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संत बाळूमामा देवस्थान में संभावित मंदिर सरकारीकरण का कडा हिन्दुओं द्वारा तीव्र विरोध !

संत बाळूमामा मंदिर के संभावित सरकारीकरण के विरोध में 17 जनवरी को धरना आंदोलन !

प्रेस कॉन्फ्रेंस में बाएं से श्री. दीपक देसाई, श्री. सुनील सामंत, महाराष्ट्र मंदिर महासंघ के श्री. सुनील घनवट, श्री. निखिल मोहिते और श्री. बाबासाहेब भोपळे.

लाखों भक्तों के श्रद्धास्थल, कोल्हापुर जिले के आदमापुर में संत बाळूमामा देवस्थान के न्यासी बोर्ड को भ्रष्टाचार का कारण देते हुए भंग कर दिया गया है । वहां फिलहाल प्रशासक नियुक्त किया गया है । इस मामले में जिन ट्रस्टियों ने भ्रष्टाचार किया है, उन्हें दंडित किया जाना चाहिए; लेकिन इस प्रकरण के बहाने मंदिर का सरकारीकरण करने का षड्यंत्र क्यो चल रहा है ? पंढरपुर के श्री विट्ठल मंदिर, श्री तुलजाभवानी मंदिर, कोल्हापुर के श्री महालक्ष्मी मंदिर, मुंबई के श्री सिद्धिविनायक मंदिर और शिरडी के श्री साईंबाबा संस्थान सहित राज्य के कई मंदिरों का सरकारीकरण कर दिया गया है और वहां जमीन, गहने और संपत्ती से जुडे करोडों के घोटाले निरंतर उजागर हो रहे हैं ।  सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार में लिप्त रहनेवाले सरकारी अधिकारियों के हाथों में मंदिर की व्यवस्था सौंपने का अर्थ है, ‘चोर के हाथ में तिजोरी की चाबी देना ।’ इसलिए हम मंदिर के सरकारीकरण के तीव्र विरोधी हैं ।’ संत बाळूमामा देवस्थान का सरकारीकरण किए बिना, दोषी पाए गए पूर्व ट्रस्टियों कर कार्रवाई कर बाळूमामा के निष्ठावान भक्तों को देवस्थान सौंपा जाए, ऐसी मांग महाराष्ट्र मंदिर महासंघ के राज्य समन्वयक श्री. सुनील घनवट द्वारा की गयी है । इस मांग के लिए ‘सदगुरु बाळूमामा देवस्थान संरक्षक कृति समिति’ और ‘महाराष्ट्र मंदिर महासंघ’ की ओर से 17 जनवरी 2024 को ‘बाळूमामा देवस्थान संरक्षक आंदोलन का आयोजन किया गया है । यह आंदोलन सुबह 10 बजे क्रांति ज्योति चौक, गारगोटी पर शुरू होगा, ऐसा श्री. सुनील घनवट ने कहा । वे कोल्हापुर में ‘प्रेस क्लब’ में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में बोल रहे थे ।

इस अवसर पर ‘बाळूमामा हालसिद्धनाथ सेवेकरी संस्था’ के अध्यक्ष श्री. निखिल मोहिते, ‘हिन्दू एकता आंदोलन’ के जिला अध्यक्ष श्री. दीपक देसाई, ‘शिवशाही फाउंडेशन’ के संस्थापक श्री. सुनील सामंत एवं ‘सदगुरु बाळूमामा देवस्थान संरक्षक कृति समिति’ के संयोजक श्री. बाबासाहब भोपळे उपस्थित थे ।

इस समय श्री. सुनील घनवट ने आगे कहा, ‘‘वर्ष 2014 में मा. सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के नटराज मंदिर मामले में स्पष्ट आदेश दिया था कि ‘सरकार को मंदिरों को भक्तों को सौंप देना चाहिए’; तो फिर राज्य सरकार मंदिरों का सरकारीकरण कैसे कर रही है? पूरे देश में एक भी मस्जिद या चर्च का सरकारीकरण नहीं किया गया है; लेकिन सैकडों मंदिरों का सरकारीकरण कर दिया गया है । यह हिन्दुओं के साथ हो रहा धार्मिक भेदभाव है।’ यह धर्मनिरपेक्षता के किस सिद्धांत में बैठता है? यह विरोधाभासी है कि एक तरफ सरकार कई सरकारी व्यवस्थाओं में ठेकेदारी, निजीकरण कर रही है और दूसरी ओर मंदिरों का सरकारीकरण कर रही है ।

राज्य में सरकारीकरण हुए विभिन्न मंदिरो के घोटालो की जांच चल रही है । इसी तरह, वर्ष 2018 में, शनिशिंगणापुर में श्री शनि मंदिर को सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया क्योंकि ट्रस्टी इसका प्रबंधन ठीक से नहीं कर रहे थे; लेकिन इसके बाद भी वहां के हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है और श्रद्धालुओं की मुश्किलें बढ गई हैं । आज तक जितने भी मन्दिरों को सरकार ने अपने कब्ज़े में लिया है, उनमें पहले से कहीं अधिक भ्रष्टाचार, धार्मिक रीति-रिवाजों में फेरबदल और भक्तों को असुविधाए होती दिखाई दे रही है ।

इस समय श्री. बाबासाहेब भोपळे ने कहा, ‘‘संत बाळूमामा देवस्थान के प्रबंधन के संबंध में चैरिटी कमिश्नर से शिकायतें मिलने के बाद चैरिटी कमिश्नर कार्यालय ने जिस गति से आगे कदम उठाया, उसे लेकर संदेह व्यक्त किया जा रहा है । क्या यह किसी विशेष उद्देश्य के लिए है कि चैरिटी कार्यालय, जो कछुआ गति से कोई भी काम करता है, वह शिकायतों की जांच करने, दस्तावेजों का सत्यापन करने के लिए लगातार आदमापुर जाता है? इस बात पर गहरा संदेह है । जिस मन्दिर में आज प्रशासक है, वहां कल शासन-स्वीकृत मन्दिर समिति आने में देर नहीं लगेगी; लेकिन हमारा सरकारीकरण को तीव्र विरोध है । इसलिए हमारी मांग है कि मंदिर के जिन ट्रस्टियों ने भ्रष्टाचार किया है और जो दोषी पाए जाएं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए तथा ईमानदार भक्तों को दैवस्थान सौंप दिया जाए ।

श्री. दीपक देसाई ने कहा, ‘‘पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान प्रबंधन समिति’, जिसका 3 हजार से ज्यादा मंदिरों पर कब्जा है उसके बड़े घोटाले की सी.आई.डी. जांच शुरू हुए छह साल बीत गए, लेकिन रिपोर्ट अभी तक सामने नहीं आई है । इन मंदिरों के स्वामित्व वाली भूमि कितनी है और अन्य लोगों द्वारा हडपी गई भूमि की वसूली की जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है । यदि दोषियों को सजा नहीं मिलेगी, तो ऐसी जांच का क्या फायदा? यह भक्तों और जनता के साथ धोखा है ।’

इस अवसर पर श्री. निखिल मोहिते ने कहा, ‘‘भले ही अदमापुर के बाळूमामा मंदिर में अनियमितताएं और भ्रष्टाचार सामने आ गए हैं, फिर भी अपराधियों को सजा क्यों नहीं दी गई?’’ इनमें से कई बातें अभी तक सामने नहीं आई हैं, वे सामने क्यों नहीं आ रही हैं? संत बाळूमामा उन भक्तों के हैं, जो उनमें आस्था रखते हैं और यह मंदिर भक्तों के नियंत्रण में रहना चाहिए । ‘बाळूमामा हालसिद्धनाथ सेवेकरी संस्था’ की ओर से, हम इस आंदोलन का पूरा समर्थन करते हैं और अन्य भक्तों से इस आंदोलन में भाग लेने की अपील करते हैं ।’’

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