म्यांमार से आए लोगों की संख्या अधिक, १५ हजार लोग रह रहे
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने पांच दिन पहले विधानसभा में कहा था कि म्यांमार बॉर्डर से सटे ५ पहाड़ी जिलों में अनजान गांवों की बाढ़ आ गई है। इससे मणिपुर की डेमोग्राफी बिगड गई है।
मुख्यमंत्री ने अपने बयान में ऐसे गांवों की संख्या नहीं बताई थी, लेकिन दैनिक भास्कर को भू और राजस्व विभाग से मिली जानकारी से पता चला है कि, २००६ से अब तक मणिपुर के ५ पहाड़ी जिलों में १८५३ अवैध गांव बस चुके हैं।
ज्यादातर गांव मुख्य सड़क से ५-६ किमी अंदर घने जंगलों में हैं। यहां १५ हजार से ज्यादा लोग रह रहे हैं और इनमें कई मतदाता भी बन चुके हैं। पिछले साल मई में हिंसा भड़कने की एक बड़ी वजह ये गांव भी थे।
जिन पांच जिलों चुराचांदपुर, टेंग्नाउपोल, कांग्पोक्पी, उखरुल, चांदेल में ये अनजान गांव बसे हैं, वहां म्यांमार से आए चिन-कुकी की तादाद एकदम बढ़ी है। इनमें कांग्पोक्पी और टेंग्नाउपोल में नए गांव तेजी से बसे हैं।
पहाड़ी जिलों में कितने अवैध गांव बसे
अब जागी सरकार: बॉर्डर पर १० किमी में फेंसिंग लगी, आवाजाही बंद
हाल ही में सरकार ने म्यांमार से स्वतंत्र आवाजाही वाला समझौता रद्द करने के बाद से बॉर्डर पर निगरानी बढ़ा दी है। गृह मंत्रालय ने म्यांमार से सटे बॉर्डर पर फेंसिंग का काम शुरू कर दिया है। मणिपुर के मोरेह टाउन में १० किमी से ज्यादा फेंसिंग लग चुकी है।
म्यांमार सीमा पर बढ़ते गांव की संख्या चिंताजनक, रजिस्टेशन अनिवार्य हो
रिटायर्ड आईएएस और मणिपुर बॉर्डर के जानकार एके निमाई सिंह ने बताया कि म्यांमार और बांग्लादेश में आंतरिक अशांति के चलते यहां से मणिपुर में आकर बसने वाले लोगों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ी है। अब इस मुद्दे को लेकर सरकार जाग गई हैं और कड़ी कार्रवाई करने के संकेत दे रही है।
अवैध गांवों में आकर बसने वाले लोगों का रजिस्ट्रेशन सरकार को अनिवार्य करना चाहिए ताकि राज्य में उनकी निगरानी हो सके। पहाड़ी हिस्सों में गांवों को मंजूरी देने की प्रक्रिया में सुधार और सरकारी विभागों में बेहतर तालमेल जरूरी है ताकि समस्या का हल निकाला जा सके।
स्त्रोत : दैनिक भास्कर