सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द की प्रोफेसर के विरुद्ध FIR
सर्वोच्च न्यायालय ने एक प्रोफेसर के विरुद्ध दर्ज FIR रद्द कर दी। उसके खिलाफ यह FIR पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर बधाई देने और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद ३७० हटाने पर काला दिन बताने को लेकर दर्ज की गई थी। न्यायालय ने कहा कि, यह बातें कहना अपराध नहीं हो सकता।
सर्वोच्च न्यायालय की अभय एस ओका और उज्जवल भुइयां वाली बेंच ने कहा कि देश के हर नागरिक को जम्मू कश्मीर की स्थिति में बदलाव करने वाले कानून को लेकर किए गए निर्णय की आलोचना करना का अधिकार है। न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद ३७० हटाने को काला दिन दिन कहना गुस्से और विरोध का प्रतीक है।
न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद ३७० हटाने के निर्णय की आलोचना करना किन्हीं धर्म या नस्लों के बीच दुश्मनी नहीं बढ़ाती। न्यायालय ने कहा कि यह केवल सरकार के ३७० हटाने के निर्णय की साधारण आलोचना थी। न्यायालय ने प्रोफेसर के पाकिस्तान को बधाई देने को भी अपराध मानने से इंकार किया। न्यायालय ने कहा कि देश के सभी नागरिकों को सरकार के ३७० हटाने के निर्णय या और किसी भी निर्णय की आलोचना करने का अधिकार है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “अगर भारत का कोई नागरिक १४ अगस्त, जो कि उनका स्वतंत्रता दिवस है, पर पाकिस्तान के नागरिकों को शुभकामनाएँ देता है, तो इसमें कुछ गलत नहीं है। यह मेलजोल बढ़ाने का संकेत है। याचिकाकर्ता के उद्देश्यों को केवल इसलिए आशंका के दायरे में नहीं लाया जा सकता क्योंकि वह विशेष मजहब से है।”
दरअसल, महाराष्ट्र पुलिस ने एक प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम के विरुद्ध एक FIR दर्ज की थी। हजाम कोल्हापुर में रहता था और जम्मू कश्मीर के बारामूला से आया था। हजाम ने अपने व्हाट्सएप पर जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद ३७० के हटाए जाने को निर्णय वाली तारिख ५ अगस्त को जम्मू कश्मीर के लिए काला दिन बताया था।
उसने १४ अगस्त (पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस) की बधाई दी थी। हजाम ने व्हाट्सएप पर स्टेट्स लगाकर यह दोनों बातें प्रकट की थी। इसके अलावा हजाम ने एक अन्य स्टेटस में कहा था कि वह अनुच्छेद ३७० हटाए जाने से खुश नहीं है।
इसी मामले को लेकर उसके विरुद्ध FIR दर्ज की गई थी। उसने पहले बॉम्बे हाई न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था जिसने उसे राहत देने से मना कर दिया था। इसके बाद उसने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया, जिसने उसके विरुद्ध दर्ज FIR रद्द कर दी।
स्त्रोत : ऑप इंडिया