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महाराष्ट्र : श्री तुळजाभवानी देवी के आभूषण पिघलाने पर न्यायालय द्वारा स्थगन आदेश

यह देवी के दरबार में भ्रष्टाचार करनेवालों के मुंह पर तमाचा है !

महाराष्ट्र की कुलस्वामिनी श्री तुळजाभवानी देवी के सोना-चांदी के आभूषण पिघलाने की प्रक्रिया को मुंबई उच्च न्यायालय के औरंगाबाद खंडपीठ ने स्थगित किया । यह स्थगन (रोक) अर्थात देवी के दरबार में भ्रष्टाचार करनेवालों के मुंह पर मारा हुआ तमाचा है । इसका कारण सरकारीकरण हुए इस मंदिर में इससे पूर्व दान पेटी नीलामी घोटाले में देवी के ८.५० करोड से अधिक मूल्य के सोना-चांदी के मूल्यवान रत्नजडित आभूषण और भक्तों द्वारा दान किए गए रुपयों का गबन हो गया है । शायद यह राशि हिमशैल का सिरा हो सकता है । विशेष बात यह है कि इस प्रकरण में अद्याप एक भी दोषी पर कार्रवाई नहीं हुई है । आभूषण पिघलाने की प्रक्रिया द्वारा सोना-चांदी में घट दिखाकर पहले हुआ भ्रष्टाचार दबा देने का खतरा था । हाल ही में देवी का पौन किलो से अधिक भार का सोने के मुकुट तथा मंगलसूत्र के गबन होने की बात सामने आई थी । न्यायालय के निर्णय से इस संभावित भ्रष्टाचार को रोक लगी । पारदर्शक व्यवहार होने की दृष्टि से यह निर्णय महत्त्वपूर्ण है, ऐसा प्रतिपादन इस प्रकरण के याचिकाकर्ता एवं हिन्दू जनजागृति समिति की समन्वयक कु. प्रियांका लोणे ने किया । ‘भगवान के दरबार में भ्रष्टाचार करनेवालों को दंड होने तक और चोरी हुआ एक-एक पैसा वसूल होने तक हम प्रयास करेंगे । श्रद्धालु इसके लिए साथ दें ।’, ऐसा आवाहन भी उन्होंने किया । इस प्रकरण में ज्येष्ठ अधिवक्ता संजीव देशपांडे, हिन्दू विधिज्ञ परिषद के पू.(श्री.) सुरेश कुलकर्णी, तथा अधिवक्ता उमेश भडकावकर ने पक्ष रखा ।

मंदिरों के भ्रष्टाचार के प्रकरण में हिन्दू जनजागृति समिति हिन्दू विधिज्ञ परिषद के माध्यम से वर्ष २०१५ से जनहित याचिकाओं के माध्यम से संघर्ष कर रहे हैं । इस प्रकरण हेतु नियुक्त पहली जांच समिति ने १५ लोगों पर आरोप लगाते हुए कहा था कि उनके विरुद्ध फौजदारी दावा दर्ज किया जाए; परंतु इस प्रकरण में दूसरी जांच समिति स्थापित कर पहली समिति के ब्योरे में परिवर्तन किया गया और पहले जांच ब्योरे में दोषी साबित हुए आरोपियों को ‘क्लीन चीट’ दी गई । सर्वपक्षीय सरकारों को इस प्रकरण में दोषियों पर कार्रवाई होने के विषय में रुचि नहीं है; किंबहुना उनसे ऐसे भ्रष्टाचारियों का समर्थन ही किया जाता है; यह दुर्भाग्य की बात है । यह श्रद्धालुओं की श्रद्धा को पैरों तले कुचलना ही है ।

इस प्रकरण में राजा-महाराजाओं द्वारा देवी को अर्पण की गई ऐतिहासिक एवं पुरातन ७१ मुद्राएं, देवी के २ चांदी के खडाऊ जोडी एवं माणिक गायब हैं । इस प्रकरण में जांच समिति द्वारा आरोप लगाए गए दोषियों पर अब तक कार्रवाई नहीं हुई है । श्री तुळजाभवानी देवी की प्राचीन ७१ मुद्राएं गायब होने के प्रकरण में १ महंत, ३ तत्कालीन अधिकारी एवं २ धार्मिक व्यवस्थापकों पर आरोप लगाया गया है । तत्कालीन धार्मिक व्यवस्थापक श्री. दीक्षित का वर्ष २००१ में निधन हो गया । तत्पश्चात कोई भी कानूनी प्रक्रिया न कर तत्कालीन सर्व अधिकारियों ने उनके घर से चाबियां लाकर उसका उपयोग आरंभ कर दिया । यह गैरकानूनी कृत्य वर्ष २००१ से २००५ की अवधि में हुआ है । श्री तुळजाभवानी देवी के मंदिर में श्रद्धालु श्रद्धा से दान देते हैं । उस प्रत्येक आभूषण का सटीक हिसाब तथा उसकी प्रविष्टि होना आवश्यक है । सोना-चांदी पिघलाने की प्रक्रिया में संबंधित दोषियों का गैरव्यवहार छुपाने की संभावना नकारी नहीं जा सकती । इसलिए यह प्रकरण न्यायप्रविष्ट है तब तक मंदिर का सोना-चांदी पिघलाया न जाए, ऐसी मांग की गई ।

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