किए गए । आगे ग्रामस्तर पर मंदिर महासंघ का कार्य पहुंचाने का निर्धार सभी ने किया ।
दो दिनों में विविध विषयों पर चर्चा, मान्यवरों का मार्गदर्शन और गुटचर्चा !
दो दिवसीय इस परिषद में मंदिर सुव्यवस्थापन, देवस्थान भूमि / जमिनी, कुल कानून और अतिक्रमण, मंदिरों का जीर्णाेद्धार करते समय ली जानेवाली दक्षता, पुजारियों की समस्या एवं उपाययोजना, मंदिरों को सनातन धर्मप्रचार के केंद्र कैसे बनाएं, मंदिरों में वस्त्रसंहिता, मंदिर विश्वस्त एवं पुरोहित विश्वस्त कार्यक्रम, धर्मादाय आयुक्त कार्यालय एवं मंदिरों का समन्वय के साथ ही विविध विषयों पर मार्गदर्शन हुआ । मंदिरों के व्यवस्थापन के संदर्भ में भूतपूर्व धर्मादाय आयुक्त दिलीप देशमुख ने कहा, ‘‘मंदिरों का व्यवस्थापन करते समय श्रद्धालुओं को केंद्रबिंदु बनाकर आदर्श व्यवस्थापन कर सकते हैं । इस अवसर पर मुंबई के बाणगंगा तीर्थक्षेत्र टेम्पल के ऋत्विक औरंगाबादकर ने कहा, ‘‘महाराष्ट्र मंदिर परिषद के माध्यम से वाळकेश्वर महादेव मंदिर की पुर्नस्थापना हम करेंगे ।’’ सनातन संस्था की धर्मप्रचारक सद्गुरु स्वाती खाडे ने आवाहन किया कि ‘‘प्रत्येक मंदिर, धर्मप्रसार का केंद्र बनना चाहिए ।’’
परिषद के माध्यम से धर्म, संस्कृति और परंपराएं संजोने का प्रयत्न करेंगे ! – गिरीश शाह, सदस्य, भारतीय जीवजंतु कल्याण मंडल, भारत सरकार
मंदिर अर्थात संपूर्ण हिन्दू समाज के उत्थान होने का माध्यम है । प्रत्येक मंदिर में सांस्कृतिक शिक्षा दी जानी चाहिए । सनातन परंपरा सिखाई जानी चाहिए । एक-दूसरे के मंदिरों में जाकर, आपसी सहयोग बढाना चाहिए । मंदिरों की निधि, धर्मनिधि है । इस परिषद के माध्यम से हम सभी को मिलकर अपना धर्म, संस्कृति और परंपराएं संजोने का प्रयत्न करना है ।
कानिफनाथ देवस्थान वक्फ के नियंत्रण में जाने से बचाने हेतु ग्रामीणों का प्राण हथेली पर लेकर लडना ! – अधिवक्ता श्री. प्रसाद कोळसे पाटिल
कानिफनाथ देवस्थान की इनामी मिल्कीयत पर मुसलमान समाज ने नियमबाह्म पद्धति से अपना कब्जा जमा लिया और पूरी संपत्ति वक्फ में विलीन कर ली । इसके साथ ही कानिफनाथ देवस्थान का नामकरण कर, उसे हजरत रमजान शाह दरगाह का रूप दे दिया था । धर्मांधों ने सातबारा उतार पर भी इस दरगाह का नाम लगाने के लिए भी अर्ज दे दी थी । जब यह बात गांववासियों को ध्यान में आई, तब सभी ने संगठित होकर ग्रामसभा में प्रस्ताव सम्मत किया कि मंदिर और इनामी मिल्कियत पर कोई अधिकार न जताए । कानिफनाथ देवस्थान वक्फ के नियंत्रण में जाने से बचाने के लिए ग्रामवासी अपने प्राण हथेली पर लेकर लड रहे हैं ।