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रणजीत सावरकर द्वारा लिखित ‘मेक शुअर गांधी इज डेड’ पुस्तक का नई देहली में लोकार्पण

मोहनदास गांधी की हत्या के पीछे कौन है ? – रणजीत सावरकर, कार्याध्यक्ष, वीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक

इस विषय में केंद्र सरकार आयोग गठन कर दबे हुए प्रमाणों को बाहर निकाले !

पुस्तक के लोकार्पण के समय बाईं ओर से अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, श्री. राजीव सोनी एवं श्री. रणजीत सावरकर

नई देहली – मोहनदास गांधी को मारने के पीछे अदृश्य हाथ किसके थे ?, कौनसी राजसत्ता को गांधी को मारना था ? गांधी के शरीर में मिली गोलियां तथा नथुराम गडसे द्वारा चलाई गई गोलियां भिन्न थीं । गांधी पर भिन्न दिशा से गोलियां चलाई गई थीं । नथुराम गोडसे की बंदूक से जो गोलियां चलाई गई थीं, उनके कारण गांधी की मृत्यु नहीं हुई, अतः गांधी की हत्या के पीछे कौन है ?, यह प्रश्न स्वतंत्रतावीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष श्री. रणजीत सावरकर ने उठाया । २९ जनवरी २०२४ को श्री. रणजीत सावरकर द्वारा अंग्रेजी भाषा में लिखी गई ‘मेक शुअर गांधी इज डेड’, इस पुस्तक के लोकार्पण समारोह में बोलते हुए उन्होंने यह प्रश्न उठाया । इस अवसर पर ‘इकॉनॉमिक टाइम्स’के पूर्व संपादक तथा राजनीतिक विश्लेषक श्री. राजीव सोनी एवं हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर उपस्थित थे ।

इस अवसर पर इस पुस्तक का संपादन करनेवाले सर्वश्री मंगेश जोशी, धनंजय शिंदे, अनिल त्रिवेदी एवं दीपक कानूलकर को मान्यवरों के हस्तों सम्मानित किया गया । कार्यक्रम का मंच संचालन वीर सावरकर स्मारक की कोषाध्यक्ष मंजिरी मराठे ने किया ।

श्री. रणजीत सावरकर ने कहा कि,

१. नथुराम गोडसे रा.स्व.संघ के स्वयंसेवक थे, मात्र इसलिए संघ एवं हिन्दू महासभा पर प्रतिबंध लगाया गया था ।

२. गांधी ने ‘हे राम’ बोलते हुए प्राण त्याग दिए । उसके उपरांत श्रीराम का नाम लेकर जो एक बडा पाप दबा दिया गया था, वह इस पुस्तक से सामने आएगा ।

३. नथुराम की गोलियों से गांधी की मृत्यु नहीं हुई । इस विषय में कर्नल तनेजा ने बहुत ध्यानपूर्वक ब्योरा तैयार किया था ।

४. नथुराम गोडसे कोई अपराधी नहीं थे; इसलिए उनके द्वारा बंदुक से दागी गई गोली से सही निशाना लगना संभव नहीं था । इन सभी प्रमाणों को देखते हुए गोडसे ने गांधी को नहीं मारा, अपितु अन्य लोगों द्वारा चलाई गई गोलियों से गांधी की मृत्यु हुई । ‘गोली चलानेवाले वे कौन लोग थे ?’, इसका अन्वेषण किया जाना चाहिए ।

५. इस घटना के उपरांत कांग्रेस में सक्रिय वल्लभभाई पटेल का समर्थक समूह मिटाया गया । उसके उपरांत भारत ने ग्रेट ब्रिटेन से व्यापार आरंभ किया । इससे जवाहरलाल नेहरू एवं ब्रिटेन को लाभ मिला ।

६. मेरा यह आवाहन है कि गांधी हत्या के २० वर्ष उपरांत कपूर आयोग का गठन किया गया, उसी प्रकार अब भी केंद्र सरकार एक आयोग का गठन कर दबे हुए प्रमाण बाहर निकाले । गांधी हत्या के जो प्रमाण दबाए गए थे, उसकी जांच आरंभ की जाए  ।

‘मेक शुअर गांधी इज डेड’ पुस्तक का मुखपृष्ठ

‘मेक शुअर गांधी इज डेड’ पुस्तक प्रकाशित न हो; इसलिए मुझ पर दबाव बनाया गया; परंतु मैंने स्वयं यह पुस्तक प्रकाशित की । इस पुस्तक को प्रकाशित करते समय प्रकाशक ने अंतिम क्षणों में प्रकाशन करना अस्वीकार किया था, ऐसा भी श्री. रणजीत सावरकर ने बताया ।

…परंतु निश्चितरूप से सच्चाई क्या है ? – अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दू विधिज्ञ परिषद

अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर

गांधी राष्ट्रपिता थे, तो उन्हें पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था प्रदान करना तत्कालिन सरकार का कर्तव्य था । हत्या के कुछ दिन पूर्व तक कांग्रेस के कार्यकर्ता अथवा पुलिस उनकी सुरक्षा में थे; परंतु यह सुरक्षा हटाई क्यों गई थी ? गांधी के लिए आवश्यक औषधियां उसी दिन उपलब्ध क्यों नहीं थी ? गोलियां लगने के लगभग २८ मिनट तक गांधी जीवित थे, तो इस अवधि में उनके प्राण बचाने के प्रयास क्यों नहीं किए गए ? २० जनवरी १९४८ को गांधी हत्या का प्रयास विफल रहा । इसमें मदनलाल पहावा को बंदी बनाया गया, उस समय उनके द्वारा महाराष्ट्र से कुछ नाम ज्ञात हुए थे, उसके आधार पर नथुराम गोडसे को बंदी बनाना सहजता से संभव होते हुए भी पुलिस ने उस दृष्टि से अन्वेषण नहीं किया । इसके कारण ही ३० जनवरी को गांधी पर पुनः गोलियां चलाई गईं तथा जिन्होंने यह अन्वेषण नहीं किया, उन्हें किसी प्रकार का दंड नहीं हुआ ।

जिस पिस्तौल से गोलियां चलाई गईं, ऐसा माना जाता है; उन गोलियों के तथा घावों के आकार मेल नहीं खाते । ‘शरीर में घुसनेवाली गोली का स्थान तथा शरीर से बाहर निकलनेवाली गोली के स्थान की दिशा देखी जाए, तो गांधी से अधिक ऊंचाई वाले व्यक्ति ने गोलियां चलाई होंगी’, ऐसा दिखाई देता है । वास्तव में नथुराम गोडसे तथा गांधी के कद में बहुत अंतर नहीं था, तो ‘ये घाव कैसे बने होंगे ?’, इसकी जांच नहीं की गई । इसके साथ ही जिस स्थान पर ‘गोलियां एवं कारतुस गिरे हुए मिले’, उस स्थान का पुलिस ने पंचनामा किया था, जो सदोष है । इसके संदर्भ में न्यायाधिशों ने प्रश्न  पूछे ही नहीं । नथुराम गोडसे के द्वारा ही हत्या का अपराध स्वीकार किए जाने से अनेक महत्त्वपूर्ण साक्ष्यकर्ताओं का प्रतिपरीक्षण नहीं किया गया; परंतु सच्चाई निश्चितरूप से क्या थी ? तथा वास्तव में क्या हुआ था ? इसको ढूंढने का कार्य न्यायाधिशों का भी होता है । उन्हें प्रश्न पूछने चाहिए थे ।

अपराधियों को बचानेवाले कौन हैं ? – राजीव सोनी, ‘इकॉनॉमिक टाइम्स’ के पूर्व संपादक तथा राजनीतिक विशेषज्ञ

इस पुस्तक का प्रयोजन तो एक आंदोलन का आरंभ है । गांधी की हत्या गोडसे ने नहीं की अपितु किसी भिन्न व्यक्तियों ने की, जो एक षड्यंत्र था । इस माध्यम से वास्तविक अपराधियों को बचाया गया । गांधी हत्या के कारण ‘किसे लाभ हुआ ?’, यह देखना होगा । अतः ‘अपराधियों को बचानेवाले वे लोग कौन थे ?’, इसकी जांच करना समय की मांग है ।

 

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