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लांजा तहसील के मंदिर न्यासियों ने लिया मंदिरों की रक्षा के लिए संगठित रूप से प्रयास करने का निर्णय !

महाराष्ट्र मंदिर महासंघ की ओर से मंदिर न्यासी बैठक

बाएं से सर्वश्री सुनील सहस्रबुद्धे, संजय जोशी, विनय पानवळकर, विनोद गादीकर एवं उदय केळुसकर

लांजा (महाराष्ट्र) – लांजा तहसील के मंदिर न्यासियों ने महाराष्ट्र मंदिर महासंघ की ओर से लांजा के श्री बसवेश्वर सदन में कुछ दिन पूर्व हुई बैठक में निर्णय लेते हुए कहा, ‘मंदिरों का सरकारीकरण न हो, इसकी दक्षता लेने के साथ ही मंदिरों की पवित्रता अबाधित रख मंदिरों की रक्षा के लिए संगठित होकर प्रयास करने चाहिए ।’ इस बैठक में २० मंदिरों के ४० मंदिर न्यासी उपस्थित थे ।

बैठक का सूत्रसंचालन श्री. चंद्रशेखर गुडेकर ने, तो आभार प्रदर्शन श्री. उदय केळुस्कर ने किया । इस समय सर्वश्री श्रीराम करंबेळे, जयेश शेट्ये, अनिल मांडवकर, डॉ. समीर घोरपडे, भैरूलाल भंडारी आदि उपस्थित थे ।

मंदिर संस्कृति की रक्षा के लिए संगठनात्मक भूमिका आवश्यक ! – विनय पानवळकर, हिन्दू जनजागृति समिति

आज सभी क्षेत्रों का संगठन है । जिन मंदिरों के कारण गांव एवं समाज संगठित हैं तथा सामाजिक एकता अबाधित है, उन मंदिरों का भी संगठन होना आवश्यक है । मंदिरों का संगठन न होने के कारण अनेक समस्याओं से मंदिरों को अकेले संघर्ष कर सामना करना पड रहा है । यही संघर्ष यदि संगठित रूप से किए जाएं, तो निश्चित ही सरकार को इसकी ओर गंभीरता से देखना होगा ।

युवा पीढी को मंदिर संस्कृति की ओर मोडना आवश्यक ! – सुनील सहस्रबुद्धे, महाराष्ट्र मंदिर महासंघ

पूरे विश्व में केवल भारत में युवा पीढी की संख्या अधिक है ।
हिन्दू संस्कृति की रक्षा के लिए युवा पीढी पर धार्मिक संस्कार होना आवश्यक है । मंदिरों से उत्सवों के समय देवी-देवताओं का नामसंकीर्तन करते हुए गले का कंठा बनाना, एक बूटी आदि प्राचीन रूढि, प्रथा, परंपराओं को पुनर्जीवित करके युवा पीढी को हिन्दू संस्कृति के अनुसार आचरण करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है ।

मंदिर धर्मशिक्षा मिलने के उत्तम स्रोत बन सकते हैं ! – विनोद गादीकर, हिन्दू जनजागृति समिति

हिन्दू धर्म पर हो रहे भिन्न भिन्न प्रहार रोकने के लिए हिन्दुओं को धर्मशिक्षा मिलना आवश्यक है । उसके लिए मंदिरों में धर्मशिक्षा वर्ग, धार्मिक ग्रंथ उपलब्ध करना जैसे उपक्रम आरंभ कर सकते हैं ।

आदर्श सुव्यवस्थापन के कारण मंदिर स्वयंपूर्ण होंगे ! – संजय जोशी, हिन्दू जनजागृति समिति

मंदिरों की स्वच्छता, पांव धोना, पीने के पानी आदि की सुविधाएं, उत्सव एवं यात्राओं के समय सुलभ दर्शन, मंदिर न्यासी एवं पुजारी के मध्य अच्छा व्यवहार आदि की व्यवस्था करने से मंदिरों की ओर भक्तों का आकर्षण बढकर मंदिर स्वयंपूर्ण बन सकेंगे ।

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