केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को किया स्पष्ट !
भारतीय जनसामान्यों का मानना है कि घुसपैठियों को भारत में रहने की अनुमति देने की मांग वाली याचिका न्यायालय को स्वीकार नहीं करनी चाहिए ! -संपादक
नई देहली – केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से स्पष्ट रूप से कहा है कि भारत में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को यहां बसने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है । इतना ही नहीं, बल्कि ‘सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां भी सीमित हैं और न्यायालय उनकी मर्यादा लांघ कर, संसद की शक्तियों को मर्यादित नहीं कर सकता । केंद्र सरकार ने कहा है कि न्यायपालिका के पास अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वालों को शरणार्थी की श्रेणी देने के लिए, एक अलग श्रेणी निर्माण करने की शक्ति नहीं है ।
१. संयुक्त राष्ट्र द्वारा दिए गए शरणार्थी कार्ड को भारत में मान्यता नहीं है !
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का संदर्भ देते हुए सरकार ने प्रतिज्ञा पत्र में सर्वोच्च न्यायालय के अनेक निर्णयों का उल्लेख किया है। केंद्र ने कहा है कि किसी विदेशी को संविधान के अनुच्छेद २१ के अंतर्गत जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार है। उन्हें देश में रहने और बसने का कोई अधिकार नहीं है। यह अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को ही प्राप्त है। संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त ने कुछ शरणार्थियों को नागरिकता प्राप्त करने के लिए ‘शरणार्थी कार्ड’ जारी किया है; किन्तु भारत में इसे मान्यता नहीं है । रोहिंग्या मुसलमानों ने यह कार्ड इस विश्वास के साथ प्राप्त किया है कि इस कार्ड के आधार पर उन्हें नागरिकता प्राप्त हो जाएगी ।
२. रोहिंग्याओं को रहने देना देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक !
सरकार ने आगे कहा कि भारत पहले से ही बडी संख्या में बांग्लादेशियों की घुसपैठ की गंभीर समस्या का सामना कर रहा है । बांग्लादेशी घुसपैठ ने कुछ सीमावर्ती राज्यों (असम और बंगाल) में जनसंख्या समीकरण बदल दिया है । रोहिंग्याओं का भारत में अवैध स्थलांतर और उन्हें भारत में रहने की अनुमति देना न केवल अवैध है बल्कि सुरक्षा के लिए भी खतरनाक है। ऐसा माना जाता है कि वे मानव तस्करी सहित देश भर में गंभीर आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हैं और आंतरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं । रोहिंग्याओं को आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र जैसे बनावट पहचान पत्र मिले हैं ।
३. रोहिंग्याओं पर विदेशी कानून के प्रावधानों के अनुसार होगी कार्रवाई !
याचिकाकर्ता प्रियाली सूर ने बंदी बनाए गए रोहिंग्याओं की मुक्ति की मांग को लेकर सर्वोच्च न्यायालय से न्यायदान की याचना की है। इसे लेकर सरकार ने न्यायालय को सूचित किया कि अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वालों से विदेशी कानून के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी । भारत १९५१ के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित विनियमों का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। इसलिए सरकार रोहिंग्याओं से देशांतर्गत कानून के अनुसार व्यवहार करेगी ।
४. अवैध अप्रवासियों को नहीं मिलेंगे समान अधिकार !
याचिकाकर्ता प्रियाली सूर ने तिब्बत और श्रीलंका के शरणार्थियों का संदर्भ देते हुए मांग की कि सरकार रोहिंग्याओं के साथ भी वैसा ही व्यवहार करे। (ऐसी मांग करने वालों को ही देश से निर्वासित करने के लिए अब कानून बनाने की नितांत आवश्यकता है! – संपादक) सरकार ने प्रतिवाद किया कि किसी भी श्रेणी के लोगों को शरणार्थी के रूप में मान्यता देना पूरी तरह से नीतिगत निर्णय है। यदि कोई कानूनी प्रावधानों से बाहर शरणार्थी की मान्यता देता है, तो इसे न्यायालय के आदेश द्वारा मान्यता नहीं दी जा सकती और न ही ‘शरणार्थी की श्रेणी ‘ घोषित की जा सकती है। विदेशियों और अवैध आप्रवासियों को समान अधिकार नहीं मिलेंगे।
स्रोत: दैनिक सनातन प्रभात