अरुणाचल प्रदेश के आदिवासियों की अपनी सांस्कृतिक पहचान खतरे में है। वजह धर्म परिवर्तन है। 2011 की जनगणना के अनुसार, प्रदेश में 68.78% जनजातीय आबादी थी। इसमें 26 प्रमुख जनजातियां और 100 से अधिक उप-जनजातियां हैं।
प्रत्येक जनजाति की अलग-अलग भाषा, बोली और रीति-रिवाज हैं। जबकि बौद्ध धर्म में हीनयान और महायान को मानने वाली जनजातियों के पास केवल अपनी लिपियां हैं।
आंकड़ों बताते हैं राज्य में ईसाईयों की संख्या 2001 में 18.72% थी, जो 2011 में बढ़कर 30.26% हो गई। ईसाई बनने वाले अधिकांश आदिवासी हैं। वहीं, मुस्लिम आबादी 2001 के 1.88% से मामूली बढ़कर 2011 में 1.95% हो गई।
धर्म परिवर्तन रोकने बनी IFCSAP
धर्म परिवर्तन को रोकने और आदिवासी संस्कृति को बचाने के लिए ही आईएफसीएसएपी का गठन किया गया। संगठन 24 सालों से स्थानीय संस्कृति को बचाने का अभियान चला रहा है।
इसके लिए हर साल एक दिसंबर को आदिम आस्था दिवस भी मनाया जाता है। इसके अलावा समाजिक स्तर पर लोगोें के साथ बैठकें की जा रही हैं। उन्हें सांस्कृतिक जुड़ाव का महत्व बताया जा रहा है।
संस्कृति सिलेबस का हिस्सा, बदलाव 15 साल में दिखेगा
आरजीयू के इतिहास के प्रोफेसर आशान रिद्दी बताते हैं कि धर्म परिवर्तन इस तरह से हो रहा है कि नए, विदेशी विचारों को हमारी मूल मान्यताओं में शामिल किया जा रहा है। प्रोफेसर नाका ने न्यीशी समुदाय के न्येदर नामलो (पूजा स्थल) आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई है। विभिन्न शैमनिस्टिक मंत्रों का दस्तावेजीकरण किया गया है। यह पहले से ही कक्षा 6 से 8 तक के स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है। आज की लड़ाई के परिणाम 10-15 साल में मिलने लगेंगे।
आदिवासियों का संस्कृति छाेड़ना चिंताजनक: विशेषज्ञ
राजीव गांधी विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रो. नाका हिना नबाम आदिवासियों के धर्म परिवर्तन को चिंताजनक बताते हैं। नबाम कहते है, पहले हमारे लोगाें का विश्वास था कि हर चीज में ईश्वर है। पर एकेश्वरवाद के आने से बहुत प्रभाव पड़ा है। धर्म बदलने वाले अब अपनी ही संस्कृति से नफरत करते हैं।’ प्रो. नानी बाथ कहते हैं कि दुख की बात है कि अब भी ऐसे कई लोग हैं, जो कष्टों/बीमारियों से निजात पाने के लिए धर्म बदल लेते हैं।’
Source: bhaskar.com