अफगानिस्तान में तालिबान का राज लौटे दो बरस के लगभग हो गया है। इस बीच वहां की राजधानी काबुल हो या अन्य कोई इलाका हर जगह बम धमाकों का होना आज आम बात बन गया है। वो चाहे कोई चरमपंथी धमाका हो या किसी अन्य तरीके का धमाका वहां आम बात है। इसीलिए वहां हिन्दुओं का पलायन बहुत तेजी से हुआ है। अफगानिस्तान में जो मुख्य रूप से हिंदू धर्म का आज भी अनुसरण करते हैं, वे पंजाबी और सिंधी जाति समूह के लोग हैं। वे सभी सिखों के साथ व्यापार करने के लिए १९ वीं शताब्दी अफगानिस्तान गये थे। अफगानिस्तान में सोवियत युद्ध से पूर्व अफगानिस्थान में हजारों हिंदू रहते थे। परन्तु अब वहां तालीबान शासन के बाद चंद गिने चुने हिन्दू परिवार रह रहे हैं।
बाहर से किसी हिन्दू के जाने पर क्या होती है परेशानी
अफगानिस्तान में तालिबान का राज जब से लौटा है वहां अल्पसंख्यकों पर जुल्म इतने बढ़ गये हैं कि वे वहां से पलायन कर रहे हैं। और जो बाहर से वहां जाना चाहते हैं किसी कारण से उन्हें किस तरह होप्लेस किया जाता है उसकी एक बानगी देखें। एक महिला पत्रकार को वहां के हालात पर रिपोर्ट करने के लिए काबुल जाना था। उन्होंने बताया कि वीजा के लिए जब दिल्ली में अफगानिस्तान दूतावास पहुंची, तो वीजा ऑफिसर ने मुझसे लिखित बयान लिया कि मैं अपने रिस्क पर वहां जा रही हूं। काबुल के लिए उड़ान भरने से कुछ ही देर पहले तालिबान ने मेल के जरिए मुझसे रिपोर्टिंग प्लान मांगा। साथ ही हिदायत भी दी कि जब तक मंजूरी नहीं मिले, मत आइएगा। और मैं नई दिल्ली एयरपोर्ट के वेटिंग हॉल में बैठकर सोच रही थी आखिर कब और कैसे वहां पहुंचुंगी।
लड़ाई ख़त्म होने के बाद भी अफगानिस्तान में शांति का नामोनिशान नहीं
अफगानिस्तान की राजधानी क़ाबुल के केंद्र में स्थित है असामाई मंदिर। इस मंदिर में मातारानी की पूजा होती है, यहां अखंड ज्योत जलती है। यहां शिवालय है और भोलेनाथ की पूजा भी होती है। साथ ही यहां श्रीमदभागवत और रामायण भी होता है। तालिबान के शासन के पहले यहां हमेशा रौनक बनी रहती थी। दूर दराज के हजारों लोग यहां दर्शन पूजन के लिए आते थे। और आज हाल यह है कि गार्ड के अलावा मंदिर के इस बड़े से अहाते में हरजीत सिंह अपनी पत्नी बिंदिया कौर के साथ रहते हैं। तालिबान के आने के बाद सुरक्षा कारणों से दोनों के परिवार भारत चले गए हैं, लेकिन हरजीत और पत्नी बिंदिया के साथ यहीं रहते हैं। वे अफ़गानिस्तान में गिने-चुने बचे हिंदुओं में से एक हैं।
चरमपंथी हमलों का डर इस मंदिर पर भी दिखता है
तालीबानियों के शासन के दौर में हमलों के डर से इस असामाई मंदिर में पूजा भी बहुत चुपचाप तरीक़े से होती है, इसे रिकॉर्ड करने की इजाज़त नहीं है, ताकि पूजा के बारे में पता चलने पर कोई चरमपंथी हमला ना हो जाए। मंदिर के पुजारी हरजीत ने बताया कि एक वक्त अफ़गानिस्तान के खोस्त इलाके में मसाले का काम करते थे। और आज सारा काम धंधा बंद है। और अब बैठे हैं हम माता रानी के चरणों में, उनकी सेवा कर रहे हैं। हम डरकर माता मंदिर नहीं छोड़ेंगे। उनका कहना है कि अफगानिस्तान में गिनती के सात-आठ घर हिन्दुओं के बचे हैं। उनमें एक मेरा घर है। एक घर गज़नी में है और एक दो घर कार्ती परवान में हैं। इसी तरह एक दो घर शेर बाज़ार में हैं। ऐसे लोग भी हैं जो पैदा होकर यहां बड़े हो गए हैं उन्हें पासपोर्ट क्या है जानते भी नहीं। लोग पढ़े लिखे नहीं हैं। अब जाएं तो कहां जाएं।
बड़े बम धमाकों के बाद पलायन होता रहा
अफगानिस्तान में बड़े बम धमाकों के बाद पलायन होता रहा है, और धीरे धीरे यहां रहने वाले हिन्दू शिखों की संख्या उंगली पर गिनने लायक रह गई है। पहले एक बम धमाका जलालाबाद में हुआ था तब तक़रीबन ६००-७०० बंदे इंडिया चले गए। जब शेर बाज़ार (काबुल में) में बम ब्लास्ट हो गया तो उसमें ३० घर तबाह हो गए थे। उसके बाद २०० लोग फिर इंडिया चले गए। जब तालिबान आ गए तो डर से लोग इंडिया चले गए। जब कार्ती परवान में हादसा हो गया तो ५०-६० इंडिया चले गए। साल २०१८ में जलालाबाद में एक आत्मघाती हमले में और साल २०२० में काबुल में गुरुद्वारे पर चरमपंथी हमले में कई सिख मारे गए थे। किसी हिंदू या सिख का दिल यहां रहने का नहीं है हमेशा खौफ मंडराता रहता है। सभी इंडिया जाना चाहते हैं। मंदिर में रह रही बिंदिया ने बताया पहले मंदिर में २० परिवार रहते थे। डर के मारे सारे आहिस्ता आहिस्ता छोड़कर चले गए। बस हम अपने पति के साथ अकेले रह गए।
ग़ायब होते हिंदू और सिख
मंदिर से थोड़ी दूर पर है कार्ती परवान इलाका है। काबुल के हर इलाके की तरह यहां भी हर जगह चेक पोस्ट हैं और सड़कों पर बंदूक लिए तालिबान नज़र आते हैं। एक वक्त था जब कार्ती परवना ने अफ़ग़ान हिंदुओं और सिखों की दुकानों और घरों से भरा हुआ था। ये पूरा इलाका हिंदुओं और सरदारों का था। हिंदुओं का करेंसी और कपड़े का बिज़नेस था, डॉक्टर थे, पंसारी का काम हिंदुओं का था। सरकारी पोस्टों में हिंदू डॉक्टर थे, इंजीनियर थे, वो फौज में थे। लेकिन आज तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान में डर के साये में या तो लोग घरों में बंद हैं, या फिर बहुत ज़रूरी काम पड़ने पर कुछ देर के लिए ही निकलते हैं। १९९२ से पहले अफ़ग़ानिस्तान में दो लाख २० हज़ार से ज़्यादा हिंदू और सिख थे। पिछले ३० सालों में हिंदू और सिखों पर हमलों, भारत या दूसरे देशों में पलायन के बाद आज उनकी संख्या १०० के आसपास रह गई है, और ये संख्या लगातार कम होती जा रही है।
स्त्रोत : चेतना मंच